सरकार कर समीक्षा के पुराने मामलों से निपटने के लिए कानूनी विकल्प तलाश रही है। इनमें आयकर अधिनियम में अध्यादेश जोडऩा भी शामिल है। कर समीक्षा के इन मामलों में पुराने नियमों के तहत 1 अप्रैल से 30 जून के बीच नोटिस जारी हुए थे।
आयकर विभाग के इस कदम को कई कंपनियों और व्यक्तिगत करदाताओं ने उच्च न्यायालयों में चुनौती दी है। उन्होंने इन नोटिसों की वैधता को चुनौती देती याचिकाएं दायर की हैं। उनकी दलील है कि विभाग का यह कदम अवैध और मनमाना है क्योंकि आयकर अधिनियम के पुराने प्रावधानों के तहत अब कार्रवाई नहीं हो सकती।
दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में दर्जनों करदाताओं को विभाग के नोटिस पर उच्च न्यायालयों से अंतरिम स्थगन आदेश मिल गया है। मामले की जानकारी रखने वाले दो अधिकारियों ने कहा कि अगर न्यायालयों के आदेश अनुकूल नहीं रहते हैं और उस अवधि में जारी नोटिस वापस लेने के लिए कहा जाता है तो इस तरह के कानूनी उपायों पर विचार किया जा सकता है। अधिकारियों ने कहा कि विभाग उच्च न्यायालयों के अंतरिम आदेशों का अध्ययन कर रहा है और संबंधित मामलों में तर्कसंगत जवाब भी तैयार कर रहा है। पुराने आय कर कानून 31 मार्च तक ही प्रभावी थे और उनके तहत पिछले छह साल के कर मामलों को समीक्षा के लिए दोबारा खोला जा सकता था। मगर वित्त विधेयक, 2021 पारित होने के बाद ये प्रावधान खत्म हो गए। मगर कर विभाग ने इसे 30 जून तक वैध करार दिया और उसी के मुताबिक 1 अप्रैल से 30 जून तक के बीच हजारों करदाताओं को नोटिस जारी कर दिए।
नया आयकर कानून अप्रैल से प्रभावी हो गया है। इसमें केवल पिछले तीन साल के मामले समीक्षा के लिए खोले जा सकते हैं। 50 लाख रुपये या अधिक की कर चोरी वाले फर्जीवाड़े के गंभीर मामलों को 10 साल तक खोला जा सकता है।
कर विभाग का मानना है कि करदाता विभाग के किसी खास कदम को चुनौती नहीं दे सकते क्योंकि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच कर अनुपालन से जुड़ी विभिन्न समय सीमा बढ़ाई गई है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने महामारी की दूसरी लहर से पैदा हुई स्थिति के कारण अवधि बढ़ाए जाने की जानकारी दी थी।
एक अधिकारी ने कहा, ‘महामारी की दूसरी लहर और संक्रमण की रोकथाम के लिए लगी पाबंदी को देखते हुए सरकार ने पुराने मामलों की दोबारा समीक्षा करने की अवधि 30 जून तक कर दी थी। यह कर अनुपालन के संबंध में दी गई विभिन्न ढील के अनुरूप ही थी। अगर करदाताओं को राहत देने के लिए उन्हें कर अनुपालन के लिए अतिरिक्त समय दिया जा सकता है तो सरकारी तंत्र को भी मामलों की छानबीन के लिए अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि अब कानूनी मसला यह है कि संसद द्वारा संशोधित तारीख को अधिसूचना के जरिये बढ़ाया जा सकता है या नहीं। अगर न्यायालय का यह निर्देश आता है कि अधिसूचना संशोधन को दरकिनार नहीं कर सकती तो उस स्थिति में अध्यादेश एक विकल्प हो सकता है। सूत्रों का कहना कि सरकार अंतिम आदेश आने की प्रतीक्षा कर रही है। इस मामले की सुनवाई अब अगस्त और सितंबर में होनी है।