सरकार और विपक्ष के बीच विभिन्न मसलों पर तनातनी के बीच संसद का शीतकालीन सत्र निर्धारित समय से एक दिन पहले बुधवार को समाप्त हो गया। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने संसद के ऊपरी सदन में विधायी कार्य कम संपादित होने पर निराशा जताई। विपक्षी दलों के हंगामे और विरोध प्रदर्शन के बाद लोकसभा भी पूरे सत्र के लिए स्थगित हो गई। सरकार ने कहा कि उसने सभी आवश्यक विधायी कार्य पूरे कर लिए हैं इसलिए निर्धारित समय से पहले ही संसद के दोनों सदन स्थगित किए जा रहे हैं।
नायडू ने कहा, ‘राज्यसभा में क्षमता से काफी कम कामकाज हुआ। मैं सभी सदस्यों से इस विषय पर चिंतन करने का आग्रह करता हूं कि इस सत्र को किस तरह और बेहतर बनाया जा सकता था। मैं इस पर ज्यादा कहना नहीं चाहता क्योंकि यह मुझे सख्त टिप्पणी करने पर विवश कर देगा।’ राज्यसभा से 12 सदस्यों के शीतकालीन सत्र से निलंबन के बाद सदन की कार्यवाही में लगातार व्यवधान आया और सरकार एवं विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे। इन सदस्यों को कथित तौर पर इनके अशोभनीय व्यवहार के लिए निलंबित किया गया था। एक सदस्य को राज्यसभा स्थगित होने से एक दिन पहले निलंबित किया गया। नायडू ने सदस्यों से कहा कि उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि जो हुआ वह ठीक नहीं था। उन्होंने कहा, ‘हम सभी को देश के दीर्घकालीन हितों के लिए रचनात्मक एवं सकारात्मक माहौल में काम करना चाहिए।’
शीतकालीन सत्र में 18 बैठकें हुई जिनमें कई मुख्य विधेयक पारित हुए। इनमें कृषि कानून निरस्तीकरण विधेयक और चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक शामिल थे। 11 विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो गए जबकि 13 विधेयक (12 लोकसभा और 1 राज्यसभा में) मौजूदा सत्र में पेश किए गए। लोकसभा की उत्पादकता करीब 82 प्रतिशत और राज्यसभा की करीब 48 प्रतिशत रही।
एक दिलचस्प बात यह देखने में आई कि कृषि कानून निरस्त करने के बाद सरकार ने यह स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि इस कानून में कुछ प्रावधान किसानों के खिलाफ जा रहे थे। सरकार की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के वर्ष में सभी को एक साथ समोवशी विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए सरकार ने कृषि कानून निरस्त किया है।
बुधवार को ऊपरी सदन राज्यसभा में विनियोग विधेयक पर भारी हंगामा हुआ। संसद में सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी के बीच चुनावी माहौल की भी झलक मिली। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने संसद स्थगित होने के बाद कहा कि विपक्षी दल 2019 में भारतीय जनता पार्टी को मिली भारी सफलता अब तक पचा नहीं पाए हैं। जोशी ने कहा कि सरकार संसद निर्बाध ढंग से चलाना चाह रही थी मगर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच कई कार्य दिवसों पर पानी फिर गया। उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी पूर्ण रूप से राजनीति में नहीं हैं। हो सकता है कि वह नए वर्ष पर उत्सव मनाने कहीं बाहर जा रहे हों।’
हालांकि राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने विधेयक आसानी से पारित कराने के लिए एक सोची-समझी नीति के तहत 12 सदस्यों को शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया। उन्होंने कहा, ‘शीतकालीन सत्र की शुरुआत 12 सांसदों के निलंबन के साथ शुरू हुई। मॉनसून सत्र में हुई घटना के आधार पर शीतकालीन सत्र में उन्हें निलंबित करना पूर्णतया गलत था। हम संसद में बेरोजगारी, महंगाई एवं अन्य विषयों पर चर्चा करना चाह रहे थे।’
लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि विपक्ष संसद की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी निभाना चाहती थी मगर सरकार अजय कुमार मिश्र टेनी के विषय पर बात करने के लिए राजी नहीं थी। चौधरी ने कहा, ‘जब लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केंद्रीय मंत्री का नाम आया तो हमने सरकार के साथ इस विषय पर चर्चा करनी चाही। हमने टेनी को बर्खास्त करने की मांग की। अगर सरकार विपक्ष के प्रश्नों का उत्तर नहीं देना चाहती थी तो इसके बाद जो हुआ उसके लिए पूरी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की है।’
विधायी कार्यों पर नजर रखने वाली एजेंसी पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार ऊपरी सदन में वित्तीय मामलों पर 2.6 घंटे चर्चा हुई जबकि अन्य गतिविधियों पर इससे दोगुना अधिक 5.6 घंटे चर्चा हुई। लोकसभा में 11.6 घंटे प्रश्नों पर खर्च हुए जबकि राज्यसभा में इस मद में 6.8 घंटे चले गए। लोकसभा में गैर-विधायी कार्यों (विशेष प्रस्ताव आदि) पर 37 घंटे बहस चली जबकि राज्यसभा में इस पर 8.9 घंटे खर्च हुए।
