केंद्र सरकार ने कूलिंग उद्योग में उपयोग होने वाली पर्यावरण के लिए नुकसानदायक गैसों को चरणबद्घ तरीके से कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के किगाली समझौते के अनुसमर्थन को मंजूरी दे दी। इस समझौते का मकसद ओजोन परत को हानि पहुंचाने वाले गैसों की खपत को घटाना है।
किगाली समझौता जलवायु परिवर्तन पर पहला और एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है। बहरहाल, हाइड्रोफ्लोरोकार्बनों (एचएफसी) का इस्तेमाल करने वाला एयर कंडिशनिंग और प्रशीतन (रेफ्रीजरेशन) बाजार कई वर्षों से पर्यावरण के अधिक अनुकूल तकनीकों का उपयोग करना आरंभ कर चुका है। हालांकि, कूलिंग उद्योग का कहना है कि कंपनियां पहले से ही एचएफसी में कटौती के लिए जरूरी अनुपालन कर रही हैं और कई अग्रणी कंपनियां इसका इस्तेमाल तक नहीं करती हैं।
सरकार की इस पहल से अनुपालन और समयबद्घ तरीके से हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उपयोग में कटौती सुनिश्चित होगी। एचएफसी के उत्पादन पर रोक लगने से आठ वर्ष पूर्व 2022 तक एयर कंडिशनर के उपयोग की वृद्घि सालाना 1 करोड़ इकाई से अधिक रहने के आसार हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 तक चरणबद्घ तरीके से एचएफसी में कटौती करने के लिए राष्टï्रीय स्तर पर एक रणनीति विकसित करने का निर्णय लिया है ताकि उद्योग कार्रवाई करने के लिए एक दिशानिर्देश तैयार कर सके।
एचएफसी के उपयोग को चरणबद्घ तरीके से समाप्त करने के लिए रवांडा के किगाली में आयोजित पार्टीज की 28वीं बैठक में अक्टूबर 2016 में किगाली समझौते का अपनाया गया था। इन एचफसी के स्थान पर कम ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (जीडब्ल्यूपी) वाले प्रशीतकों का उपयोग करना होगा। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन को तैयार करने वाले आईफॉरेस्ट के मुख्य कार्याधिकारी चंद्र भूषण ने कहा कि इसके अनुसमर्थन का मतलब है कि भारत को 2028 में एचएफसी की खपत और उत्पादन बंद करना होगा, 2032 तक इसमें 10 फीसदी और 2047 तक इसमें 85 फीसदी की कटौती करनी होगी।
उन्होंने कहा, ‘ऐसा करने पर भारत अपने दम पर ही 2050 तक 2 से 6 अरब टन कार्बन के बराबर उत्सर्जन में कमी लाएगा। यह आंकड़ा मौजूदा स्तर पर भारत के दो वर्ष के उत्सर्जन के बराबर है।’ 2016 में जब पहली बार किगाली समझौता अपनाया गया था तब भारत के लिए 2032 तक एचएफसी में 10 फीसदी कटौती करने का लक्ष्य रखा गया था। तब अग्रणी कंपनियों ने कहा था कि इतना समय उद्योग के लिए परिवर्तन को अपनाने के लिए पर्याप्त है। उसके बाद से कई ऐसी निर्माता कंपनियों ने अपने कंप्रेसर विनिर्माण को भारत में स्थानांतरित किया ताकि यहां के कम कठोर पर्यावरण नियमों का लाभ उठाया जा सके।
ब्लू स्टार के प्रबंध निदेशक बी त्यागराजन ने कहा कि विगत पांच वर्षों में बदलाव को पहले ही लागू किया जा चुका है। उन्होंने कहा, ‘अब शायद ही कोई ऐसी कंपनी रह गई होगी जो पुरानी पीढ़ी की एचएफसी तकनीक का उपयोग करती हो।’ ब्लू स्टार देश की शीर्ष पांच एसी विनिर्ताताओं में से एक है जिसका बाजार के 10 फीसदी से अधिक हिस्से पर नियंत्रण है।
इस समाचार पत्र ने जितनी भी कंपनियों से बात की उनमें से अधिकांश ने कहा कि वे अब आर32 का उपयोग कर रही हैं जो कम जीडब्ल्यूपी वाला गैस है। कैरियर मीडिया इंडिया के चेयरमैन कृष्ण सचदेवा ने कहा, ‘वीआरएफ जैसी बड़ी इकाइयों और बड़े वाहिनी वाले स्पिलिटों के लिए आर410ए से बदलाव का वैश्विक कार्य जारी है। इस मोर्चे पर सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका की है जो अब भी आर410ए का उपयोग कर रहा है। अधिकांश दूसरे देश पहले आर32 का उपयोग शुरू कर चुके हैं।’