मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में पिछले छह-सात महीनों से उत्तर भारतीयों के खिलाफ चलाये जा रहे आंदोलन का असर राज्य के उद्योग-धंधों पर पड़ा है।
पूरे राज्य से 30 फीसदी से भी ज्यादा मजदूर अपने गांव वापस चले गए हैं। नतीजा, महाराष्ट्र का रियल एस्टेट, टेक्सटाइल उद्योग और विनिमार्ण से जुड़े काम समय पर नहीं पूरे हो पा रहे हैं।
राज्य के कारोबारियों को यह डर सताने लगा है कि यदि समय रहते समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो राज्य का उद्योग जगत अन्य राज्यों से पिछड ज़ाएगा। देश के दूसरे राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में रियल एस्टेट का कारोबार तेजी से पैर फैलाने में सफल रहा है। इस सफलता के पीछे उत्तर प्रदेश, बिहार सहित दूसरे राज्यों से महाराष्ट्र में रोजी-रोटी की तलाश में आए मेहनतकश मजदूरों का अहम योगदान है।
लेकिन अब स्थितियां बदलने लगी हैं और लगभग 30-50 फीसदी मजदूर यहां से पलायन कर चुके हैं। परिणामस्वरूप उद्योग की रफ्तार पर ब्रेक लगना शुरू हो गया है। मजदूरों का सबसे ज्यादा पलायन पुणे और नासिक से हुआ, जिसकी वजह से सबसे ज्यादा नुकसान भी यहीं के कारोबारियों को उठाना पड़ रहा है। इस नुकसान के दर्द को बयां करते हुए पुणे बिल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष ललित जैन कहते हैं कि सभी प्रोजेक्ट 6 से 8 महीने देर में तैयार हो पा रहे हैं।
जिसका खमियाजा अंतत: कारोबारियों को उठाना पड़ रहा है। पुणे से 50 फीसदी से भी ज्यादा मजदूरों के पलायन कर जाने की वजह ये यहां मजदूरों की कमी हो गई है। इससे मजदूरी भी महंगी हो गई, वहीं परियोजनाएं भी समय से पूरी नहीं हो पा रही है। जिन लोगों ने फ्लैट बुक किए थे, अब उन्हें 6-8 महीने बाद पजेशन मिलेगा। कहने का मतलब फ्लैट बुक करने वाले व्यक्ति को औसतन 50000 से 80000 रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा है।
रिहाइशी फ्लैट की तुलना में कहीं ज्यादा नुकसान व्यवासायिक फ्लैट बुक करने वालों को हुआ है। इस समस्या से निपटने के लिए बिल्डर नई तकनीक उपयोग में लाने पर विचार कर रहे हैं, जिससे की मजदूरों की कम से कम जरूरत पड़े। रियल एस्टेट के बाद विनिर्माण कार्यों से जुड़े दूसरे प्रोजेक्ट भी समय पर पूरे नहीं हो पा रहे हैं। सड़क, पुल और भवन निर्माण के अलावा, दूसरे उद्योग धंधे भी मजदूरों का रोना रो रहे हैं। इचलकरंजी, मालेगांव और भिवंडी में पावरलूम की घिरनी की आवाज भी मंद पड़ गई है।
हिंदुस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष शंकर केजरीवाल के अनुसार, हमारे यहां से 30 फीसदी से ज्यादा मजदूर पलायन कर गए हैं। यहां से काम छोड़कर गए मजदूर कुशल होने की वजह से उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार में काम मिल जाता है। इसलिए उनके वापस आने की संभावना भी नहीं के बराबर है। कुशल मजदूरों की कमी और ऊंची मजदूरी दर की वजह से हम बाजार में अच्छा और सस्ता माल नहीं उतार पाएंगे, जिससे यहां के उद्योग खिसक कर दूसरे राज्यों में चला जाएगा।
मुंबई और आसपास 12 लाख से ज्यादा पावरलूम के कारखाने हैं। इन कारखानों में पहले चार मशीन पर दो मजदूर काम करते थे, जबकि इस समय एक मजदूर छह मशीनों को देख रहा है। बिहारी फ्रंट के अध्यक्ष और मुंबई कांग्रेस प्रवक्ता संजय निरुपम कहते हैं कि राज्य से एक लाख से ज्यादा मजदूर पलायन कर गए हैं। उत्तर प्रदेश से आए जरी कारीगर लतीफ भाई कहते हैं कि डर के माहौल में जीना पड रहा है।
राज्य से 30 फीसदी से ज्यादा मजदूर कर चुके हैं पलायन
रियल एस्टेट, पावरलूम उद्योगों को सबसे ज्यादा हो रहा नुकसान
मजदूरों की किल्लत से श्रमिकों की मजदूरी भी बढ़ गई है
राज्य से उद्योगों के पलायन का खतरा
उत्तर प्रदेश और बिहार में ही काम मिलने के कारण मजदूरों के वापस आने की संभावना भी नहीं के बराबर