वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच देश की प्रजनन दर – प्रति महिला बच्चों की दर 2.2 से घटकर दो रह गई है। जनसंख्या विशेषज्ञों ने कहा है कि इस बदलाव के लिए बदलती जीवनशैली, महिला सशक्तीकरण और सरकारी स्वास्थ्य योजनाएं जिम्मेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार भारत की प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन दर 2.1 से नीचे आ गई है। प्रतिस्थापन स्तर से नीचे की प्रजनन दर जनसांख्यिकीय का परिपक्व आबादी की ओर जाने का संकेत देती है।
जनसंख्या अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कारण संस्थागत प्रसव व्यवस्था में सुधार हुआ है, जिससे शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है। इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ में जनसंख्या अनुसंधान केंद्र के प्रमुख सुरेश शर्मा ने कहा, ‘प्रजनन दर में कमी आई है क्योंकि कई लोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए दो बच्चे के मानदंड को अपना रहे हैं।’ सर्वेक्षण के चौथे और पांचवें दौर के बीच देश में शिशु मृत्यु दर और पांच साल से कम उम्र में मृत्यु दर क्रमश: 40.7 से घटकर 35.2 और 49.7 से 41.9 रह गई है। हालांकि इसका असर सुनियोजित प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता पर नहीं पड़ता है। ऑक्सफैम के शोध सलाहकार अमिताभ कुंडू ने कहा, ’18 वर्ष से कम उम्र में शादी करने वाली महिलाओं का प्रतिशत कम हो गया है, जबकि शादी नहीं करने वाली और तलाक लेने वाली महिलाओं का प्रतिशत बढ़ गया है। इसलिए प्रजनन दर घट रही है।’
कुंडू ने कहा कि दो की कुल प्रजनन दर के साथ जनसंख्या अनुमान से जल्दी स्थिर होने की संभावना है और हम डेढ़ दशक में अधिक निर्भरता की गंभीर समस्या का सामना करेंगे, जैसा कि आज चीन सामना कर रहा है। जहां एक ओर 37 में से 32 राज्यों में प्रजनन स्तर में गिरावट देखी गई, वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु और केरल ने पिछले पांच वर्षों में इस प्रवृत्ति को उलट दिया। केरल में प्रजनन दर 1.6 से बढ़कर 1.8 और तमिलनाडु में 1.7 से बढ़कर 1.8 हो गई है। इस अवधि के दौरान तेलंगाना, त्रिपुरा और पंजाब में प्रजनन दर समान रही है। हालांकि इस वृद्धि के बावजूद तमिलनाडु और केरल पूरे देश में सबसे कम प्रजनन दर वाले राज्यों में शामिल थे।
बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर में प्रजनन स्तर सर्वाधिक है, यहां तक कि राष्ट्रीय औसत से भी अधिक। प्रजनन विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि प्रजनन दर में गिरावट किसी गंभीर समसामयिक कारकों का संकेत होते हैं। प्रजनन उपचार क्लीनिक सीड्स ऑफ इनोसेंस ने पिछले एक साल के दौरान मरीजों की संख्या में सात प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी है। सीड्स ऑफ इनोसेंस ऐंड जेनेस्ट्रिंग डायग्नोस्टिक्स की संस्थापक और प्रजनन विशेषज्ञ गौरी अग्रवाल ने कहा कि जीवनशैली, व्यवसाय, देर से शादी, बाद में स्वस्थ प्रसव सुनिश्चित करने के लिए एग फ्रीजिंग ऐसे सभी कारक हैं, जिनसे वर्तमान में प्रजनन दर कम हो रही है। जहां एक ओर बिहार में प्रति महिला औसतन तीन बच्चे हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में प्रजनन स्तर 2.4 था, जबकि झारखंड का औसत 2.3 रहा। बिहार उन प्रमुख राज्यों में से भी एक था, जहां प्रजनन स्तर में सबसे तेजी से गिरावट देखी गई है। यहां यह स्तर 3.4 से तीन रह गया।
नागालैंड और लद्दाख में प्रजनन स्तर में एक अंक तक की गिरावट आई और यह क्रमश: 2.7 से 1.7 और 2.3 से 1.3 तक 1 अंक गिर गया। ग्रामीण प्रजनन स्तर 2.1 की दर के साथ शहरी प्रजनन स्तर 1.6 से अधिक था। जहां एक ओर केवल पांच राज्यों में ही प्रजनन स्तर राष्ट्रीय औसत से अधिक था, वहीं दूसरी ओर नौ राज्यों में ग्रामीण इलाकों में प्रजनन स्तर 2.1 या उससे अधिक था। दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में प्रजनन स्तर 2.5 था, जबकि मध्य प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में प्रजनन दर 2.1 थी। बिहार के अलावा ज्यादातर शहरी केंद्रों में प्रजनन दर दो से कम थी।
देश के लिंगानुपात में सुधार
भारत का संपूर्ण लिंगानुपात – प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या जन्म के समय लिंगानुपात के 1,000 अंक को पार करते हुए अब विकसित देशों की जमात में आ गया है। पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार यह अनुपात शहरी केंद्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में भी बेहतर है।
एनएफएचएस 2019-2021 सर्वेक्षण के आंकड़े इस बात की ओर संकेत करते हैं कि देश ने पिछले पांच वर्षों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। वर्ष 2015-16 में लिंगानुपात 991 था, जो बढ़कर 1020 हो गया है। हालांकि राज्य-वार विश्लेषण से पता चलता है कि 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अब भी महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक हैं। ग्रामीण क्षेत्रों ने शहरी केंद्रों की तुलना में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है। जहां एक ओर 14 राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में लिंगानुपात पुरुषों के पक्ष में अधिक था, वहीं 22 राज्यों में शहरी क्षेत्रों के मामले में लिंगानुपात पुरुषों के पक्ष में था।
ऑक्सफैम के शोध सलाहकार अमिताभ कुंडू ने कहा ‘यह देखा गया है कि पिछड़े राज्यों और जिलों में महिला पुरुष अनुपात बेहतर है, क्योंकि चिकित्सा सुविधाएं अब भी आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं। जिन जिलों में ये उपलब्ध हैं, वहां लिंग निर्धारण बढ़ जाता है और लिंगानुपात में गिरावट आती है।’ केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव में प्रति 1,000 पुरुषों पर 775 महिलाओं की संख्या के साथ सबसे खराब शहरी लिंगानुपात था। सभी राज्यों में दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में 859 के साथ सबसे खराब लिंगानुपात रहा। कुंडू ने कहा कि विकास महिलाओं को सशक्त तो बना सकता है, लेकिन इससे बच्चियों की संख्या में कमी आती है। उन्होंने कहा कि देश के अधिकांश उत्तरी राज्यों के मामले में ऐसा ही है। इसी वजह से बच्चों के लिए शहरी लिंगानुपात ग्रामीण लिंगानुपात की तुलना में कम है। कुल मिलाकर शहरी लिंगानुपात ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पुरुष के प्रवास की वजह से भी कम रहता है। इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015-16 की तुलना में छह राज्यों में लिंगानुपात में गिरावट देखी गई। विशेषज्ञों ने कहा कि जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट गर्भधारण से पहले और प्रसव पूर्व निदान की तकनीकों के मानदंडों को मजबूत करने की सख्य जरूरत को बताता है।
वर्ष 2015-16 की तुलना में हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़ और लद्दाख में लिंगानुपात में गिरावट देखी गई है। दूसरी ओर लक्षद्वीप में लिंगानुपात वर्ष 2015-16 के 1022 से बढ़कर 1,187 हो गया है। इस अवधि के दौरान दिल्ली में लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में 59 बढ़ा है। हालांकि देश में जन्म के समय लिंगानुपात अब भी प्रति 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएं था, जिसमें वर्ष 2015-16 के 919 से सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी प्रति 1,000 पुरुषों के जन्म पर 952 महिलाओं के जन्म के प्राकृतिक मानक से कम रहा।