‘यह ऐसा समय है कि ज्यादातर लोग हताश हैं। लेकिन मेरे जीवन के 93 साल में बहुत सी मंदी आईं और चली गईं।
‘ यह प्रतिक्रिया थी, अमेरिकी कंपनी स्टैंडर्ड ऑयल के प्रमुख जॉन डी. रॉकफेलर की, जो उन्होंने 1929 में ब्लैक टयूसडे के नाम से चर्चित दिन यानी 29 अक्टूबर 1929 को वॉल स्ट्रीट के धराशायी होने पर जाहिर की थी।
हालांकि रॉकफेलर तब नहीं जानते थे कि 1929 में हुई दस्तक के जरिए आने वाली मंदी 1939 तक दुनियाभर के लोगों की छाती पर मूंग दलने वाली है।उसी दौर की तरह आज भी हर देश की सरकार मंदी को रोकने के लिए बाजार में तरलता यानी नकदी बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल कर रही है। इसके तहत बैंक दरों में कटौती की जा रही है।
हाल के कुछ महीनों में ही नकद सुरक्षित अनुपात (सीआरआर), रेपो रेट, एसएलआर में कमी करके सरकार ने लगभग दो लाख करोड़ रुपये बाजार में झोंक दिए हैं। इसके चलते, ज्यादातर बैंकों ने भी ब्याज दरों में कमी कर दी है। इरादा साफ है कि इससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़े और उद्योग जगत के हाथों में भी ज्यादा पैसे आएं, जिससे वे अपनी योजनाओं को सही ढंग से संचालित करने के साथ ही नई योजनाओं की राह पर भी कदम बढ़ा सकें।
यह सरकारी नुस्खा कितना कारगर साबित होगा, इसके जवाब में विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में आई मंदी मांग और आपूर्ति से अलग ही है, जिसके मूल में घरेलू से कहीं ज्यादा वैश्विक कारण हैं। जहां तक शेयर बाजार के गिरने की बात है, तो वह भी अपने-अपने देशों में मंदी से परेशान विदेशी निवेशकों के शेयर बाजार से पैसा खींचने और इसके चलते भारतीय निवेशकों में समाए डर के चलते ही है।
ऐसे में भारतीय बाजारों में पैसा झोंकने का नुस्खा क्या रंग लाएगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। हालांकि इस नुस्खे के साइड इफेक्ट भी हैं। मसलन, इससे एक बार फिर महंगाई के बढने का डर। अभी साल भर भी नहीं बीता है, जब महंगाई ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू किया था। 12 प्रतिशत से भी ऊपर जाने के बाद सरकार ने सीआरआर और रेपो रेट बढ़ा-बढ़ाकर इसे बड़ी मुश्किल से तो रिवर्स गियर में डाला है।
फिर जब उद्योग जगत से मंदी के आंकड़े आने लगे तो सरकार ने सीआरआर, रेपो आदि में ही रिवर्स गियर लगा दिया। जाहिर है, महंगाई और मंदी की इसी चक्की में पिस रहे देश के लिए के लिए यह सवाल अहम हो जाता है कि क्या ब्याज दर घटाने से छटेंगे मंदी के बादल।
लिहाजा बिजनेस स्टैंडर्ड ने देशभर के प्रबुध्द पाठकों, कारोबारियों और आर्थिक विश्लेषकों के बीच इस व्यापार गोष्ठी का आयोजन किया। निष्कर्ष क्या निकला, यह तय करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।