प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्तों में दो अंतरराष्टï्रीय मंचों पर कहा कि भारत 2022 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता में 220 गीगावॉट से अधिक और 2030 तक 450 गीगावॉट से अधिक का इजाफा करेगा। उद्योग जगत ने जी20 शिखर बैठक और आरई-इन्वेस्ट के उद्ïघाटन के अवसर पर स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य पर उनकी ओर से जोर दिए जाने की प्रशंसा की लेकिन जमीनी हकीकत अलग ही कहानी बयान करती है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) की ओर से पिछले दो वर्ष में 18 गीगावॉट सौर बिजली परियोजनाओं के आवंटन के साथ निविदा की प्रक्रिया आक्रामक रही है लेकिन इनमें से 16 गीगावॉट की परियोजनाओं के पास विद्युत खरीद समझौता ही नहीं है। यह जानकारी ऊर्जा मंत्रालय की तकनीकी इकाई केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की ओर से हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट से सामने आई है। इसमें रिन्यू पॉवर, एक्मे सोलर, अदाणी ग्रीन, सॉफ्टबैंक एनर्जी आदि इस क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों द्वारा हासिल की गई परियोजनाएं शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य की अन्य एजेंसियों द्वारा आवंटित परियोजनाओं के लिए देश में करीब 24 फीसदी सौर क्षमता के पास पारेषण कनेक्शन नहीं है। इसके अलावा, रिन्यू पॉवर, स्प्रंग एनर्जी और मित्रा एनर्जी जैसी कंपनियों ने विस्तार देने का अनुरोध किया है क्योंकि इनके पास पारेषण ढांचा नहीं है जिसे सरकारी क्षेत्र की पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को तैयार करना है। इसकी वजह से देरी हो रही है। क्षेत्र के एक वरिष्ठï विशेषज्ञ ने कहा, ‘ताप विद्युत में पारेषण के संकट की कहानी अब अक्षय ऊर्जा में दोहराई जा रही है। सरकार डेवलपरों को पारेषण नेटवर्क वाली जगहों पर परियोजनाएं बनाने के लिए कह रही है। लेकिन अधिकांश मामलों में ये ऐसी जगह नहीं हैं जहां अक्षय ऊर्जा के संसाधन भरपूर मात्रा में हो।’
2014 में जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) केंद्र की सत्ता में आई तो उसने 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य तय किया। इसमें से 100 गीगावॉट सौर, 60 गीगावॉट पवन और बाकी अक्षय ऊर्जा के अन्य स्रोत हैं। भारत ने 2015 में आयोजित पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अपनी ऊर्जा जरूरतों का 40 फीसदी गैर जैव ईंधन से प्राप्त करने की प्रतिबद्घता जताई है। फिलहाल देश की सौर और पवन ऊर्जा क्षमता क्रमश: 32 गीगावॉट और 38 गीगावॉट है, जबकि 13 गीगावॉट की सौर और 7.3 गीगावॉट की पवन बिजली क्षमता निर्माणाधीन है।
एक अग्रणी ऊर्जा कंचनी के वरिष्ठï कार्यकारी ने कहा, ‘ऐसी कोई बड़ी नीति नहीं रही है जो इस क्षेत्र के पक्ष में हो। यह आक्रामक बोली और बड़ी निविदाओं तक सीमित रहा है। किसी को नहीं पता कि वास्तव में इससे कितना फायदा होगा। अत्यधिक कम शुल्क वाली परियोजनाओं को लागू करने में काफी मुश्किल होगी। सरकार इस बात को लेकर सकारात्मक है कि अक्षय ऊर्जा के शुल्क में आगे और कमी आएगी। शुल्क घट सकती है लेकिन इससे क्षेत्र में कोई मूल्य तैयार नहीं हो रहा है।’
परियोजना डेवलपरों ने कुल 1.4 गीगावॉट की पवन बिजली क्षमता को एकतरफा रद्द कर दिया। इनमें टॉरंट पावर, इनोक्स विंड और रिन्यू विंड एनर्जी शामिल है। हाल ही में एक्मे सोलर ने राजस्थान में अपनी 600 मेगावॉट की सौर बिजली परियोजना को रद्द करने के लिए सीईआरसी की मंजूरी मांगी है। इसे कंपनी ने 2.44 रुपये प्रति यूनिट की रिकॉर्ड कम शुल्क पर हासिल किया था। कोविड-19 महामारी ने इस क्षेत्र के लिए मामले को और जटिल बना दिया है। इस दौरान निर्माण कार्य में देरी हो रही है और राज्य सरकारें अक्षय ऊर्जा की खरीद से दूरी बना रही हैं। इस समाचार पत्र ने हाल ही में खबर दी थी कि लॉकडाउन, चीनी सौर आयातों की आपूर्ति शृंखला बाधित होने, पारेषण कनेक्शन में देरी होने और अक्षय ऊर्जा को खरीदने को लेकर राज्यों की अनिच्छा के कारण देश में 39.4 गीगावॉट की सौर और पवन परियोजनाओं में देरी हो रही है।
आगामी दो से तीन महीनों में कुल 22 गीगावॉट की परियोजनाएं आवंटित की जानी है। हालांकि, नियोजित क्षमता में एक भी एकल पवन विद्युत परियोजना नहीं है। ये या तो सौर बिजली परियोजनाएं हैं या फिर सौर-पवन हाइब्रिड विद्युत परियोजनाएं हैं।
