नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के पिछले सात वर्षों के कार्यकाल में संसद के जितने सत्र चले उनमें इस वर्ष मॉनसून सत्र में सबसे कम विधायी कार्य हुए। उस सत्र में लोकसभा में विधायी कार्यों के लिए निश्चित कुल घंटों में महज 22 प्रतिशत अवधि में ही कामकाज हुआ। राज्य सभा के मामले में यह आंकड़ा 28 प्रतिशत दर्ज किया गया। संसद के शीतकालीन सत्र से भी बहुत उम्मीदें नहीं हैं। विपक्षी दलों के मौजूदा रुख को देखते हुए नहीं लगता कि शीतकालीन सत्र निर्बाध रूप से चल पाएगा।
शीतकालीन सत्र में तीन अध्यादेशों का पारित होना अनिवार्य है। इनमें एक है मादक पदार्थ एवं नशीले तत्त्व (संशोधन) अध्यादेश, 2021। इसमें मादक पदार्थों की तस्करी से संबंधित जुर्माने के प्रावधान में त्रुटि दूर की जाएगी। इस पर बहस गर्म रहेगी लेकिन व्यवधान की आशंका नहीं है। मगर अन्य दो अध्यादेशों पर शोर-शराबा तय है। इनमें एक केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) विधेयक, 2021 है और दूसरा दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (संशोधन) अध्यादेश, 2021 है। इन अध्यादेशों में भारत की शीर्ष जांच एजेंसियों-प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के प्रमुखों और विदेश, गृह एवं रक्षा सचिवों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव है। इन दोनों विधेयकों का विपक्षी दल जमकर विरोध करेंगे। इस समय लगभग सभी विपक्षी दल ईडी की जांच के दायरे में हैं। इन दलों पर धन शोधन या विदेशी मुद्रा नियमों के उल्लंघन का आरोप है। यह विधेयक वर्तमान ईडी प्रमुख की सेवानिवृत्ति से कुछ ही दिन पहले लाया गया था। सरकार संभवत: यह तर्क देगी कि पिछली सरकारों ने जांच एजेंसियों के प्रमुखों का कार्यकाल निश्चित कर दिया था जिससे उनकी सेवानिवृत्ति की उम्र स्वत: बढ़ गई है। हालांकि ये बदलाव पी वी नरसिंह राव सरकार के दौरान हवाला जांच और विनीत नारायण मामले में न्यायालय के आदेशों के बाद आए थे।
इन अध्यादेशों पर अपनी प्रतिक्रिया में कांगे्रस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘ईडी प्रमुख की सेवानिवृत्ति से ठीक तीन दिन पहले लाया गया अध्यादेश सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है। यह सत्ता का बेजा इस्तेमाल है।’ इस अध्यादेश पर कांग्रेस न्यायालय चली गई है। मॉनसून सत्र में नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन से संसद की कार्यवाही समुचित ढंग से नहीं चल पाई थी। अब सरकार ने ये तीनों नए कानून जरूर निरस्त कर दिए हैं मगर पंजाब में विधानसभा चुनाव नजदीक होने से विपक्षी दल संसद में और अधिक आक्रामक रुख अपनाएंगे।
श्ीातकालीन सत्र शुरू होने से पहले सर्वदलीय बैठक में यह बात पूरी तरह साफ हो गई। इस बैठक में संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। दोनों मंत्रियों ने आगामी शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित विधायी कार्यों का जिक्र किया जिनमें क्रिप्टोकरेंसी एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा बिल नियमन विधेयक जैसे महत्त्वपूर्ण विधेयक शामिल हैं। शीतकालीन सत्र में व्यक्तिगत जानकारी (डेटा) संरक्षण विधेयक पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट सहित दूसरे विषयों पर भी चर्चा होनी है। इस बैठक में प्रधानमंत्री उपस्थित नहीं थे और जब विपक्ष ने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया तो सरकार ने कहा कि संसद सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री भी आएं यह जरूरी नहीं है। आम आदमी पार्टी (आप) नेता यह कहकर बैठक से बाहर निकल गए कि उन्हें उनकी बात रखने का मौका नहीं दिया गया। सिंह सर्वदलीय बैठक में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की मांग उठाना चाहते थे।
राज्य सभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री इस बैठक में शामिल होंगे और सभी दलों से कुछ बात साझा करेंगे। हम कृषि कानूनों के संबंध में कुछ और जानना चाहते थे क्योंकि इन्हें लेकर कुछ चिंताएं अभी दूर नहीं हुई हैं।’ सरकार की मुखर विरोधी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपनी मांगों की अलग से फेहरिस्त तैयार कर रखी है। पेगासस विवाद और कोविड-महामारी जैसे मुद्दे मॉनसून सत्र में भी उठाए गए थे मगर पार्टी इस सत्र में बेरोजगारी, महंगाई, एमएसपी के लिए कानूनी प्रावधन और महिला आरक्षण विधेयक जैसे मुद्दे भी उठाएगी।
मगर विपक्षी दलों की धार थोड़ी कमजोर होती दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस 29 नवंबर को खडग़े द्वारा बुलाई बैठक में शामिल नहीं होगी। पिछले सप्ताह मेघालय में कांग्रेस के कई विधायक तृणमूल में शामिल हो गए हैं। कांगे्रस के दो वरिष्ठ नेता-हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख अशोक तंवर और महिला कांग्रेस प्रमुख सुष्मिता देव- भी अब तृणमूल में आ गए हैं।
तृणमूल के एक नेता ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं होगी मगर प्रधानमंत्री और राज्य सभा अध्यक्ष की अगुआई में होने वाली वाली बैठकों में जरूर शिरकत करेगी। विपक्षी दलों के आपसी मतभेद जरूर हैं मगर इतना तय है कि शीतकालीन सत्र हंगामे वाला रहेगा।
