सितंबर माह के अंत तक भारत में 10 करोड़ से ज्यादा टीके बरबाद होने का अनुमान है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि टीके अपनी मियादी तारीख को पार कर चुके हैं। अगर कोविशील्ड और कोवैक्सीन के प्रति टीके का औसतन मूल्य 225 रुपये माना जाए तो इस हिसाब से लगभग 2,250 करोड़ रुपये के टीके अब तक बरबाद हो चुके हैं।
एक सूत्र ने बताया कि कंपनियों के पास कोविड-19 टीके को ज्यादा समय तक सुरक्षित रखने के लिए कोई योजना नहीं है। एक टीका फर्म के वरिष्ठ कार्याधिकारी ने बताया कि पहले इन टीकों को इस प्रकार बनाया गया था कि इन्हें 9 से 12 महीनों तक सुरक्षित रखा जा सके। इसलिए, पहले फर्में कुछ समय तक इनकी स्थिरता डेटा को जमा कर रही थी, लेकिन अब ऐसी कोई योजना नहीं है। आम तौर पर कोविड-19 के अलावा अन्य टीकों की औसत आयु तीन साल की होती है।
कार्याधिकारी ने कहा कि इंट्रानेजल या ओमिक्रोन आधारित जो भी टीके आ रहे हैं, उनकी मांग भी बाजार में बढ़ेगी और वे शायद लंबी अवधि तक चलने वाले टीके भी रहें।
केंद्र सरकार की तरफ से 75 दिन तक चले अमृत महोत्सव मुफ्त कोविड-19 टीका अभियान ने लोगों तक टीका पहुंचाने में काफी सहायता की। जुलाई के मध्य से शुरू हुए इस अभियान में एहतियाती टीके लगाने वाले लोगों की संख्या 8 फीसदी से बढ़कर 27 फीसदी हो गई।
इस अभियान के दौरान ही 76 लाख से अधिक टीके का पहली खुराक, 2.35 करोड़ से अधिक दूसरी खुराक और 15.92 करोड़ लोगों ने एहतियाती खुराक लगवाए। इस दौरान, प्रतिदिन के हिसाब से 20 लाख एहतियाती खुराक और 24.7 लाख पहली और दूसरी खुराक लगाई गई।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि 2 अक्टूबर तक के आंकड़ो के अनुसार 2.19 करोड़ टीकों की खुराक अभी भी राज्यों के पास उपलब्ध हैं। पिछले कुछ दिनों में टीके लगने की संख्या में कमी आई है। उन्होंने कहा कि इस समय 2 से 3 लाख टीके प्रतिदिन लगाए जा रहे हैं।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने कहा था कि इसके पास 20 करोड़ से अधिक टीके जून-जुलाई के बीच में उपलब्ध थे, जिनकी अंतिम तिथि सितंबर में पूरी होने वाली थी। एसआईआई के मुख्य कार्याधिकारी अदार पूनावाला ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि उनकी कंपनी 2021 के अंत तक 25 करोड़ से अधिक टीकों का प्रतिमाह उत्पादन करती थी, और अचानक से उत्पादन को रोकना पड़ा, क्योंकि इसके लिए निर्यात बाजार में भी कोई मांग नहीं हो रही थी।
इसलिए कंपनी ने पहले उन टीका उत्पादों को खत्म करने का निर्णय लिया जो पहले से ही बनकर तैयार थे। उन्होंने कहा कि अगस्त माह से कंपनी में बचे रह गए टीकों की समाप्ति तिथि पूरी होने लगेगी, और इसके बाद से लगातार प्रत्येक माह 2 से 3 करोड़ खुराकें खराब हो जाएंगी।
कंपनी द्वारा इकट्ठा की गई कुल लगभग 20 करोड़ टीकों की अंतिम तिथि फरवरी-मार्च में पूरी हो जाएगी। पूनावाला ने कहा कि सरकार द्वारा चलाए गए अभियान के कारण कंपनी को कुछ राहत मिल सकी। लगभग 10 करोड़ टीकों का उपयोग हो गया, जो जल्द ही खराब होने वाला था।
इसी तरह, भारत बायोटेक के पास अप्रैल में 5 करोड़ खुराक का भंडार था, जब कंपनी ने टीके का उत्पादन बंद कर दिया था। हैदराबाद स्थित टीका निर्माता कंपनी ने कुल उपलब्ध टीकों के आंकड़ो को साझा नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि मुफ्त टीका अभियान के कारण बिक्री में कुछ बढ़ोतरी देखी गई थी।
कोविशील्ड के विपरीत, कोवैक्सीन के टीकों की 12 महीने की अवधि है, और इस प्रकार भारत बायोटेक के भंडार का एक हिस्सा अगले मार्च या उसके बाद समाप्त हो जाएगा। उद्योग के अनुमानों के अनुसार, कोवैक्सीन की लगभग 50-70 लाख खुराक सितंबर तक समाप्ति तिथि को पार कर सकती है।
बायोलॉजिकल ई ने जून तक केंद्र को कॉर्बेवैक्स की लगभग 10 करोड़ खुराक की आपूर्ति की थी, और अब तक लगभग 7.28 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं। लगभग 2.8 करोड़ बचे खुराक की अंतिम तिथि कुछ ही महीनों में पूरी हो जाएगी। उद्योग का अनुमान है कि 10 करोड़ से अधिक खुराक बरबाद हो सकता है।
