सिंगुर विवाद से सबक लेते हुए विस्थापित परिवारों को राहत और पुनर्वास उपलब्ध कराने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार जल्द ही एक नई भूमि अधिग्रहण नीति लाने की योजना बना रही है।
राज्य सरकार चाहती है कि भूमि अधिग्रहण के मामले में मुआवजा के बदले पुनर्वास पर ज्यादा जोर दिया जाए। इस बाबत राज्य के मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में मंगलवार शाम को वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक हुई।
इस बैठक में वित्त विभाग, आवास, लोक निर्माण विभाग, उद्योग विभाग के प्रमुख सचिवों ने भी शिरकत की। यह कदम तब उठाया जा रहा है, जब सिंगुर में भूमि अधिग्रहण विवाद पूरी तरह से गहरा गया है। राज्य के पुनर्वास और औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव वी. एन. गर्ग ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस बैठक में विचारों पर गौर किया गया और इस बाबत सुझावों को एकत्रित किया गया।
उन्होंने कहा कि राज्य इस संबंध में गुजरात की भूमि अधिग्रहण नीति का भी अध्ययन कर रही है, खासकर अहमदाबाद मॉडल, जो काफी सफल रहा है। मालूम हो कि भारत में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भूमि अधिग्रहण कानून 1894 और राष्ट्रीय राहत और पुनर्वास नीति 2007 के आधार पर निष्पादित की जाती है। गर्ग ने कहा कि आज भी कुछ संशोधनों के साथ भूमि अधिग्रहण कानून 1894 कार्यरूप में है।
हालांकि अभी हालात बिल्कुल अलग हो गए हैं। राज्य सरकार चाहती है कि जमीन के मालिक को बेहतर मुआवजा दिया जाए और उसे विकास की प्रक्रिया में भागीदार बनाया जाए। अभी उत्तर प्रदेश में गंगा एक्सप्रेस वे, यमुना एक्सप्रेस वे और कई विशेष आर्थिक क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाएं क्रियाशील हैं, जिसके लिए भविष्य में भूमि अधिग्रहण की जा सकती है।
इस संबंध में यह भी बात की जा रही है कि संबद्ध जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को ज्यादा अधिकार दिए जाएं, क्योंकि भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों से बात करने वाली समिति का अध्यक्ष डीएम ही होते हैं। गर्ग ने कहा कि करार नियमावली (सरकार और किसानों के बीच हो रहे अनुबंधों की नियमावली) में बहुत सारी कमियां और दोष हैं और इसे दूर करने की भी कोशिश की जा रही है।
यूपी में नई भूमि अधिग्रहण नीति लाने की तैयारी
मुआवजा के बदले पुनर्वास नीति पर होगा जोर
जमीन मालिकों को भी विकास प्रक्रिया में भागीदार बनाने की चल रही है तैयारी