दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा प्लास्टिक पॉलिबैग पर प्रतिबंध के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने के एक दिन बाद राजधानी के प्लास्टिक उत्पादकों से जुड़े कारोबारियों में बेचैनी देखी गई।
करीब 300 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार करने और 2 लाख लोगों को रोजगार देने वाले दिल्ली के पॉलिबैग उद्योग के भविष्य पर अब सवालिया निशान लग गया है। इस पूरे मामले पर विचार करने के लिए शनिवार को ऑल इंडिया प्लास्टिक एसोसिएशन एक बैठक करने जा रहा है।
उधर, पर्यावरणविद् दीवान सिंह ने बताया कि यह प्रतिबंध केवल 20 माइक्रोन के पॉलिथीन और गैर-पंजीकृत रि-साइक्लिंग इकाइयों पर लगाया गया है। लिहाजा, इससे आमलोगों का हित ही होगा। हालांकि एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि अग्रवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बगैर किसी ठोस विकल्प के इस तरह के प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि इस फैसले के बाद इस कारोबार से जुड़े लगभग 2 लाख लोगों के सामने रोजी-रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। वहीं दिल्ली में मौजूद पॉलिबैग के 6 से 8 हजार इकाइयों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी, जबकि 300 करोड़ रुपये का दिल्ली का पॉलीबैग उद्योग खतरे में पड़ जाएगा। अग्रवाल ने बताया कि हम फैसले की मूल प्रति का इंतजार कर रहे हैं।
शनिवार को बुलायी गई बैठक में इस मसले पर विस्तृत चर्चा के बाद एसोसिएशन तय करेगा कि आगे क्या कदम उठाना है। यदि जरूरी हुआ तो प्लास्टिक कारोबारी इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दे सकते हैं। गुप्ता पॉलिमर्स प्राइवेट लिमिटेड के अजय कुमार गुप्ता का कहना था कि प्लास्टिक समस्या नहीं है। असली समस्या इसके कचरे का निपटारा है।
सरकार को चाहिए कि इसके कचरे का निपटारा करने के लिए लोगों में जागरूकता लाए। लेकिन उद्योग के दायित्व के बारे में उसने तो यह मानने से ही इनकार कर दिया कि प्लास्टिक प्रदूषण की मुख्य वजह है। हालांकि अग्रवाल ने कहा कि 40 माइक्रोन के पॉलिथीन का उपयोग करने के आदेश से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि इस फैसले से कचरे के निपटान में मदद मिलेगी जो समस्या के मूल में है।
एनसीआर की 8 हजार इकाइयों पर जड़ सकता है ताला
2 लाख लोगों के सामने रोजगार का संकट
सालाना कारोबार 300 करोड़ रुपये