अस्पताल में बेड, डॉक्टरों की उपलब्धता जहां कोविड-19 महामारी से लडऩे के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, वहीं अंतिम परिणाम राज्य स्तरीय राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर करता है जो मौजूदा सुविधाएं मुहैया कराता है और स्वास्थ्य खर्च की प्रक्रिया को तेज करता है।
यह बात इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च की रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यही कारण है कि स्वास्थ्य खर्च, बुनियादी ढांचा और कोविड-19 संबंधित परिणामों के मध्य मिश्रित परिणाम नजर आते हैं और एक एक के बीच अलग से सामंजस्य नजर नहीं आता।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अस्पताल में बेड और डॉक्टरों की उपस्थिति कोविड-19 के मामलों के दबाव से जूझने के लिए जरूरी है लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रसार का पता लगाने और इसे रोकने के लिए वृहत स्तर पर कोविड-19 की जांच और इसके मामलों पर नजर बनाए रखना भी जरूरी है जो कि सक्रिय, व्यापक और मजूबत प्रशासनिक समर्थन के बिना संभव नहीं है। साथ ही इसके लिए राज्य सरकारों की ओर से अतिरिक्त स्वास्थ्य खर्च किए जाने की आवश्यकता है।’
उदाहरण के लिए रिपोर्ट से पता चलता है कि भले ही दिल्ली सरकार अपने राजस्व खर्च का सर्वाधिक भाग (16 फीसदी) स्वास्थ्य पर खर्च करती है, यहीं पर प्रति 10,000 आबादी पर सर्वाधिक मामले (292) और मृत्यु (4.7) फीसदी है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के वित्त वर्ष 2017 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा के मुताबिक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च- केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर की सरकार की ओर से किया जाने वाला व्यय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 1.2 फीसदी थी।
इंडिया रेटिंग्स में प्रधान अर्थशास्त्री और सार्वजनिक वित्त के निदेशक डॉ सुनील कुमार सिन्हा द्वारा लिखी गई अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसका मतलब है कि देश में स्वास्थ्य देखभाल लागत का एक बड़ा हिस्सा गैर-सरकारी संस्थाओं को वहन करना होता है जिनके परिवारों का आउट ऑफ पॉकेट खर्च जिसमें चिकित्सा बीमा भी शामिल है जीडीपी का 2.2 फीसदी है और शेष 0.4 फीसदी के लिए गैर सरकारी संगठन, बाह्य दाता या स्थानीय निकाय जिम्मेदार हैं।’
रिपोर्ट में कहा गया है वित्त वर्ष 2017 में देश का कुल स्वास्थ्य व्यय जीडीपी का 3.8 फीसदी रहा जो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और उभरती अर्थव्यवस्थाओं दोनों से काफी कम है। यह ब्राजील, चीन, रूस, अर्जेन्टीना और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से कम व्यय है।
भारत में मौजूदा स्वास्थ्य खर्च में सरकार की हिस्सेदारी केवल 27.1 फीसदी है जबकि 62.4 फीसदी खर्च परिवार उठाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अस्पताल में भर्ती होने के मामले में 60 फीसदी से अधिक ग्रामीण परिवार और 40 फीसदी शहरी परिवार रोगी की देखभाल के भुगतान के लिए कर्ज लेते हैं, अपनी संपत्ति बेचते हैं या मित्रों और संबंधियों से मिलने वाले योगदान पर भरोसा करते हैं।’
रिपोर्ट में कहा गया है आउट ऑफ पॉकेट खर्च की इतनी बड़ी हिस्सेदारी होने से परिवार के बजट पर वित्तीय दबाव पड़ता है और अधिकांश मामलों में कमजोर परिवार कर्ज और गरीबी के दुष्चक्र में फंस जाते हैं।
