महाराष्ट्र गृहनिर्माण व क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) के सस्ते घर भी शायद राजनीति और खराब निर्माण की भेंट चढ़ रहे हैं। इन मकानों को लपकने के लिए पहले जहां लोगों का रेला लगा था, वहीं अब इसके तलबगार कम ही नजर आ रहे हैं।
यही वजह है कि इनके लिए फॉर्म जमा कराने में लोग खासी सुस्ती दिखा रहे हैं। म्हाडा ने जब 3,865 फ्लैटों के लिए फॉर्म निकाले थे, तो 7 लाख 53 हजार फॉर्म बिक गए।
लेकिन आज तक केवल 3 लाख 38 हजार फॉर्म ही म्हाडा के पास जमा हुए हैं। फॉर्म जमा करने का अंतिम दिन 7 फरवरी, शनिवार है, लेकिन उस दिन भी बमुश्किल 50 हजार और फॉर्म जमा होने की उम्मीद है।
चार लाख से भी ज्यादा लोगों का फॉर्म न जमा करना म्हाडा अधिकारियों को भी हैरान कर रहा है। अधिकारियों के अनुसार, म्हाडा फ्लैटों को लेकर शुरू राजनीति भी लोगों को इन फ्लैटों से दूर कर रही है।
लेकिन जानकार इसकी तोहमत फ्लैटों की कम संख्या, म्हाडा का खराब कंट्रक्शन और मौजूदा राजनीतिक परिवेश के कारण फ्लैट मिलने में देरी की आशंका पर ही जड़ रहे हैं।
म्हाडा के मुख्य कार्य अधिकारी एच. के. जावले का कहना है कि आवेदनों में से लॉटरी द्वारा फ्लैटों का आवंटन किया जाएगा। लॉटरी की तारीख अभी तय नहीं है, लेकिन मई-जून तक इसका फैसला हो जाएगा। म्हाडा कर्मचारी चुनावी तैयारी में जुट गए हैं।
चुनाव के बाद ही इन फॉर्म की जांच और लॉटरी हो पाएगी। इनमें 50 फीसदी से भी ज्यादा फ्लैट आरक्षित कोटे के लोगों को मिलने वाले हैं। फॉर्म खरीदने के बाद जमा न करने वाले उमेश ने बताया कि जब उन्होंने म्हाडा फ्लैटों को नजदीक से देखा तो पता चला कि वर्सोवा को छोड़कर कोई भी फ्लैट रहने लायक नहीं है।
दूसरी ओर, मंगेश का कहना है कि म्हाडा के फ्लैटों की कम संख्या और दलालों के सक्रिय होने से उनके जैसे आम आदमी को फ्लैट मिलना नमुमकिन लगता है, इसीलिए उन्होंने फॉर्म जमा करने का इरादा छोड़ दिया।
म्हाडा ने आय वर्ग के हिसाब से फ्लैटों की बिक्री तय की है। एलआईजी फ्लैट की कीमत 7-10 लाख रुपये के बीच है। इस फ्लैट का एरिया 310 वर्ग फुट है।