वित्त मंत्रालय के अधिकारी अगले सप्ताह वैश्विक रेटिंग एजेंसियों से मुलाकात करेंगे। सूत्रों ने कहा कि इसमें भारत की सॉवरिन रेटिंग बढ़ाने वकालत की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस के साथ 28 सितंबर को बैठक से इसकी शुरुआत होगी।
मंत्रालय ने महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी की प्रस्तुति की योजना बनाई है, जिससे रेटिंग बढ़ाने की मांग को समर्थन मिल सके। इसमें राजकोषीय स्थिति पर भी जोर होगा और दिखाया जाएगा कि कोविड-19 की दूसरी लहर की अफरातफरी के बावजूद किस तरीके से सुधार हुआ है।
सूत्रों ने कहा कि सरकार से आंकड़े लेने के बाद रेटिंग एजेंसियां विभिन्न देशों के अर्थशास्त्रियों निवेश बैंकरों के साथ सार्वजनिक व निजी कारोबारियों से फीडबैक लेंगी। विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निवेश किए जाने के फैसलों में अर्थव्यवस्था की सॉवरिन रेटिंग अहम भूमिका निभाती है। यही वजह है कि सरकार चाहती है कि इन वैश्विक प्लेटफॉर्मों पर ज्यादा ध्यान दिया जाए, जिससे निवेश में वृद्धि हो सके।
मूडीज ने पिछले साल जून में अर्थव्यवस्था की ढांचागत कमजोरियों, नीतियों की प्रभावशीलता कम होने और महामारी के पहले भी सुधार की रफ्तार कम होने का हवाला देते हुए भारत की सॉवरिन रेटिंग कम करते हुए इसे न्यूनतम निवेश ग्रेड में रखा था। इसने अपनी रेटिंग में नकारात्मक परिदृश्य बताया था।
इस बदलाव ने मूडीज की रेटिंग को फिच और स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की श्रेणी में ला दिया था, जिन्होंने भारत को न्यूनतम निवेश ग्रेड में रखा है। बहरहाल एसऐंडपी ने भारत की रेटिंग को स्थिर परिदृश्य में रखा है।
इस साल मई महीने में मूडीज ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था में 2020 के तेज संकुचन के बाद तेजी से सुधार होगा, लेकिन कोरोनावायरस की दूसरी लहर की वजह से जोखिम बढ़ गया था और दीघावधि के हिसाब से इसका क्रेडिट पर असर पडऩे की संभावना बढ़ गई थी। भारत के क्रेडिट प्रोफाइल को जोखिम के साथ वृद्धि में मंदी, सरकार की कमजोर वित्तीय स्थिति और वित्तीय क्षेत्र का बढ़ता जोखिम अर्थव्यवस्था को लगने वाले झटके को और बढ़ा रहा है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वित्त वर्ष 2020-21 की समान अवधि में 24.4 प्रतिशत संकुचन के कम आधार पर 20.1 प्रतिशत की रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है। स्थिर मूल्य पर जीडीपी 2019-20 की पहली तिमाही की तुलना में अभी भी 9.2 प्रतिशत कम है। अप्रैल-जून 22 के दौरान वृद्धि इसके पहले की तिमाही वित्त वर्ष 21 की चौथी तिमाही की तुलना में 16.9 प्रतिशत कम रही है।
