सूचना तकनीक के बढ़ते दौर में किताबों के पाठकों की संख्या में कमी भी आ रही है। लेकिन अगर प्रकाशकों की माने तो गांधी जी की रचनाओं की मांग लगातार बनी हुई है। लेकिन एक सच यह भी है कि इन किताबों की मांग ज्यादातर किसी सामाजिक सरोकार से जुड़े संस्थानों, शैक्षणिक संस्थानों और शोध के लिए ही होती है।
नवजीवन ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी जितेन्द्र देसाई का कहना है, ‘हमारे प्रकाशन की किताबों की बिक्री के जरिए 1.5 करोड़ की कमाई होती है। वहीं रॉयल्टी के जरिए सालाना 12 से 20 लाख की कमाई होती है। क्षेत्रीय भाषाओं में गांधी जी की आत्मकथा का अनुवाद 13 भाषाओं में होने से इनकी रचनाओं के पाठकों की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई हैं। अगले साल जनवरी में कॉपीराइट का अधिकार सबको मिल जाने पर गांधी जी के पुस्तकों का प्रकाशन तो बढ़ेगा ही जाहिर है कीमतों को लेकर भी प्रतियोगिता होगी लेकिन नवजीवन ट्रस्ट अपनी कीमत कम ही रखेगा।’
गांधी जी की आत्मकथा , की टू हेल्थ , ऑल मेन आर ब्रदर्स, इन सर्च ऑफ सुप्रीम, माइंड ऑफ महात्मा गांधी, प्रेयर, माई रिलीजन, ट्रूथ इज गॉड और इंडिया ऑफ माई ड्रीम स्टोरी का मांग सबसे ज्यादा होती है।
दिल्ली में गांधी संग्रहालय एवं पुस्तकालय की निदेशक वर्षा दास का कहना है, ‘कई गांधी संस्थान, संस्थाएं और शोध से जुड़े संस्थान गांधी जी के साहित्य में खासी दिलचस्पी लेते हैं। पिछले साल ही गांधी जी की आत्मकथा का ब्रेल संस्करण भी निकाला गया है ताकि अंधे लोग भी उनकी रचनाओं को पढ़ सकें। इससे पहले सरकार ने 1969 में 6 बड़े वॉल्यूम में ब्रेल लिपी में छापी थी जो खत्म हो गई थी।’ उनका कहना है कि युवा वर्ग के लिए उनकी संक्षिप्त आत्मकथा भी छापी गई है। इसी संस्था के गांधी लिटरेचर सेंटर के इंचार्ज ललित भट्ट का कहना है, ‘राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय के प्रकाशन के द्वारा भी पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं। इन किताबों से सालाना लगभग 16 से 17 लाख की कमाई हो जाती है।’ हालांकि राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय नियमित सरकारी अनुदान नहीं मिल पाने की दिक्कतों से लगातार जूझ रहा है। गांधी संग्रहालय में पुस्तकालय के प्रमुख एस के भटनागर का कहना है, ‘हमारे यहां गांधी जी से संबंधित लगभग 41,000 पुस्तकें हैं। यहां केवल शोध करने वाले करने वाले छात्र ही आते हैं।’
अहमदाबाद में नवजीवन ट्रस्ट के सेल्स मैनेजर कपिल रावल का कहना है, ‘देश में गांधी जी की रचनाओं की जो कॉपीराइट नवजीवन ट्रस्ट को हासिल है वह इस साल दिसंबर तक ही है। महात्मा गांधी की जीवनी ‘सत्य के प्रयोग’ की लगभग दो से ढ़ाई लाख प्रति साल में बिक जाती है। गांधी जी वसीयत के मुताबिक उनकी रचनाओं की रॉयल्टी के कुल पैसे का 25 फीसदी हिस्सा ‘हरिजन सेवक संघ’ को दिया जाता है।’ विदेशों में नवजीवन ट्रस्ट ने इंगलैंड के पेंग्विन और यूएसए के बेकन पे्रस को गांधी जी की आत्मकथा छापने की इजाजत दी है। देश में नवजीवन ट्रस्ट ने नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत सरकार के पब्लिकेशन डिवीजन और पेंग्विन इंडिया को भी गांधी जी की रचनाओं को छापने की इजाजत दी है।
बॉम्बे सर्वोदय मंडल के गांधी बुक सेंटर के मैनेजर प्रेमशंकर तिवारी का कहना है कि साल 2007-08 में 25 से 30 लाख की कमाई हुई है। इससे पिछले वर्षो में 15 लाख तक की कमाई हो जाती थी। तिवारी का कहना है कि लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म के आने से गांधी की किताबों की बिक्री काफी बढ़ गई। कुछ दूसरे प्रकाशक गांधी साहित्य में फायदे का मौका देख रहे हैं। मसलन ओरियंट पेपरबैक गांधी की आत्मकथा 150 रुपये में बेच रही है जबकि अहमदाबाद प्रेस उनकी आत्मकथा महज 30 रुपये में बेचती है।