उत्तर प्रदेश का जो भदोही जिला कालीन निर्माण के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
उसी जिले के सरोही गांव में प्रवेश करते ही हमारी नजर खाली पड़ी जमीन पर गई, जहां तीन कालीन सुखाए जा रहे थे। गांव का पहला घर बाहर से आए एक कारीगर का था, जबकि दूसरे मकान में कालीन बुनने का काम होता था।
उसी लूम के असीर अहमद का कहना है कि पहले एक दिन में यहां 100 के करीब कालीन सुखाए जाते थे, लेकिन अब स्थिति यह है कि केवल तीन कालीन ही सूखने के लिए दिए गए हैं। दरअसल, मांग कम हो जाने की वजह से कालीन नहीं बनाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऑर्डर के लिए सभी जगह भाग-दौड़ करने पर भी ऑर्डर नहीं मिल पा रहा है।
एक अन्य ठेकेदार जगदीश ने बताया कि पहले एक समूह (गोला) में करीब 12-13 कारीगर काम करते थे, लेकिन अब केवल 3-4 लोगों को ही एक गोला में काम पर रखा गया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कालीन की मांग बहुत घट गई है।
बाकी कारीगरों को काम से हटा दिया गया है और उन्हें रोजगार की तलाश में सूरत और मुंबई जाना पड़ा। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के मुताबिक, देश में कालीन निर्माण मुख्यत: छह राज्यों में फैला है, लेकिन उत्तर प्रदेश का भदोही जिला इनमें सबसे ऊपर है। देश के कुल कालीन निर्यात में से 60 फीसदी भदोही का ही होता है।
कपूर कारपेट के मालिक विनय कपूर ने बताया कि पिछले तीन महीनों से एक भी नया ऑॅर्डर नहीं मिला है। इसकी वजह से हमें करीब 3 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के अध्यक्ष रवि पटौदिया का कहना है कि क्रिसमस पर पहले कालीनों की मांग बहुत होती थी, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है।
पिछले साल के मुकाबले निर्यात ऑर्डर में भारी गिरावट आई है, जिसकी वजह से कई लोगों ने कालीन निर्माण का कारोबार बंद कर दिया है, वहीं कुछ ऐसा करने की योजना बना रहे हैं। पिछले कुछ हफ्तों के दौरान 300 करोड़ रुपये के ऑर्डर रद्द किए जा चुके हैं।
कोई लौटा दे ये बीते दिन (निर्यात आंकड़े)
2005-06 : 3,082 करोड़ रुपये
2006-07 : 3,674 करोड़ रुपये
2008-08 : 3,527 करोड़ रुपये
पिछले कुछ हफ्तों में हुए 300 करोड़ रुपये के निर्यात ऑर्डर रद्द
कई लोगों ने किया कालीन कालीन कारोबार बंद, मजदूर कर रहे मुंबई व सूरत पलायन