सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से भले ही हटा दिया गया हो लेकिन पार्टी के सांसद आज भी उनके इशारे पर चल रहे हैं। चौंक गए न?
दरअसल, मसला ही कुछ ऐसा था, जिसके चलते सीपीआई (एम ) के सांसद अपनी पार्टी के पूर्व नेता और लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की गुजारिश को ठुकरा न सके।
हुआ यह कि बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए हाल में सोमनाथ ने सभी लोकसभा सदस्यों को एक पत्र लिखा और उनसे आग्रह किया कि अपने स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीएलएडी) कोष से 10 लाख रुपये और अपना एक माह का वेतन बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए दान करें।
अन्य राजनीतिक दलों की तरह सीपीआई (एम) ने भी अध्यक्ष के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया। यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सीपीआई (एम) का कोई सांसद अपने स्तर से यह निर्णय नही कर सकता है कि विकास कोष की राशि का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए।
यह निर्णय पार्टी नेतृत्व करता है कि निर्वाचन क्षेत्र में इन राशियों को किस मद में खर्च किया जाना चाहिए। सीपीआई (एम), जिसे सोमनाथ चटर्जी का विश्वास मत के दौरान अपने पद पर बने रहना नागवार गुजरा था, आज उनके इस आग्रह को पूरा समर्थन दे रही है।
लोकसभा में सीपीआई (एम) के उपनेता मोहम्मद सलीम ने कहा कि हमने अध्यक्ष के पत्र को पार्टी नेतृत्व को भेज दिया है। पार्टी ने यह निर्णय लिया है कि उसके सारे सांसद 10 लाख रुपये और अपना एक माह का वेतन बाढ़ पीड़ितों के लिए दान देंगे।
नियम इस बात की आज्ञा देता है कि अगर किसी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा आ गई है, तो एमपीएलएडी कोष की रकम को उसमें हस्तांतरित किया जा सकता है। चटर्जी खुद भी पश्चिम बंगाल से लोकसभा के सांसद हैं और उन्होंने 10 लाख रुपये और अपना एक माह का वेतन इस मद में पहले ही दान कर दिया है।
सीपीआई (एम) के लोकसभा सांसद हन्नान मुल्ला ने कहा कि पार्टी के निर्णय के बाद हमने अपने बैंक अधिकारियों से कहा है कि वे हमारे मासिक वेतन के तौर पर मिलने वाले 16,000 रुपये काट कर बाढ़ पीड़ितों के कोष में डाल दें। हालांकि सीपीआई (एम) ने चटर्जी को पार्टी की विचारधारा का उल्लंघन कर लोकसभा के अध्यक्ष पद पर बने रहने के कारण 23 जुलाई की पार्टी सदस्यता से निलंबित कर दिया था।
इस निलंबन के कुछ अरसे बाद अगस्त में चटर्जी ने राष्ट्रमंडल संसदीय संगठन में अहम भूमिका निभाई थी और मलेशिया के मोहम्मद शैफी अपदल को महानिदेशक की कुर्सी सुनिश्चित करवाई थी। बाढ़ पीड़ितों को मदद पहुंचाने के लिए चटर्जी ने और भी कई तरीके अपनाए हैं।
संसद सूत्रों के मुताबिक चटर्जी ने बाढ़ का अध्ययन करने के लिए जाने वाली स्थायी समिति के दौरे को अनुमति नहीं दी और इसके पीछे यह तर्क दिया कि इससे जो संसद की राशि बचेगी, उसे बिहार के बाढ़ पीड़ितों के फंड में ही जमा करवा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी पीड़ितों को आर्थिक सहायता की काफी जरूरत है।
इस बात पर भी किसी ने उनकी शिकायत नही की। रेलवे पर बनी स्थायी समिति के अध्यक्ष और सीपीआई (एम) के सदस्य बसुदेव आचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हमलोगों ने बाढ़ के अध्ययन के लिए अनुमति मांगी थी, लेकिन वह इसके विरोध में थे। इसके बावजूद जहां इसकी जरूरत होगी, वह अकेले उस जगह का दौरा कर सकते हैं।
मुल्ला, जो ग्रामीण विकास पर बनी स्थायी समिति के भी सदस्य हैं, ने कहा कि मैं इस बात को नही जानता कि इससे कैसे रुपये बचाए जा सकते हैं और उसका इस्तेमाल बाढ़ पीड़ितों के लिए कैसे किया जा सकता है। लेकिन जो भी हो , हमलोग इस तरह की किसी भी यात्रा पर नही जा रहे हैं।