‘फिर से देखनी पड़ेगी’। दिल्ली के एक सिनेमाघर में फिल्म देखने वाले एक व्यक्ति का यही कहना था। क्रिस्टोफर नोलान की टेनट देखने के लिए अगर दिल्ली में 160 लोगों के बैठने की क्षमता रखने वाले सिनेपोलिस में महज छह लोग होंगे तो सिर पर बल पडऩा लाजिमी है। ऐसे में ‘फिर से देखनी पड़ेगी जैसी बातें’ नहीं सुनने को मिले ऐसा हो नहीं सकता। कोविड-19 के कारण बंद हो चुके सिनेमाघरों में अगर आठ महीने बाद भी यही नजारा दिखता है तो यह निश्चित तौर पर परेशान करने वाली बात है। अगर रविवार की शाम में ऐसा दिखे तो मामला और ज्यादा खराब हो जाता है। ऐसे में आठ महीनों से लगभग बंद रहने के बाद सिनेमाघरों के खुलने और नहीं खुलने का कोई खास मतलब नहीं रह जाता है। अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो यह समूचे फिल्म कारोबार पर बुरा असर डाल सकता है। भारत में फिल्म कारोबार में रेडियो, टीवी, वीडियो स्ट्रीमिंग, म्यूजिक और यहां तक कि विज्ञापन भी आते हैं। ये भारत के 1,82,200 करोड़ रुपये के मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग का हिस्सा हैं। वर्ष 2021 का शायद इसे पहला रुझान माना जा सकता है, जो कहीं से भी उत्साह जगाने वाला नहीं है।
जब तक कोविड-19 का टीका देश के 1.30 अरब लोगों तक नहीं पहुंचता है और जीवन सामान्य नहीं होता है तब तक हालात दिल्ली के इस सिनेमाघर की तरह ही रहेंगे-उदास और खाली-खाली। इसके बाद देश के छोटे शहरों में एकल पर्दे वाले सिनेमाघरों पर नजर डालें तो उनकी हालत पहले ही खराब हो गई है। भारतीय फिल्मों ने 2019 में 19,1000 करोड़ रुपये से अधिक कारोबार किया था, जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा थियेटरों से आया था। पीवीआर सिनेमाज या यशराज फिल्म्स जैसी बड़ी कंपनियां मौजूदा विपरीत हालात से जैसे-तैसे निपट सकती हैं, लेकिन भारत में हजारों छोटे निर्माता एवं वितरक हैं, जो फिल्म उद्योग के लिए एक मजबूत तंत्र का निर्माण करते हैं। हॉलीवुड को चुनौती देने में उनका अहम योगदान रहा है। इन छोटे निर्माताओं एवं वितरकों का कारोबार चौपट हो सकता है। हालांकि इसके बाद क्या रह जाएगा यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन केवल स्ट्रीमिंग से 60 प्रतिशत राजस्व नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती है।
एक और रुझान यह मिल रहा है कि किस तरह वीडियो के विकल्प फिल्म उद्योग को नया आकार दे रहे हैं। 25 वर्ष से कुछ थोड़े ही अधिक समय में टीवी 83.6 करोड़ भारतीय लोगों के घर पहुंच गया और मीडिया का रंग-रूप बदल कर रख दिया। फिल्म उद्योग के राजस्व में 42 प्रतिशत से अधिक योगदान देने के साथ यह भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग का सबसे बड़ा और मजबूत हिस्सा रहा है। लोगों के अधिक समय तक टीवी देखने, उनकी तादाद और टीवी की पहुंच ये सभी बातें इसके पक्ष में रही हैं। दूसरी तरफ महज चार वर्षों में ही वीडियो स्ट्रीमिंग देश के 40 करोड़ लोगों तक पहुंच गया है। यह कुल राजस्व का महज 10 प्रतिशत है और टीवी देखने में लोग जितना समय बिताते हैं उसका यह 10-15 प्रतिशत है। अब ऐसी बात कही जा रही हैं कि ऑन-डिमांड स्ट्रीमिंग टीवी की जरूरत समाप्त कर देगी। हालांकि असलियत है यह है कि ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। वीडियो स्ट्रीमिंग खंड की सबसे बड़ी कंपनियां प्रसारण कंपनियों जी5, डिज्नी+हॉटस्टार, वूट से ताल्लुक रखती हैं। कॉमस्कोर में वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं प्रमुख एपीएसी केदार गवाने कहते हैं, ‘मसलन स्टार प्लस पर सबसे बड़ा शो हॉटस्टार पर सबसे बड़ा धमाका करेगा। जी5 या कलर्स के साथ ही यही बात है। टीवी पर आपकी सामग्री कितनी मजबूत है वही बात ओटीटी पर सबसे अधिक मायने रखती है।’
जी5 के सीईओ तरुण कटियाल का कहना है कि अंतत: वीडियो ऑन डिमांड भी टीवी पर ही आएगा। वह कहते हैं, ‘अगले 18 से 26 महीने में मनोरंजन के लंबे स्वरूप तेजी से टीवी पर आ जाएंगे।Ó दरअसल उनका इशारा अमेरिकी बाजार की तरफ था जहां ज्यादातर ओटीटी व्यूअरशिप टेलीविजन पर ही होती है। भारत में स्मार्ट टीवी की पहुंच 19.7 करोड़ टीवी देखने वाले घरों में 2 करोड़ तक हो गई। लॉकडाउन के दौरान टीवी पर ओटीटी सामग्री दिखाने के कारण ऐसा हुआ। इस संख्या में अभी और इजाफा होगा। कुल मिलाकर टीवी की ताकत और स्ट्रीमिंग के मिश्रण के साथ एक नया ताना-बाना तैयार हो जाएगा। इससे एक तीसरा रुझान भी सामने आ रहा है। बड़ी तकनीकी कंपनियों का संभावित विभाजन हो सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन वितरण कंपनी का नियंत्रण कुछ मुठ्ठïी भर कंपनियों के पास है और उनकी राजस्व और लोगों दोनों तक अधिक पहुंच है। इनमें ऐपल के 1.5 अरब यूजर हैं और राजस्व 260 अरब डॉलर है। इसी तरह, गूगल के 1.7 अरब यूजर हैं और 161 अरब डॉलर राजस्व है जबकि फेसबुक के यूजर की संख्या 2.6 अरब है और इसका राजस्व 71 अरब डॉलर है।
अमेरिका और भारत में डिजिटल माध्मय से विज्ञापन पाने के मामले में गूगल और फेसबुक की हिस्सेदारी क्रमश: 56 प्रतिशत और 70 प्रतिशत है। समाचारपत्रों, संगीत कंपनियों, प्रसारणकर्ताओं, फिल्म स्टूडियो आदि को इन तीनों कंपनियों की शर्तों का पालन करना होता और ऐसा नहीं करने पर उन्हें निकाल बाहर किया जाता है। जैसा ऐपल ने इस वर्ष के शुरू में फोर्टनाइट के साथ किया था। यही वजह है कि यूरोप और अमेरिका में नियामक दिग्गज कंपनियों पर नकेल कसने के लिए काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए फेसबुक से इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप अलग करने पर बहस तेज हो गई है। इससे प्रतिस्पद्र्धा अधिक स्वस्थ होगी और गूगल-फेसबुक के दबदबे से भारत में स्ट्रीमिंग वीडियो और न्यूज मार्केट बाजार बाहर आ पाएंगे। यह वर्ष सभी के लिए मुश्किलों भरा रहा है। हालांकि भारत के लोगों को टीवी, ओटीटी, समाचारपत्र, रेडियो और अन्य सेवाएं मिलती रहीं। राजस्व की कमी झेलने के बाद भी भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग ने पूरे देश का मनोरंजन किया। जबरदस्त काम करने के बावजूद यह उद्योग 20-30 प्रतिशत राजस्व की कमी से जूझ रहा है। नए वर्ष में यह एक अच्छी शुरुआत नहीं मानी जा सकती है।
