लकड़ी कारोबार के लिए चर्चित सहारनपुर पर भी मंदी की व्यापक मार पड़ रही है।
लकड़ी व्यापारी और निर्यात के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित अब्दुल रहमान सिद्दीकी ने कहा कि मांग घटने से कारखानों में काम के घंटे कम कर दिए गए हैं। उन्होंने बताया पहले जहां हमारी फैक्ट्री में रोजाना 16 घंटे काम होता था, वहीं अब 8 घंटे बमुश्किल से काम होता है।
उन्होंने बताया कि सहारनपुर में निर्मित करीब 70 फीसदी उत्पादों का निर्यात होता है, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। अब्दुल माजिद एक्सपोटर्स के मोहम्मद इकबाल ने बताया कि मंदी की वजह से मांग बहुत घट गई है। अब पहले के मुकाबले केवल 30 फीसदी ही उत्पादन किया जा रहा है।
इनमें से भी आधे उत्पादों की बिक्री घरेलू बाजारों में ही की जा रही है। पहले कुल उत्पाद का 50 फीसदी अमेरिका को निर्यात किया जाता था, लेकिन अब वहां से मांग नहीं आ रही है। अगले छह महीने तक ऐसे ही हालात रहने के आसार हैं।
इकबाल ने कहा कि विदेशों से नए ऑर्डर नहीं मिलने से कारोबारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि सितंबर के बाद से एक भी नया ऑर्डर नहीं मिला है। कुछ साल पहले तक सहारनपुर में लकड़ी का सालाना कारोबार करीब 500 करोड़ रुपये का था, जो घटकर 150 करोड़ रुपये पर सिमट गया है।
एक्सपोटर्स एसोसिएशन के महासचिव सिद्दीकी ने बताया कि लकड़ी उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से करीब एक लाख कारीगरों को काम मिला हुआ है, लेकिन अब रोजगार का संकट भी खड़ा होने लगा है।
अकरम और चांद पिछले 12 सालों से लकड़ी का काम करते आ रहे हैं। पहले ये रोजाना 150 रुपये कमा लेते थे, लेकिन अब बमुश्किल 100 रुपये कमा पाते हैं। पहले कारोबारी रोजाना मजदूरी दे देते थे, लेकिन अब हफ्तों तक मजदूरी नहीं मिल पाती है।