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देश में लड़के-लड़कियों के अनुपात में सुधार की किरण

बीएस संवाददाताबीएस संवाददाता—July 12, 2020 10:51 PM IST
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देश में बेटियों के बजाय बेटे को तरजीह देने के रुझान में अब थोड़ी सी कमी दिखती नजर आ रही है और 2018 में खत्म होने वाले तीन सालों में यह संकेत मिला है कि बेटियों के जन्म दर की तादाद में मामूली बढ़ोतरी दिख रही है। वर्ष 2016-2018 की अवधि के दौरान  भारत में प्रति 1,112 लड़कों के अनुपात में 1,000 लड़कियों का जन्म हुआ। हालांकि, यह स्थिति अब भी 1,030 और 1,050 के स्वाभाविक अनुपात और विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 1,068 के वैश्विक औसत से बदतर है। जनगणना कार्यालय से नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि यह  2015-2017 की अवधि में प्रत्येक 1,116 लड़कों के जन्म के अनुपात में 1,000 लड़कियों के जन्म से थोड़ा बेहतर है। एसआरएस देश में नामित खंडों में हर साल जन्म दर और शिशु मृत्यु दर जैसे संकेतकों को रिकॉर्ड करता है और लगभग 80 लाख लोगों को कवर करता है।  
दुनिया भर के समाज में काफी हद तक लोग लड़कियों की उपेक्षा करते रहे हैं और इस लिहाज से भारत में भी कुछ ऐसे ही हालात दिखते रहे हैं। 2018 में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के भारत के आधिकारिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि अभी भी आबादी के बीच बेटों को व्यापक तौर पर वरीयता दी जाती है। देश में जन्म के समय औसत लिंगानुपात 2011-2013 में प्रत्येक 1,100 लड़कों पर 1,000 लड़कियों के साथ सबसे बेहतर स्तर पर पहुंच गया था हालांकि 2013 के बाद भी स्थिति बिगड़ती जा रही थी। लिंगानुपात बिगडऩे के लगातार चार साल बाद 2018 में खत्म होने वाली ताजा अवधि में सुधार दिखा है। केरल और पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ वर्षों में लगातार सुधार हुआ है। लेकिन बिहार जो काफी हद तक ग्रामीण परिवेश वाला क्षेत्र माना जाता है और दिल्ली जो लगभग पूरी तरह से शहरी है, इन दोनों ही जगहों पर जन्म के समय के लिंगानुपात में गिरावट दिखाई है ।
हालांकि, विशेषज्ञ महज एक साल के सुधार को लेकर ज्यादा सकारात्मक होने को लेकर सावधानी बरतने के लिए कहते हैं। दिल्ली के एक प्रमुख इलाज केंद्र नोवा आईवीएफ  में फर्टिलिटी सलाहकार पारुल कटियार ने कहा, ‘हम इसे एक सामाजिक परिवर्तन तभी कह सकते हैं जब यह सुधार निरंतर होता रहे। असलियत में दंपती अब भी लड़के को ही पसंद करते हैं। इस तरह के सामाजिक परिवर्तन में अभी 10 साल से अधिक का वक्त लगेगा। जिन दंपती को प्रजनन से जुड़ी दिक्कतें होती हैं और जिनका बच्चा नहीं होता उनमें भी लड़कियों के प्रति ज्यादा स्नेह नहीं देखा जाता है।’
अमेरिका के इलिनॉय में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की अर्थशास्त्री सीमा जयचंद्र्रन ने 2014 में एक शोध पत्र पेश किया जिसमें यह बताया गया था कि हाल के दशक में घटते प्रजनन दर की एक प्रमुख वजह भारत में लिंगानुपात बिगडऩा भी है। उन्होंने लिखा, ‘छोटे परिवार के रुझान के चलते यह संभावना कम ही होती है कि एक परिवार में बेटा हो। ऐसे में  घटती प्रजनन क्षमता के बीच गर्भपात की दर बढ़ती है क्योंकि लोग बेटे-बेटियों के जन्म में अपनी तरजीह को तवज्जो देते हैं।’
देश की कुल प्रजनन दर (टीएफ आर)  या एक महिला आम तौर पर अपनी प्रजनन अवधि में जितने बच्चों को जन्म देती है उसमें धीरे-धीरे कमी दिख रही है प्रत्येक महिलाओं पर 2.2 बच्चों की दर अब रुझान में है। अब एक आबादी पर प्रजनन दर 2.1 को स्थिर माना जाता है। हालांकि अवैध तरीके से लिंग चयनात्मक गर्भपात भारत में ही होता है। विशेषज्ञों ने बार-बार इस बात को कहा है कि प्राकृतिक लिंग अनुपात में लड़कियों के प्रति स्पष्ट भेदभाव दिखता है।
ऑरजैक के 2015 के अध्ययन के मुताबिक जन्म दर में स्वाभाविक रूप से लड़कों की अधिकता है और यह किसी भी अवधि के दौरान कुल जन्म में 51.3 फ ीसदी लड़कों के पक्ष में ही होता है क्योंकि कन्या भ्रूण के लिए गर्भावधि के दौरान ज्यादा जोखिम होता है। अमेरिका में भी अन्य लोगों ने यह पाया है कि 1,053 लड़कों के जन्म पर 1,000 लड़कियों का अनुपात स्वभाविक लिंगानुपात के अंतर्गत आता है। जयचंद्रन ने अपने शोधपत्र में इसे 1,030 के करीब माना था। जन्म के समय भारत का लिंगानुपात 1,112 पर है और यह छोटे सुधार के बावजूद बदतर कहा जाएगा क्योंकि समाज में गहरे बदलाव की जरूरत है।
पड़ोसी चीन और वियतनाम का लिंगानुपात क्रमश: 1,126 और 1,118 है। दूसरी ओर, विश्व बैंक के अनुसार बांग्लादेश में स्थिति बेहतर है और प्रत्येक 1,049 लड़कों पर 1,000 लड़कियों का अनुपात है। अमेरिका के ओहायो के केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के लिहांग शी के एक मौलिक शोध से पता चला है कि चीन में परिवारों ने अब शादी बाजार के असंतुलन को देखते हुए संतुलन बनाने के लिए बेटियों को तरजीह देना शुरू कर दिया है। हालांकि भारत में अभी यह बात कारगर है या नहीं अभी नहीं पता लेकिन इससे अंदाजा जरूर मिलता है क्योंकि दोनों देशों की तुलना आबादी और सभ्यता से जुड़ी विशेषताओं के आधार पर की जा सकती हैं ।

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