उद्योग जगत और विशेषज्ञों को लगता है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा कोविड-19 टीकों के विनिर्माण के लिए पेटेंट छूट के राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण करार को मंजूरी देने से टीका उत्पादन को बढ़ावा देने या टीका विनिर्माण के लिए नई तकनीकों को हासिल करने पर तत्काल रूप से बहुत कम असर पड़ सकता है।
भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधित पहलुओं (ट्रिप्स) के फैसले से टीका हिस्सेदारी, पहुंच और सामर्थ्य को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह पेटेंट वाले टीकों के उत्पादन के लिए अधिकार सुगमता को सक्षम करेगा तथा भारत घरेलू जरूरतों और निर्यात के लिए उत्पादन कर सकता है।
मंत्री ने आगे कहा कि कोई देश कहीं और पेटेंट किए गए टीकों के उत्पादन को अधिकार दे सकता है और इसके लिए किसी सहमति की जरूरत नहीं होगी और साथ ही साथ निर्यात पर कोई सीमा नहीं होगी। गोयल ने कहा कि नैदानिक और चिकित्सा विज्ञान के संबंध में कोई फैसला छह महीने में लिया जाएगा। भविष्य में वैश्विक महामारी पर तेजी से प्रतिक्रिया होगी और महामारी में व्यापारिक बाधाएं कम होंगी।
मात्रा के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी टीका विनिर्माता पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने कहा कि हालांकि कोविड-19 के टीकों के लिए पेटेंट छूट उत्साहजनक कदम है, लेकिन आज टीकों की मांग घट रही है।
एसआईआई के प्रवक्ता ने कहा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान, नवोन्मेषकों और टीका उत्पादकों ने जल्द से जल्द कोई जीवन रक्षक टीका विकसित करने के लिए भागीदारी की थी। इससे एसआईआई-नोवोवैक्स, एसआईआई- एस्ट्राजेनेका और जेऐंडजें तथा एस्पेन आदि जैसे लाइसेंसिंग करार हुए। आज टीकों की मांग में गिरावाट आ रही है। कोविड टीकों के लिए पेटेंट छूट भविष्य में महामारियों की स्थिति में आवश्यक दवाओं और चिकित्सा की पहुंच तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन सुरक्षित करे की दिशा में उत्साहजनक और प्रगतिशील कदम है।कानूनी विशेषज्ञों ने बताया कि यह देखने की जरूरत है कि वास्तव में ‘आंशिक’ छूट क्या है।
निशीथ देसाई एसोसिएट्स की प्रमुख (आईपी प्रैक्टिस) अपर्णा गौड़ ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि समाचार की रिपोर्टों में आंशिक छूट का उल्लेख किया गया है। शायद हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि छूट के संबंध में आंशिक क्या है। किसी रूप में यह काफी कम, काफी देर वाला कदम हो सकता है।
उन्होंने कहा कि टीके की मांग उस स्तर पर नहीं है, जब बातचीत शुरू हुई थी। गौड़ ने कहा कि यह पेटेंट छूट संभावित टीका पेश करने की दिशा में केवल एक शुरुआती कदम ही है। विनियामक स्वीकृति, जांच आदि जैसी कई अन्य बाधाओं को दूर करने की जरूरत होगी, जिसमें कई महीने लग सकते हैं।
दरअसल बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों को वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के टीकों की पहुंच बढ़ाने में अब बाधा के रूप में नहीं माना जाता है। भारत और दक्षिण अफ्रीका पिछले कुछ समय से कोविड-19 का टीका उत्पादन के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार हटाने पर जोर देते आ रहे हैं।
कोविड-19 के लिए प्रोटीन सबयूनिट टीका कॉर्बेवैक्स की विनिर्माता बायोलॉजिकल ई (बीई) की प्रबंध निदेशक महिमा दातला ने मार्च में कहा था कि ह्यूस्टन में बैयलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन (जिसके साथ बीई ने टीका विकसित करने के लिए सहयोग किया था) पहले से ही सभी आईपी प्रतिबंध हटा चुका है, क्योंकि वे लोग यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि यह टीका यथासंभव सुलभ हो। दातला ने कहा था कि हालांकि बौद्धिक संपदा ही एकमात्र बाधा नहीं है, बल्कि टीका विनिर्माण के लिए बुनियादी ढांचा, प्रशिक्षित श्रमबल आदि ज्यादा गंभीर बाधा है।
इसके अलावा टीका विनिर्माताओं को लगता है कि जब तक नवोन्मेषक कंपनी किसी अन्य विनिर्माता की मदद के लिए आगे नहीं आती है, तब तक टीका विनिर्माण की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होगी, भले ही बौद्धिक संपदा के प्रतिबंधों को माफ कर दिया जाए।
एक टीका फर्म के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि अगर तकनीक तुरंत उपलब्ध हो भी जाए, तो भी प्रक्रियाओं को विकसित करने और इसके लिए व्यावसायीकरण करने में नौ महीने से लेकर एक साल तक का समय लग जाएगा। टीके वायरसों का इस्तेमाल करने वाले जैविक उत्पाद होते हैं और इसमें शामिल विनिर्माण में अत्यंत जटिल प्रक्रिया होती है। उस प्रक्रिया में किसी भी बदलाव के परिणामस्वरूप टीके का सही उम्मीदवार प्राप्त करने में विफलता हो सकती है।
