सड़कों व राजमार्गों पर बढ़ते टोल शुल्क और लागत के दबाव से जूझ रहे ट्रांसपोर्टरों को अतिरिक्त लागत से जूझना पड़ सकता है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार बेहतर संपर्क के लिए बंदरगाहों के आसपास विकसित होने वाली नई सड़कों पर कर संग्रह के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।
भारत के निर्यात-आयात का 95 प्रतिशत काम उसके बंदरगाहों से होता है। बंदरगाहों को जोड़ने वाली सड़कें, जो राष्ट्रीय राजमार्ग के तहत नहीं आती हैं, कर्ज से लदे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के लिए राजस्व का बड़ा स्रोत हो सकती हैं।
बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) ने हाल ही सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) के सामने एक प्रस्ताव किया था। इसके मुताबिक एनएचएआई बंदरगाह के अधिकारियों के साथ समझौता (एमओयू) करके बंदरगाहों के गेटों पर टोल संग्रह की पहल कर सकता है।
यह मामला ऐसे समय आया है, जब अपने बंदरगाहों की बुनियादी सुविधाएं दुरुस्त कर रहे जहाजरानी मंत्रालय सड़क एवं रेल से जोड़ने की परियोजनाओं में धीमी प्रगति के अपनी संपत्तियों का पूर्ण इस्तेमाल न होने को लेकर निराशा जताई है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने इसके पहले खबर दी थी कि केंद्रीय कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने इन परियोजनाओं की चाल सुस्त होने के कारण एमओआरटीएच और रेल मंत्रालय (एमओआर) की खिंचाई की थी।
दोनों विभागों को 15 अगस्त तक का वक्त दिया गया है. जिससे वे अपनी योजनाओं को मजबूती से लागू कर सकें औप इस योजना को पीएम गतिशक्ति पोर्टल से जोड़ सकें। इस समय 62 मौजूदा सड़कें और 52 नई परियोजनाओं प्रस्तावित हैं। इनमें से 35 परियोजनाएं विकास के स्तर पर अटकी हुई हैं। परियोजनाएं 2017 में मंत्रालय की प्रमुख योनजना भारतमाला परियोजनाओं के तहत हैं। राज्य सरकारों के पास बड़े बंदरगाहों और एमओआरटीएच की 46,347 करोड़ रुपये की परियोजनाएं पूरी होने को शेष हैं। अन्य प्रमुख परियोजनाओं में तेजी को प्रोत्साहित करने के ले जहाजरानी मंत्रालय ने अहम बुनियादी ढांचा परियोजनाएं राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ी हुई मानी जा सकती हैं।
इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि बंदरगाह प्राथिकारियों को इन परियोजनाओं को लागू करने वाली एजेंसियों जैसे एनएचएआई से मुक्त राइट आफ वे (आरओडब्ल्यू मुहैया कराया जा सकता है।
वरिष्ठ अधिकारियों की राय है कि इन परियोजनाओं को प्राथमिकता से लेने की जरूरत है, बंदरगाहों से जुड़ी ढुलाई सुस्त हो जाएगी और आयात वाले कार्गो को खाली करने का काम सुस्त हो जाएगा और इससे बंदरगाहों की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाएगा। इससे बंदरगाहों और उद्योगों पर लागत का दबाव बढ़ेगा। जहां तमाम बड़े बंदरगाह सड़क और रेल से जुड़े हुए हैं, तमाम राज्य सरकारों के गैर प्रमुख बंदरगाह जोड़ने वाले बुनियादी ढांचे की कमी के संकट से जूझ रहे हैं।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रस्ताव से परियोजनाओं के कामकाज में तेजी आ सकती है। वहीं ट्रांसपोर्टरों पर इसका बुरा असर बहुत अहम नहीं है, क्योंकि एक बार जब परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी तो इससे लागत घटेगी, क्योंकि बड़ी संख्या में वाहनों की तेजी से आवाजाही हो सकेगी।
वहीं राजस्व के अवसर से एनएचएआई को मदद मिल सकती है, जिस पर अभी 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज का बोझ है। केंद्र सरकार ने 1.34 लाख करोड़ रुपये आवंटन के साथ इस साल के बजट में इसे पर्याप्त बजट समर्थन किया गया है, जिससे एजेंसी बाजार उधारी से बच सके और कर्ज का दबाव कम हो सके।
मुंबई के एक बुनियादी ढांचा विश्लेषक ने कहा, ‘मंत्रालय इस समय भारतमाला परियोजना पर व्यय दोगुना करना चाहता है। लागत बढ़ने पर वैकल्पिक साधनों पर विचार हो सकता है, क्योंकि केंद्र सरकार अपने खजाने से सीमित राजस्व ही मुहैया करा सकती है। मुद्रीकरण के साधन जब विकसित हो जाएंगे तो राजस्व आने लगेगा।’
