भले ही आप इस पर भरोसा करें या नहीं, मगर सरकार देश में जन टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए 70 फीसदी ऑटो डिसेबल सिरिंज चीन से आयात करती है। इसकी वजह यह है कि चीन इनकी आपूर्ति बहुत सस्ती कीमतों पर करता है।
इन सिरिंज से यह सुनिश्चित हो जाता है कि इनका दोबारा इस्तेमाल नहीं होगा। मगर पेच यह है कि आने वाले समय में कोविड-19 के जन टीकाकरण के लिए भारत को ऐसी करोड़ों सिरिंज की जरूरत होगी, लेकिन इस समय भारत और चीन के संबंध खराब हैं। इस वजह से चीन से आयातित सामान पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इससे भारतीय कंपनियों के लिए मौके पैदा हो सकते हैं। मगर दिल्ली की हिंदुस्तान सिरिंज्स ऐंड मेडिकल डिवाइसेज लिमिटेड (एचएमडी) पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। फिर भी यह अपनी सालाना उत्पादन क्षमता बढ़ाकर एक अरब कर रही है। हालांकि इसने चीनी कंपनियों से कीमत के मोर्चे पर प्रतिस्पर्धा से दूर रहने का फैसला किया है, जो सरकार के लिए एकमात्र मापदंड रहा है। यह कंपनी इस उत्पाद की दुनिया की सबसे बड़ी विनिर्माताओं में से एक है और देशों की 90 फीसदी सिरिंज की मांग पूरी करती है।
भारत सरकार अपने विभिन्न जन टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए हर साल 30 करोड़ से अधिक ऑटो डिसेबल सिरिंज खरीदती है। इस समय एचएमडी के सात संयंत्र हैं, जिनमें हर साल 70 करोड़ से अधिक ऑटो डिसेबल सिरिंज का उत्पादन हो रहा है। यह कंपनी डिस्पोवैन और कोजक ब्रांडों के नाम से उत्पादन करती है। यह लागत से कम पर बेचकर नुकसान उठाने के बजाय वैश्विक बाजारों में निर्यात को तरजीह देती है।
इसे हाल में यूनिसेफ से इस साल 14 करोड़ सिरिंज की आपूर्ति करने का ऑर्डर मिला है। संयुक्त राष्ट्र की यह एजेंसी इसलिए स्टॉक कर रही है ताकि कोविड-19 का टीका आने के बाद विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। इससे कंपनी को यूनिसेफ से मिले ऑर्डर का उसकी कुल क्षमता में आधा हिस्सा होगा। यूनिसेफ के इन ऑर्डरों में अन्य वैश्विक कार्यक्रमों के लिए खरीद भी शामिल है। यह ग्लोबल वैक्सीन अलायंस (जीएवीआई) के साथ भी बातचीत कर रही है।
हालांकि एचएमडी को भारत सरकार की तरफ से कोविड-19 टीकाकरण के लिए सिरिंज उत्पादन बढ़ाने को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। भारत सरकार का यह रुख अमेरिका और कनाडा से बिल्कुल विपरीत है। अमेरिका ने जुलाई में 19 करोड़ सिरिंज और कनाडा ने 7.5 करोड़ से अधिक सिरिंज का विनिर्माताओं को ऑर्डर दिया है। ब्रिटेन की सरकार ने भी बेक्टॉन डिक्निशन को 6.5 करोड़ सिरिंज का ऑर्डर दिया है।
एचएमडी के प्रबंध निदेशक राजीव नाथ ने कहा, ‘हम इस बात से चिंतित हैं कि पहले भी हमने जब अपना उत्पादन बढ़ाया तो सरकार ने सबसे कम बोली लगाने वाली चीन की कंपनियों से खरीद को तरजीह दी। वह कीमत हमारे लिए अलाभप्रद थी और हमारी लागत से भी कम थी। सरकार ने गुणवत्ता को कोई अहमियत नहीं दी। इसलिए 70 फीसदी कारोबार चीन की कंपनियों के हासिल करने से हमने अंतरराष्ट्रीय खरीदारों का रुख किया।’ नाथ कहते हैं कि आप इन सिरिंज की कीमत कितनी भी कम कर दें, चीन की कंपनियां कीमत 10 फीसदी और घटा देंगी। निस्संदेह भारत ने चीन से आयात के नियम कड़े किए हैं, विशेष रूप से सरकारी खरीद में। अब सरकारी खरीद लिए पंजीकरण अनिवार्य है। हालांकि एचएमडी का कहना है कि अब भी बहुत से सुराख हैं, इसलिए उनके आयात पर किसी तरह की रोक नहीं है। आम तौर पर चीन की कंपनियां स्थानीय वितरकों के जरिये काम करती हैं, जो भारत में उत्पाद का आयात करते हैं और कुछ मूल्य संवर्धन कर सकते हैं। कंपनी का अनुमान है कि माना कि भारत की 70 फीसदी आबादी को टीकाकरण की जरूरत होती है तो अगले डेढ़ से दो साल में 180 करोड़ से अधिक सिरिंज की जरूरत होगी। इसी तरह वैश्विक स्तर पर पांच अरब लोगों के टीकाकरण की जरूरत होगी।
नाथ कहते हैं कि वे भारतीय चुनौती को संभालने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार को वर्ष के अंत तक कोविड-19 टीकाकरण के लिए 10 करोड़ ऑटो डिसेबल सिरिंज की जरूरत हो तो भी हम आसानी से इनकी आपूर्ति कर सकते हैं। हमारे पास करीब पांच करोड़ सिरिंज का स्टॉक है, जो सरकार ने नहीं खरीदा है क्योंकि कोविड-19 के दौरान मानक टीकाकरण कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया। हालांकि कुछ शुरू हुए हैं, लेकिन उनकी रफ्तार सुस्त है।’
