मुंबई के मूल निवासियों में शुमार कोली समाज ने तेल-गैस क्षेत्र की सरकारी कंपनी ओएनजीसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है क्योंकि उनके मुताबिक इस कंपनी की वजह से उनके सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है।
इस तबके की रोजी-रोटी मुख्य रूप से मछली पकड़ने के काम से ही जुड़ी है। लेकिन समुद्र में कम होती मछलियां और तय समय से पहले ही समुद्र से दूर रहने की हिदायतों से इनका काम ठंडा पड़ता जा रहा है।
मछुआरों का कहना है कि इसके पीछे ओएनजीसी के तेल कुओं की खुदाई ही असली वजह है। लेकिन ओएनजीसी का कहना है कि इस तरह का काम पिछले 30 सालों से हो रहा है और उसके लिए कंपनी मत्स्य एवं पशुसंवर्धन मंत्रालय से अनुमति लेने के साथ ही साथ हर्जाना भी देती रही है।
देश में सबसे ज्यादा मछली निर्यात करने वाले राज्य में मछली कारोबार करने वालों के सामने ही यह संकट आन पड़ा है। हर साल 10 जून से 15 अगस्त तक समुद्र में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी जाती है। यह रोक सरकार और कोली समाज दोनों लगाते हैं।
दरअसल मानसून का मौसम होने के कारण ही दोनों पक्ष इसके लिए सहमत होते हैं क्योंकि समुद्र में उठने वाली ऊंची लहरों और तेज समुद्री हवाओं से जान माल का खतरा बना रहता है। इसके अलावा मछलियों के अंडे देने का भी यही समय होता है। लेकिन इस बार अरब सागर में तेल कुओं की खुदाई और खोज का काम चालू होने की वजह से मछुआरों को एक महीना पहले ही समुद्र में न जाने की हिदायत दी जा रही है।
अखिल भारतीय मच्छीमार कृति समिति के अध्यक्ष दामोदर तांडेल कहते हैं कि ओएनजीसी ने तकरीबन 800 कुओं में तेल खोज का काम शुरू कर दिया जिससे उस इलाके में मछुआरों को जाने से रोके जाने की बात कहीं जा रही है। मछुआरे अपना काम नहीं बंद करेंगे चाहे जो हो जाए क्योंकि यह 20 हजार नावों के साथ एक लाख मछुआरों के पेट का सवाल है।
तांडेल कहते हैं कि ओएनजीसी का सालाना फायदा 1,500 करोड़ रुपये के आसपास है जिसमें से 500 करोड़ रुपये बांबे हाई से मिलता है। लेकिन ओएनजीसी की वजह से इस इलाके में मछलियां कम हो गई, क्योंकि तेल रिसाव की वजह से मछलियां मर जाती हैं और नए अंडे भी नहीं देती हैं।
तांडेल बोले कि इसके लिए ओएनजीसी से 100 करोड़ रुपये प्रति वर्ष हर्जाना मांगा गया। इस मुद्दे पर पेट्रोलियम मंत्रालय, मत्स्य एवं पशुसंवर्धन मंत्रालय, ओएनजीसी और मछुआरों के बीच बैठक भी हो चुकी है।
पेट्रोलियम मंत्रालय ने 2004 में 93 लाख रुपये देने का वादा यह कहते हुए कहा था कि सर्वेक्षण के बाद बाकी राशि तय की जाएगी लेकिन आज तक एक रुपया भी हम लोगों को नहीं दिया गया है। मछुआरे इसे रोजी-रोटी का सवाल बनाकर आंदोलन करने की तैयारी में जुट गए हैं जिस पर पूरे महाराष्ट्र के मछुआरों की 9 मई को अलीबाग में बैठक होगी।
लेकिन ओएनजीसी की उप महाप्रबंधक नारायणी माहिल का कहना है कि जिन क्षेत्रों में काम चल रहा है वहां पर मत्स्य पालन विभाग और मछुआरों के नेताओं से बातचीत के बाद काम शुरू किया गया है। काम शुरू होने के बावजूद दो तिहाई हिस्सा मछली पकड़ने के लिए खुला रखा गया है। यह काम कोई नया नहीं है पिछले 30 सालों से हर साल मानसून आने के एक दो महीना पहले ओएनजीसी कुछ इलाकों में तेल एवं गैस खोज का काम करती है जिसके लिए मत्स्य एवं पशुसंवर्धन मंत्रालय से अनुमति भी ली जाती है।
तगड़ा जाल
एक लाख मछुआरों के सामने रोजगार का संकट
ओएनजीसी को बता रहे हैं वजह, 100 करोड़ रु. का हर्जाना मांगा
मानसून से एक महीना पहले ही सागर से दूर रहने का निर्देश
ओनएजीसी का कहना कि 30 साल से ऐसे ही हो रहा है काम
कंपनी का कहना कि देते हैं पूरा हर्जाना
