वैश्विक महामारी के प्रकोप के कारण वित्त वर्ष 2021 में भारतीय औषधि उद्योग के निर्यात में करीब 20 फीसदी वृद्धि होने के आसार हैं। घरेलू मोर्चे पर भी दो महीनों के लॉकडाउन के दौरान नरमी के बाद दवा बाजार वृद्धि की राह पर लौट रहा है। जहां तक वित्त वर्ष 2021-22 के लिए परिदृश्य का सवाल है तो निर्यात और घरेलू दोनों बाजारों में वृद्धि को कोविड-19 के टीकों से रफ्तार मिलेगी।
वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत औषधि निर्यात संवद्र्धन परिषद (फार्मेक्सिल) के महानिदेशक उदय भास्कर ने कहा कि भारत से दवाओं के निर्यात में 11 से 12 फीसदी की वृद्धि हो सकती है और कोविड-19 के टीकों के कारण अतिरिक्त अवसर पैदा हो सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत के पास टीकों के उत्पादन की विशाल क्षमता है। इसलिए वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के टीकों की कुल खुराक में भारत से निर्यात किए जाने वाले टीकों की हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी हो सकती है।’
हालांकि उन्होंने कहा कि खासकर, यूरोपीय संघ समेत कई देशों द्वारा उत्पादन और अपने पोर्टफोलियो (मुख्य रूप से बल्क ड्रग श्रेणी में) बढ़ाए जाने की संभावना है, जिससे कि आयात पर निर्भरता घटाने में मदद मिल सके। किफायती कीमतों की वजह से भारतीय निर्यात बढऩे की संभावना है।
पिछले वर्ष के दौरान वर्ष भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) जैसे कई दवाओं के लिए सुर्खियों में रहा। भास्कर ने कहा कि भारत ने वैश्विक मांग पूरी करने के लिए पैरासीटामोल का उत्पादन बढ़ाया और कोविड-19 में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख स्टेरॉयड के लिए अचानक पैदा हुई मांग का बड़ा हिस्सा पूरा करने में योगदान दिया। अब महामारी का खतरा घट रहा है, कई देशों से हृदय और तंत्रिका तंत्र संबंधी दवाओं की मांग बढ़ रही है, क्योंकि आपूर्ति शृंखलाओं को बहाल किया गया है। भास्कर ने कहा, ‘अप्रैल के बाद मांग में अचानक आई तेजी को पूरा करने के लिए भारत में बल्क दवाओं और फॉर्मूलेशनों, दोनों के लिए पर्याप्त स्टॉक मौजूद था। वह वैकल्पिक थोक दवा आपूर्ति (कुछ हिस्सा यूरोप से) भी सुनिश्चित कर सकता है और स्थानीय उत्पादन बढ़ा सकता है।’
अप्रैल-अक्टूबर 2020 तक, भारत का दवा निर्यात 13.88 अरब डॉलर पर था और यह 15 प्रतिशत की तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2021 का समापन करीब 25 अरब डॉलर के निर्यात के साथ होगा।’ यह पिछले साल के मुकाबले 20 प्रतिशत की वृद्घि होगी।
इंडिया रेटिंग्स के विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय दवा कंपनियों ने सभी नई एब्रिविएटेड नए ड्रग आवेदनों (एएनडीए) मंजूरियों का करीब 45 प्रतिशत हिस्सा पिछले 9 महीनों के दौरान आकर्षित किया है। इससे आगामी वित्त वर्ष में निर्यात वृद्घि में मदद मिलेगी।
भारतीय दवा बाजार को साल 2020 में जिस चीज ने परेशान किया वह है वॉल्यूम में होने वाली बढ़ोतरी। जून तिमाही में वॉल्यूम की रफ्तार 11.2 फीसदी घट गई और इस तरह से लॉकडाउन ने तिमाही को झटका दिया। सितंबर तिमाही में वॉल्यूम 6.4 फीसदी घटा, अक्टूबर व नवंबर में इसमें 3 फीसदी की गिरावट आई। यह जानकारी मार्केट रिसर्च फर्म एआईओसीडी अवैक्स से मिली। इसकी तुलना में कीमत की रफ्तार अलग-अलग थेरेपी में 4 से 5 फीसदी के दायरे मेंं रही।
डर के कारण और लोगों के कम बीमार पडऩे से क्लिनिक में कम मरीज आने से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली दवा का वॉल्यूम कम रहा। दिल और मधुमेह के इलाज वाली दवा का प्रदर्शन बेहतर रहा। लेकिन अब देसी बाजार ने खुद को दोबारा संतुलित करना शुरू कर दिया है क्योंकि कंपनियों के मुताबिक अनलॉकिंग का इस पर असर पड़ा है।
सिप्ला के वैश्विक सीएफओ केदार उपाध्याय के मुताबिक, बार-बार इस्तेमाल होने वाली दवा वाले क्षेत्र व क्रॉनिक क्षेत्र के दोबारा संतुलन और दिसंबर तिमाही कुछ हद तक इसके बारे में बताएगा। कोविड-19 की कई दवा उतारने वाली सिप्ला ने कहा कि उसने महामारी के दौरान कार्यबल बनाया और कारोबारी समुदाय के लिए विशेष कोशिश भी की। उपाध्याय ने कहा, हमने दोनों क्षेत्र में बढ़त देखी है। आईपीएम के कुल वॉल्यूम में गिरावट की वजह संक्रमणरोधी, त्वचा, दर्द निवारक और एनालजेसिक आदि रही।
उद्योग पर नजर रखने वालों ने कहा कि साल 2021 में ज्यादा इस्तेमाल वाली दवा मेंं सुधार होगा और लोग बिना रोकटोक इधर-उधर जाएंगे। एआईओसीडी अवैक्स के अध्यक्ष राकेश दवे ने कहा, साल 2021 में संक्रमणरोधी दवाओं की मांग बढ़ेगी और इससे जुड़ी थेरेपी में भी इजाफा होगा।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के विश्लेषक तुषार मनुधाने ने कहा, संक्रमणरोधी श्रेणी में अब एंटी-वायरल की बिक्री बढ़ी है। अगर एंटीबायोटिक की बिक्री भी बढ़ती है तो कुल बाजार को मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा, एंटीबायोटिक, विटामिन, पीपीआई और दर्द निवारक दवाओं की हिस्सेदारी कुल आईपीएम में 40 फीसदी से ज्यादा होती है।
