देश कोविड संबंधी बड़े स्वास्थ्य संकट की चपेट में है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में कॉर्डियोलोजी के पूर्व प्रमुख के श्रीनाथ रेड्डी ने निवेदिता मुखर्जी से इस संबंध में बात की कि देश पूरी तरह तैयार क्यों नहीं था और इस स्थिति से निपटने के लिए अब क्या किया जा सकता है। संपादित अंश :
जिस तरह का स्वास्थ्य संकट हम देख रहे हैं, उसमें भारत क्यों फंस गया?
हमें दूसरी लहर का पूर्वानुमान नहीं था, जो हमें होना चाहिए था। हमने इसे इस तरह मान लिया था कि हमारे पास सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता है और कोई दूसरी लहर नहीं होगी। यही वजह है कि हमारी तैयारी अपर्याप्त रह गई और अब हम प्रतिक्रिया देना शुरू कर रहे हैं, लेकिन इसमें समय लग रहा है।
क्या आप इस पर विस्तार से बता सकते हैं कि हम पूरी तरह तैयार क्यों नहीं थे?
पिछले साल हालांकि स्वास्थ्य व्यवस्था पर काफी तनाव था, लेकिन जब हमने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की, तो संख्या (संक्रमण के मामले) कम थी। देश में चरणबद्ध रूप में आंशिक अनलॉकिंग हुई, लोग कोविड प्रोटोकॉल के परामर्शों का पालन कर रहे थे और हमने यात्रा के साथ-साथ बड़े समारोह भी प्रतिबंधित कर दिए थे। लेकिन जनवरी की शुरुआत तक, जब दैनिक मामलों और मौतों की संख्या में कमी आई, तो हमने यह विश्वास करने की गलती कर ली कि हमारे लिए यह वैश्विक महामारी खत्म हो गई है। हमने इससे भी ज्यादा आकर्षक सिद्धांत पर भरोसा कर लिया कि हम सभी सामूहिक रोगप्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुके हैं। लोग वही सुनना चाहते हैं, जो वे सुनना चाहते हैं – अर्थशास्त्री चाहते थे कि देश की वृद्धि में सुधार हो, छोटे व्यापारी कारोबार में वापस आना चाहते थे, साधारण व्यक्ति दैनिक जीवन और यात्रा की वापसी चाहता था और राजनेता चुनावी रैलियों होना चाहते थे और इसी तरह अन्य चीजें थीं। यह विचार व्यापक रूप से प्रचलित था कि हम उस चीज को पीछे छोड़ आए हैं और तैयारी बंद हो गई थी। हमने कुछ हद तक वायरस को अनदेखा कर दिया था, जबकि वायरस ने हमें अनदेखा नहीं किया।
आगे की राह क्या है?
हमें यह सुनिश्चित करते हुए प्रयास करना चाहिए और इस संक्रमण को रोकना चाहिए कि हम मास्क पहन कर बाहर जाएं और कम हवादार स्थानों से दूर रहें। लोगों को भीड़-भाड़ वाले इलाकों में नहीं जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि सार्वजनिक प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह के भीड़-भाड़ वाले कार्यक्रम, विशेष रूप से ज्यादा संक्रमण वाले कार्यक्रमों का आयोजन न हो। इसके अलावा लोगों को अनावश्यक यात्रा नहीं करनी चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि वायरस के बादल बंद कमरे में बनते हैं और वे आसानी से तितर-बितर नहीं होते। अगला कदम यह है कि टीकाकरण तेज होना चाहिए और इस तक सभी की पहुंच होनी चाहिए। टीकाकरण में गरीबों और उन लोगों के लिए पहुंच की बाधाओं को हटाया जाना चाहिए, जो पर्याप्त शिक्षित नहीं हैं। घरेलू देखभाल की मदद भी काफी अहम है, ताकि अस्पतालों पर दबाव में काफी कमी आए। और आवश्यकता पडऩे पर परिवहन के साथ-साथ अस्पताल में भर्ती किए जाने के लिए भी पर्याप्त भरोसा होना चाहिए। और नि:संदेह सभी कमियों – दवाओं तथा ऑक्सीजन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ये दक्षता और निष्पक्षता के साथ निष्पादित किए जाने वाले काम हैं। एक वर्ष से अधिक समय से यह चल रहा है तथा कुछ और समय तक जारी रहने की संभावना है। इसलिए स्वास्थ्य प्रणाली में मूलभूत कमजोरी पर अवश्य ही ध्यान दिया जाना चाहिए, न केवल इसलिए कि तीसरी लहर आ सकती है, बल्कि इसलिए भी कि नए वायरस की पहली लहर भी हो सकती है।
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि लॉकडाउन से मदद मिलती है?
लॉकडाउन तब मदद करता है, जब संक्रमण दर अधिक होती है और प्रणाली पूरी क्षमता पर प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार न हो। इसलिए संक्रमण में कमी लाने के दौरान यह संसाधनों की तैयारी में मदद करता है। लेकिन यह दीर्घकालिक और देशव्यापी समाधान नहीं हो सकता, क्योंकि देश के एक हिस्से के हालात दूसरे हिस्से से अलग होते हैं।
आप सरकार के कामकाज से परिचित रहे हैं। आपको ऐसा क्यों लगता हैं कि स्वास्थ्य सेवा के लिए बजट आवंटन पिछले कुछ वर्षों के दौरान कम रहा है?
हां, मैं काफी परिचित हूं। मैंने उस उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समूह की अध्यक्षता की थी जिसने वर्ष 2011 में योजना आयोग के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। … मुझे लगता है कि स्वास्थ्य के आवंटन में इजाफा नहीं हुआ है, क्योंकि राजनीतिक फैसला करने स्वास्थ्य को कभी भी एकजुटता से महत्त्व नहीं दिया गया। सार्वजनिक व्यय के लिए अन्य प्राथमिकताएं थीं और आर्थिक गतिविधियों के अन्य क्षेत्रों को महत्त्वपूर्ण माना गया था। कई वर्षों तक स्वास्थ्य को आर्थिक रूप से उत्पादक निवेश के तौर पर नहीं देखा गया था और इस सचाई के बावजूद कि स्वास्थ्य बहुत महत्त्वपूर्ण निवेश होता है, इसे सामाजिक क्षेत्र के आवश्यक समर्थन के रूप में अधिक माना जाता था, क्योंकि यह लोगों की उत्पादकता का संरक्षण करता है और गरीबी को रोकने में भी मदद करता है।
क्या आपको यह संकट जल्द खत्म होता लग रहा है?
यह केवल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि यह वायरस कैसा व्यवहार करता है, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम कैसे व्यवहार करते हैं। अगर हर कोई किसी भी भीड़ का हिस्सा नहीं बनने का फैसला कर ले, हर कोई मास्क लगाए, हर कोई अनावश्यक रूप से यात्रा करना बंद कर दे, तो यह संभव है कि दो से तीन सप्ताह में हम मामलों को कम होता देखेंगे। तथा दो और सप्ताह के बाद मौतें घटने लगेंगी।
