पिछले कुछ समय से परमाणु करार को लेकर चल रही राजनीतिक कबड्डी अब लोकसभा में पहुंच गई है।
दो दिवसीय विशेष सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विपक्षी पाले में घुसकर करार-करार बोलने वाले अंदाज में विश्वास मत पेश किया। प्रधानमंत्री के भाषण के बाद विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें पाले में ही घेरने की पुरजोर कोशिश भी की।
विश्वास मत की इस कबड्डी के लिए कुल 16 घंटे का समय निर्धारित किया गया है यानी 12 घंटे की चर्चा के बाद इस पर 22 जुलाई शाम छह बजे मत विभाजन होने की उम्मीद है। बहरहाल, सोमवार की सुबह शुरू हुई इस कबड्डी में बतौर रेफरी अहम भूमिका निभाने वाले लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने इस्तीफा देने के माकपा के निर्देश की परवाह किए बिना सदन की कार्यवाही का संचालन शुरू किया।
प्रधानमंत्री ने एक पंक्ति का विश्वास प्रस्ताव पेश किया कि यह सदन मंत्रिपरिषद में विश्वास व्यक्त करता है। इसके बाद दिए भाषण की शुरुआत प्रधानमंत्री ने गुरु गोविंद सिंह के उध्दरण के साथ की। प्रधानमंत्री के भाषण को संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी नेता सदन प्रणव मुखर्जी और नेता प्रतिपक्ष लालकृष्ण आडवाणी सहित पूरा सदन ध्यान से सुन रहा था। इस दौरान सदन में बदले समीकरण का नजारा दिलचस्प था।
शिबु सोरेन सत्ता पक्ष की दूसरी पंक्ति में सोनिया के पीछे बैठे थे तो सरकार बनवाकर उसे चार साल दो महीने तक चलवाने वाले वाम दल विरोधी खेमे में थे। इतना ही नहीं कभी विरोधी रही सपा सरकार के पक्ष में खड़ी थी। शक्ति परीक्षण के इस खेल में लोकसभा खचाखच भरी नजर आई। हालांकि राजग की ओर से दो सूरमा अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नांडिस नहीं दिखे। सदन की बैठक शुरू होने रेल मंत्री लालू प्रसाद ने खुद ही अकेले नारा लगा दिया।
यह खेल है पुराना
इससे पहले 8 बार पेश हो चुका है विश्वास प्रस्ताव
1979 में पहली बार पेश किया गया था विश्वास प्रस्ताव
… मगर हारीं हैं ज्यादा सरकार ही
पिछले आठ विश्वास मतों में सिर्फ तीन प्रधानमंत्री ही सरकार बचा पाए
5 प्रधानमंत्री या तो मतदान में हार गए या फिर उन्होंने मतदान से पहले ही इस्तीफा दे दिया
…अब आपका क्या होगा सरदार
मनमोहन सिंह बने संसद में विश्वास मत का सामना करने वाले छठे प्रधानमंत्री
एचडी देवेगौड़ा, आई के गुजराल की तरह लोकसभा सदस्य नहीं होने के कारण मनमोहन सिंह भी विश्वास मत के दौरान वोट नहीं डाल पाएंगे
संसद में क्या बोले सूरमा
मैं एक सिख हूं, जो रण छोड़ने की बजाय लड़कर मरने का वरदान चाहता है। परमाणु करार सहित उनकी सरकार ने अभी तक जो भी फैसले किए हैं, देश की जनता के हित में किए। पर मुझे इस बात का अफसोस है कि मेरी सरकार के चार साल के कार्यकाल के बाद अब सदन में विश्वास मत पर चर्चा हो रही है और वह भी ऐसे समय, जब सरकार को महंगाई जैसे मुद्दों से जूझना पड़ रहा है। पिछले चार साल के संप्रग शासन में बसु और सुरजीत ने दूरदर्शी नेतृत्व प्रदान किया।– प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री परमाणु करार पर ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, जैसे यह समझौता दो देशों के बीच नहीं बल्कि दो व्यक्तियों के बीच हो। संप्रग आईसीयू में भर्ती मरीज की तरह हो गई है। हर कोई पहला सवाल यही कर रहा है कि सरकार बचने जा रही है या नहीं। यदि इस सरकार ने गठबंधन धर्म अपनाया होता तो आज यह स्थिति नहीं आती। हम परमाणु ऊर्जा या अमेरिका के साथ नजदीकी संबंधों के खिलाफ नहीं हैं। हम इस सरकार को हराना जरूर चाहते हैं लेकिन अस्थिर नहीं करते। – लालकृष्ण आडवाणी, नेता प्रतिपक्ष
सरकार की चार साल की कमियों के वामदल भी कम दोषी नहीं हैं। आपने सरकार से हर काम अपनी पसंद का करवाया। आपने प्रधानमंत्री को बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश की। सरकार ने अगर कोई अच्छा काम किया तो आपने और गलत किया तो उसके लिए सरकार जिम्मेदार। सिर्फ आपकी वजह से आज चुनाव आयोग को 5 000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। आप (वाम दल) चाहते हैं कि सारी कमी कांग्रेस की ओर हो और अच्छाई आपकी ओर। – रामगोपाल यादव, सपा नेता