दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु गुणवत्ता सबसे खराब स्थिति में पहुंचने के बाद केंद्र सरकार एक नया ‘वायु प्रदूषण आयोग’ स्थापित करने के लिए अध्यादेश लेकर आई है।
आयोग की घोषणा के बाद एक पखवाड़े का समय बीत गया है और इसके प्रमुख सदस्य एवं अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। आयोग ने 9 नवंबर को ‘सार्वजनिक भागीदारी’ के लिए 10-सूत्री सलाह जारी की है जिसमें निजी परिवहन को कम करने से लेकर धूल को नियंत्रित करने तक के उपाय शामिल हैं।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी ऐंड क्लीन एयर के विश्लेषक सुनील दहिया कहते हैं, ‘ये बहुत सामान्य सिफारिशें हैं और कुछ सिफारिशों को लागू करने के लिए किसी निकाय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। आयोग के जरिये लक्षित तरीके से उत्सर्जन को कम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों को निर्देशित करते हुए बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा।’ हालांकि उन्होंने कहा कि आयोग अभी शुरुआती दिनों में है, इसलिए फिलहाल इसकी कार्यप्रणाली को लेकर हमें इंतजार करना चाहिए।
ऐसा पहली बार है जब केंद्र ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (ईपीए) 1986 के तहत वायु प्रदूषण के लिए एक विधायी आयोग का गठन किया है। इसने 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद गठित मौजूदा पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) को बदल दिया।
आयोग को वायु प्रदूषण करने वाले किसी भी उद्योग या संचालन को बंद करने या प्रतिबंधित करने का अधिकार दिया गया है। यह प्रदूषणकारी स्रोतों को बिजली एवं पानी की आपूर्ति को भी नियंत्रित कर सकता है। किसी भी तरह की समस्या आने पर आयोग के पास प्रदूषणकारी स्थल को आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत जब्त करने और संहिता की धारा 94 के तहत वारंट जारी करने के अधिकार होंगे।
हालांकि आयोग के इन अधिकारों का विरोध शुरू हो चुका है। आयोग का एक प्रमुख कार्य पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन और निर्वहन के लिए मानकों को तैयार करना है, जिसमें पराली जलाना भी शामिल है। धान की फसल की कटाई के बाद अक्टूबर के मध्य से पराली जलाना शुरू हो जाता है और उत्तर भारतीय किसान गेहूं की फसल के लिए खेत खाली कर रहे हैं। एनसीआर क्षेत्र में हवा पीएम 2.5 के स्तर में वृद्धि का यह एक बड़ा कारण है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के अनुसार, वर्ष 2020 में 1 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख उत्तर भारतीय राज्यों में पराली जलाने की लगभग 74,873 घटनाएं हुई हैं, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 42 प्रतिशत ज्यादा हैं। इन घटनाओं में पंजाब सबसे आगे है, जहां पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 34.28 प्रतिशत की तेजी आई है। अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा (एआईकेएमएस) के महासचिव आशीष मित्तल ने बताया कि आयोग के पास राज्यों को निर्देश जारी करने के अधिकार हैं लेकिन वह केंद्र को आदेश नहीं दे सकता, जो राज्यों के अधिकारों का अधिग्रहण है।
वह कहते हैं, ‘हमारे लिए आयोग केवल एक कुटिल योजना है, जिससे तीन किसान बिलों का विरोध कर रहे किसानों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। यह प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा प्रतिशोध के तहत किया गया एक कार्य है।’
उन्होंने यह भी कहा कि पीएम-2.5 वायु प्रदूषण का सिर्फ एक घटक है, और अन्य प्रदूषकों को कम करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है। मित्तल कहते हैं, ‘अध्ययनों से पता चलता है कि एनसीआर क्षेत्र में पीएम 2.5 के पीक स्तर के समय में पराली जलाने की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है और पीएम-2.5 सिर्फ एक प्रदूषक है। इसके अलावा पीएम 1 तथा पीएम 10 भी हैं। लेकिन केंद्रीय एजेंसियां पीएम 1 को प्रमुख प्रदूषक नहीं मानती हैं, क्योंकि इसका प्रमुख घटक विनिर्माण गतिविधियां हैं, जिन्हें आयोग द्वारा दंडित नहीं किया जाएगा।’ दूसरी ओर, केवल दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करके कानून बनाने की भी आलोचना हो रही है क्योंकि प्रदूषण की समस्या देशभर में विद्यमान है।
दहिया ने कहा कि खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर से निपटने के लिए कोई भी नियम बनाते समय केवल दिल्ली-एनसीआर को प्रमुख क्षेत्र के रूप में शामिल करना भारतीय नागरिकों के प्रति हमारे कानून निर्माताओं के दोहरे दृष्टिकोण को चित्रित करता है।
वह कहते हैं, ‘इसका अप्रत्यक्ष रूप से तात्पर्य है कि सरकार को कुछ लोगों का जीवन दूसरों की तुलना में अधिक प्रिय है, क्योंकि वायु प्रदूषण का स्तर देश के अन्य हिस्सों में दिल्ली की तुलना में एकसमान या कुछ जगह ज्यादा खतरनाक भी है और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के बाहर लाखों लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं।’ मित्तल ने कहा कि एक ओर आयोग को पराली जलाने वाले किसानों को दंडित करने का अधिकार होगा लेकिन दूसरी ओर वह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले तथा पराली न जलाने से प्रभावित किसानों के लिए कोई उपाय नहीं करता। इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स ऐंड इवैलुएशन के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज प्रोजेक्ट द्वारा स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में हवा में पीएम 2.5 की अधिक मात्रा के कारण होने वाली मौतों में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वायु प्रदूषण से सबसे अधिक जोखिम है और इसके चलते 1,16,000 से ज्यादा नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी समीर पोर्टल के अनुसार, गुरुवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 315 के बेहद खराब स्तर पर था। हालांकि पोर्टल में 155 शहरों की जानकारी है ।
