इस महीने के अंत तक पटाखों और पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण लगातार बढ़ने से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में िस्थति और बदतर हो सकती है। इन सबके बीच एनसीआर में चल रहे निर्माण के कारण लोगों का सांस लेना भी दूभर हो सकता है। पराली जलाने के अब तक दर्ज किए गए मामलों की संख्या पिछले साल की तुलना में लगभग आधी है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके बढ़ने की संभावना है।
जमीनी रिपोर्टों से पता चलता है कि पराली जलाने की संख्या में गिरावट किसानों के व्यवहार में बदलाव के कारण नहीं बल्कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की देरी से वापसी के कारण है। बारिश ने धान की खड़ी फसलों में नमी की मात्रा बढ़ा दी है जिससे किसान उन्हें बेचने से पहले उन्हें अनुमति के स्तर तक सुखाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इसके कारण ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दो हफ्तों में मौसम साफ होने के बाद पराली जलाने के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी ऐंड वेदर फोरकास्टिंग ऐंड रिसर्च (सफर) के अनुसार, दिल्ली की हवा में प्रदूषक तत्त्वों में जलने वाले पराली की हिस्सेदारी सोमवार को 3 फीसदी थी।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा धान के अवशेष जलाने के मामलों की वास्तविक समय पर निगरानी के अनुसार, धान उगाने वाले पांच राज्यों – पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में 15 सितंबर से 17 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के 2,339 मामले दर्ज किए गए थे। पिछले साल इसी अवधि के दौरान दर्ज किए गए मामलों की संख्या 4,146 थी। पंजाब के किसानों का कहना है कि ये मामले और बढ़ेंगे क्योंकि राज्य सरकार किसानों को प्रोत्साहन नहीं दे रही है।
पराली जलाने के कुल मामलों में करीब 70 फीसदी पंजाब में होते हैं। भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) के पंजाब महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां ने कहा कि पराली जलाने के मामले बढ़ेंगे क्योंकि राज्य सरकार न तो पराली खरीद रही है और न ही किसानों को मुआवजा दे रही है।
धुंध का त्योहार
दीवाली के समय ही पराली जलाने के मामले अपने चरम पर होते हैं। इस दौरान, महामारी के कारण दो साल से त्योहार फीके पड़े थे, इसलिए यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार बड़े पैमाने पर पटाखे जलाए जा सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इससे पटाखों की बिक्री और खरीद पर कोई असर नहीं पड़ा। हालांकि दिल्ली के लोकप्रिय बाजार व दुकानें खुले में पटाखे नहीं बेच रहे हैं, लेकिन वे ब्लैक मार्केट में उपलब्ध हैं। एक पटाखा आपूर्तिकर्ता ने कहा कि दिल्ली और एनसीआर में अभी भी मांग अधिक है, पटाखे उत्तर प्रदेश और पंजाब से आ रहे हैं।
निर्माण या प्रदूषण
ग्रेप (जीआरएपी) के तहत, प्राधिकरण 500 वर्ग मीटर के बराबर या उससे अधिक आकार के भूखंडों के निर्माण को रोकते हैं और उन्हें भी जो, राज्य के अधिकारियों द्वारा पंजीकृत नहीं होते हैं। सीएक्यूएम संशोधित ग्रेप ‘चरण 1’ 5 अक्टूबर से लागू हुआ जब हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में पहुंच गई। हालांकि, मेट्रो, रेलवे और फ्लाई ओवर जैसी सरकारी परियोजनाओं को ‘चरण 1’ के तहत नहीं रोका गया है।
नवंबर 2021 में लोकसभा में पर्यावरण मंत्रालय के एक जवाब के अनुसार, उद्योगों से निकली गंदगी (मिट्टी, सड़क और निर्माण) ने पीएम 10 और पीएम 2.5 में क्रमशः 25 फीसदी और 17 फीसदी का योगदान दिया। इस साल अब तक वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने वायु प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों के उल्लंघन के लिए 491 निर्माण और विध्वंस स्थलों (दिल्ली में 110) को बंद करने के निर्देश जारी किए हैं।
एनारॉक ग्रुप के वरिष्ठ निदेशक और शोध प्रमुख प्रशांत ठाकुर ने कहा कि वर्तमान में दिल्ली-एनसीआर में निर्माण के विभिन्न चरणों के तहत 568,000 आवास इकाइयां हैं। खराब वायु गुणवत्ता के जवाब में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी), सरकार या शीर्ष अदालत द्वारा समय-समय पर प्रतिबंध लगाने के गंभीर परिणाम होंगे।
चल रही परियोजनाओं में देरी का सीधा असर घर खरीदारों पर पड़ेगा। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि औसतन, सभी निर्माण गतिविधियों पर एक महीने का प्रतिबंध एक परियोजना में कम से कम तीन-चार महीने की देरी करता है।
अधिक घोषणाएं, कम क्रियान्वयन
विशेषज्ञों का दावा है कि अच्छी नीतियों के आने के बावजूद, कार्यान्वयन की कमी दिल्ली में प्रदूषण में वृद्धि का प्रमुख कारण है। सीएक्यूएम ने 40 फ्लाइंग स्क्वॉड का गठन किया है, जिसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के एनसीआर में प्रत्येक जिलों के लिए 12 फ्लाइंग स्क्वॉड नियुक्त होंगे, और 4 फ्लाइंग स्क्वॉड राजस्थान के एनसीआर जिलों के लिए नियुक्त किए जाएंगे जो, प्रदूषण अपराधों की निगरानी करेंगे और इसके खिलाफ जुर्माना तय करेंगे।
लेकिन विशेषज्ञों का मत है कि इन निवारक उपायों को विभिन्न हितधारकों द्वारा पूरे साल किए जाने की आवश्यकता है। पर्यावरणविद् और प्रयास यूथ फाउंडेशन के संस्थापक रवि चौधरी ने कहा कि प्रतिबंध समाधान नहीं है बल्कि मानक संचालन प्रक्रिया का गठन और प्रवर्तन (एसओपी) लागू किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर एसओपी लागू होता है तो प्रतिबंध की कोई आवश्यकता नहीं है।