दिल्ली-हरियाणा सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन को ‘अप्रत्यक्ष राजनीतिक अप्रत्याशित घटना’ मानने पर विचार चल रहा है। अगर ऐसा हो जाता है तो इससे देश के सबसे व्यस्त राजमार्गों में से एक के टोल संग्रहकर्ता राजस्व के नुकसान की भरपाई करने में सक्षम हो सकेंगे।
पिछले साल राष्ट्रीय लॉकडाउन को अप्रत्याशित घटना (फोर्स मेजर) माना गया था और केंद्र सरकार ने देश भर में टोल ऑपरेटरों को इसी तरह की छूट दी थी। ‘अप्रत्यक्ष राजनीतिक अप्रत्याशित घटना’ की अनुमति देने का प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने तैयार किया है और इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के समक्ष रखा गया है।
मंत्रालय को लिखे गए एक पत्र में एनएचएआई ने कहा है कि इसे राजनीतिक अप्रत्याशित घटना के रूप में देखा जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि इसे देखते हुए कंपनी को मूल वित्तीय पैकेज के मुताबिक ब्याज और कर्ज के भुगतान की अवधि बढ़ाई जा सकती है।
एनएचएआई का मानना है कि किसानों के प्रदर्शन की वजह पर प्लाजा पर टोल वसूली रुक गई है।
एनएचएआई ने कहा, ‘यह फैसला किया गया है कि उपरोक्त विरोध प्रदर्शन की वजह से होने वाले नुकसान का समाधान कंसेसन एग्रीमेंट के प्रावधानों के मुताबिक किया जाना चाहिए।’
समझौते की कुछ धाराओं में कहा गया है कि अगर परियोजना डेवलपर कोशिश करने के बावजूद शुल्क संग्रह में सफल नहीं होता है या प्राधिकरण द्वारा शुल्क संग्रह रद्द करने का निर्देश दिया जाता है तो कंसेसन अवधि उतनी बढ़ाई जा सकती है, जितनी अवधि तक कंसेसनायर को शुल्क संग्रह से रोका गया है।
अगर शुल्क का आंशिक संग्रह होता है या रोजाना का संग्रह औसत रोजाना शुल्क के 90 प्रतिशत से कम रहता है तो प्राधिकरण कंसेसन की अवधि, शुल्क में रोजाना होने वाले नुकसान के अनुपात में बढ़ा सकता है। जहां तक कर्ज पर ब्याज भुगतान की बात है, इसका भुगतान मूल वित्तीय पैकेज के मुताबिक किया जाना चाहिए, जो फाइनैंशियल क्लोजर के समय तय किया गया था। कंसेसनायर को परिचालन एवं रखरखाव (ओऐंडएम) पर आने वाले व्यय का ब्योरा प्राधिकरण को देना होगा। किसी अन्य भुगतान के मामले में प्राधिकरण विभिन्न मामलों के आधार पर फैसला कर सकती है। प्राधिकरण ने यह भी सुझाव दिया है कि कुल दावे का 75 प्रतिशत का भुगतान तत्काल किया जा सकता है, जिससे रिकंसिलिएशन मार्जिन बनाए रखा जा सके। किसानों का प्रदर्शन 25 नवंबर, 2020 को शुरू हुआ था, जब मुख्य रूप से पंजाब व हरियाणा के किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की ओर कूच किया और कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की मांग की। किसानों का मानना है 3 कृषि कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी खत्म कर देंगे और उन्हें बड़े कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में छोड़ दिया जाएगा।
