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  ताजा खबरें  ई-स्वास्थ्य डेटाबेस के प्रायोगिक परीक्षण की शुरुआत
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ई-स्वास्थ्य डेटाबेस के प्रायोगिक परीक्षण की शुरुआत

बीएस संवाददाताबीएस संवाददाता—September 4, 2020 11:20 PM IST
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देश के महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य तंत्र की शुरुआत होने जा रही है और देश के कुछ हिस्सों में इसका प्रायोगिक परीक्षण भी शुरू किया जा रहा है। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य अभियान (एनडीएचएम) के तहत देश के सभी नागरिकों (स्वैच्छिक भागीदारी के जरिये) को एक विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान पत्र मुहैया कराया जाएगा और उनके स्वास्थ्य डेटा पर नियंत्रण होने के साथ ही उनका डिजिटल निजी स्वास्थ्य रिकॉर्ड भी तैयार किया जाएगा। डॉक्टरों के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों का पंजीकरण भी इसके जरिये होगा।

केंद्र ने पहले ही स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन पर एक मसौदा नीति की पेशकश की है और इसे सार्वजनिक समीक्षा के लिए रखा गया है। इसका पूरा जोर डेटा गोपनीयता बनाए रखने के उपायों पर केंद्रित है ताकि नागरिकों की संवेदनशील स्वास्थ्य जानकारी को सुरक्षित तरीके से गोपनीय रखा जा सके। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य तंत्र (एनडीएचई) में एकत्र किए गए डेटा को केंद्र, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश स्तर पर और स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर संग्रहीत किया जाएगा। उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने पर सरकार का पूरा जोर रहा है लेकिन कभी भी स्वास्थ्य सेवा डेटा तैयार करने की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं। एनडीएचएम में इस रुझान को बदलने की अपार संभावनाएं हैं। इसका मकसद स्वास्थ्य सूचनाओं का एक डेटाबेस तैयार करना है जो देश भर में विभिन्न स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस तरह का व्यापक क्लीनिकल डेटा महामारी का प्रबंधन या जैव चिकित्सा अनुसंधान शुरू करते समय बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। आम भारतीयों के लिए यह बेहतर स्वास्थ्य नतीजे देने में भी अहम भूमिका निभा सकता है क्योंकि एकत्र किए गए डेटा के जरिये डॉक्टरों को रोगी की जरूरतों से मिलान करने में मदद मिलेगी। उजाला सिग्नस हेल्थकेयर के संस्थापक और निदेशक डॉ शुचिन बजाज ने कहा, ‘हम मानते है कि अगर एक एंटी-डायबेटिक दवा मुख्य रूप से मांसाहारी और 6 फुट 2 इंच कद के श्वेत पुरुषों पर प्रभावी रहा है तो यह 5 फुट दो इंच के चावल खाने वाले व्यक्ति पर भी समान रूप से प्रभावी होगा जो भारत के पूर्वी तट पर रहते हैं। यह योजना लंबे समय में, डेटा सेट का विश्लेषण करने और अपना खुद का डेटा सेट बनाने में अहम कदम साबित होगा।’

लद्दाख, चंडीगढ़, पुदुच्चेरी, अंडमान, लक्षद्वीप, दादरा और नागर हवेली के सरकारी अस्पतालों में प्रायोगिक परीक्षण शुरू किया गया है जहां डॉक्टर, मरीजों और डॉक्टर दोनों के नामांकन पर काम कर रहे हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इन छोटे प्रायोगिक परीक्षणों से उन मुद्दों को उजागर करने में मदद मिल सकेगी जो योजना की राह में बाधा बन सकते हैं। लेकिन एक तथ्य पहले से ही स्पष्ट है कि डेटा सुरक्षा के अलावा, डेटा प्रविष्टि और डेटा प्रबंधन एनडीएचएम की सफलता में अहम भूमिका निभा सकते हैं और इसके लिए अतिरिक्त लोगों की जरूरत होगी।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ  पब्लिक हेल्थ के निदेशक दिलीप मावलंकर ने कहा कि डॉक्टरों और नर्सों को मरीजों के डेटा के बारे में जानकारी होना व्यावहारिक नहीं है। मावलंकर कहते हैं,  ‘मिसाल के तौर पर देश में एक आम समस्या है कि आईसीयू नर्स से यह उम्मीद की जाएगी की वह मरीजों की डेटा प्रविष्टि से जुड़ा लिपिकीय काम रोजाना करे। हालांकि इस योजना को सफ ल बनाने के लिए यह जरूरी है कि डेटा प्रविष्टि के काम के लिए कर्मियों को रखा जाए। इस काम के लिए बड़ी तादाद में लोगों की जरूरत होगी।’ कुछ पश्चिमी देशों की तरह भारत के पास ऐसा कोई मॉडल नहीं है जहां परिवार के डॉक्टर का कार्यालय मरीजों का रिकॉर्ड रखता है और वह जरूरत पडऩे पर मरीजों को विशेषज्ञ डॉक्टर के पास भेजने की सिफारिश करता है। जर्मनी में परिवार का डॉक्टर सबसे अहम होता है जो किसी भी नागरिक से जुड़ी जानकारी का स्रोत होता है। अगर इस तरह का ढांचा पहले से ही मौजूद हो तब एनडीएचएम के व्यापक पैमाने वाले कार्यक्रम को लागू करना आसान होगा। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि डेटा प्रबंधन अपेक्षाकृत आसान है लेकिन पहले के डेटा का संग्रह करना बड़ी चुनौती होगी।

अपोलो टेलीहेल्थ के सीईओ विक्रम थापलू ने कहा, ‘पुरानी तारीख वाली डेटा प्रविष्टि और प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है। हालांकि संभावित रूप से इससे टेलीमेडिसन के लिए चीजें बेहद आसान हो जाएंगी। टेलीमेडिसन के लिए सबसे बड़ी चुनौती स्वास्थ्य रिकॉर्ड को अपलोड करना है खासतौर पर वे लोग जो गांव में रह रहे हों।’ थापलू का मानना है कि देश के सुदूर इलाकों में छोटे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के सामने अपने डिजिटल बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने की जरूरत पैदा होगी। एक ही प्रौद्योगिकी मंच पर सभी अस्पतालों को लाना बड़ी चुनौती होगी ताकि वे एक-दूसरे से संपर्क कर सकें। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के पश्चिमी क्षेत्र के अध्यक्ष (स्वास्थ्य सेवा) और हिंदुजा हॉस्पिटल के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) जय चक्रवर्ती ने कहा, ‘विशेष रूप से छोटे प्रतिष्ठानों के लिए पर्याप्त रूप से लोगों का प्रशिक्षण जरूरी है ताकि वे डेटा को समझने के साथ जरूरत पडऩे पर उसके इस्तेमाल में भी सक्षम हों।’ एनडीएचएम में एक विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान पत्र (जो यूपीआई आईडी मॉडल पर आधारित है), व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजिडॉक्टर (डॉक्टरों का डेटाबेस), एक स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री, ई-फार्मेसी और टेलीमेडिसन जैसे महत्त्वपूर्ण स्तंभ शामिल हैं।

एनडीएचएम (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख योजनाओं में से एक) के डिजाइन और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार केंद्रीय एजेंसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण है जिसने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का भी प्रबंधन किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह के डिजिटल अभियान से समाज में अंतर और उभरेगा? हाल ही में एक टेलीविजन चैनल को दिए एक साक्षात्कार में आधार परियोजना से जुड़े सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति नंदन नीलेकणी ने स्वीकार किया कि यह चिंता की बात है लेकिन उनका मानना है कि एनडीएचएम में हर किसी के हाथ में मोबाइल होना जरूरी नहीं है। नीलेकणी ऐसा मानते हैं कि डिजिटल रिकॉर्ड तक सार्वजनिक पहुंच जरूरी है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को एक अच्छी शुरुआत के लिए एनडीएचएम के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की जरूरत है।

मणिपाल हॉस्पिटल्स के इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ सत्यनारायण मैसूर ने कहा, ‘किसी भी योजना को अमलीजामा पहनाने से पहले व्यापक परामर्श, योजना और विमर्श होना चाहिए। आपके लिए सबसे अहम आधार स्वास्थ्य-सेवा पेशेवरों का है। आपको सिर्फ  कुछ मशहूर डॉक्टरों के बजाय इन सब तक पहुंचने की जरूरत है।’ उन्होंने यह भी कहा कि अगर अभियान को सफ ल बनाना है तो निजी क्षेत्र को सरकार के साथ खुद को जोडऩे की जरूरत है। मैसूर कहते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रजिस्टर या अमेरिका में ईएमआरए स्वास्थ्यसेवा के लिए परेशानी का सबब बन गया है। रोगियों की अक्सर यह शिकायत होती है कि डॉक्टर सीधे तौर पर मरीजों से आमने-सामने संपर्क नहीं करते हैं और न ही मरीजों की जांच करते हैं। वे बस एक स्क्रीन को देखते हुए उनसे कई पूर्व निर्धारित सवाल पूछते हैं जिनका उनकी हालत से कोई संबंध नहीं होता है। डॉ मैसूर ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के एक हिस्से के रूप में व्यापक ईएमआर लाने का फैसला करती है तब मरीजों की देखभाल पर और असर पड़ेगा।

विमर्श का एक अन्य पहलू यह है कि इस योजना के तहत मरीजों को कितनी स्वतंत्रता या छूट दी जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देश मरीजों को बहुत अधिक नियंत्रण देते हैं ताकि वे स्वास्थ्य संबंधी जानकारी साझा करने से जुड़ी अनुमति पर खुद ही फैसला करें।

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