इस सप्ताह की शुरुआत में अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि तीन कृषि विधेयकों के संबंध में हो रहे विरोध विपक्ष की साजिश का परिणाम हैं और आरोप लगाया कि निहित स्वार्थ किसानों को भड़का रहे हैं। हालांकि आरएसएस से संबद्ध भारतीय किसान संघ (बीकेएस) यह कहते हुए किसानों के पुरजोर समर्थन में आया है कि ये अधिनियम किसानों के नहीं, बल्कि केवल कॉरपोरेट घरानों और बड़े व्यापारियों के हितों में ही काम करेंगे। संघ से जुड़े एक अन्य संगठन स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने भी केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध करते हुए एक बयान जारी किया है।
बीकेएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों के अनुसार इन कानूनों में कई कमियां हैं। बार-बार विनती किए जाने के बावजूद सरकार द्वारा इनमें से किसी की भी समीक्षा नहीं की गई है। बीकेएस ने किसानों के चल रहे आंदोलन को अपना नैतिक समर्थन भी दिया, लेकिन कहा है कि वह इसमें प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होगा, क्योंकि अपने 40 वर्षों के इतिहास में उसने कभी भी किसी हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लिया है और यह विशुद्ध रूप से किसानों के लिए समर्पित एक मंच है।
बीकेएस के महासचिव बदरी नारायण चौधरी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि हम उन पहले संगठनों में शामिल थे जिन्होंने किसी और से पहले इन तीनों अधिनियमों के खिलाफ आवाज उठाई थी और विधेयकों में संशोधन के लिए देश भर की 3,000 तहसीलों से एकत्रित किए गए ज्ञापन कृृषि मंत्रालय को भेजे थे, लेकिन कुछ भी स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि इसके बाद देश भर के लगभग 15,000 गांवों की ग्राम सभाओं ने इन अधिनियमों के विशेष प्रावधानों में संशोधन के लिए प्रस्ताव पारित किए थे, लेकिन सरकार द्वारा किसी पर भी विचार नहीं किया गया। चौधरी ने कहा कि अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए हम कृषि मंत्री से मिले थे।
हालांकि वह हमारे रुख से संतुष्ट दिखते हैं, लेकिन जब अधिकारियों और अफसरशाहों के साथ बैठक करते हैं, तो वह उन्हीं पुराने तर्कों को आगे रखने लगते हैं। चौधरी ने कहा कि असल में इन लोगों ने प्रधानमंत्री से भी इन अधिनियमों के बारे में गलत बयान दिलाया है। बीकेएस का कहना है कि अगर सरकार इन तीनों अधिनियमों को रद्द नहीं करती है, तो उसे एक चौथा कानून लाना चाहिए जो मंडी में सौदा की जाने वाली किसी भी कृषि वस्तु पर एमएसपी की गारंटी दे, यह सुनिश्चित करते हुए कि एमएसपी किसी भी नीलामी के लिए न्यूनतम नियत दर के रूप में काम करेगा और मंडियों के बाहर किए गए व्यापार के लिए यह एमएसपी से कम नहीं होना चाहिए अन्यथा दंडात्मक प्रावधान होना चाहिए। चौधरी ने कहा कि सरकार को हमारी यह सलाह होगी कि किसानों के साथ बातचीत की प्रक्रिया तुरंत शुरू की जाए और इसे जारी रखा जाए तथा उनकी सभी आशंकाओं को संतोषजनक तरीके से दूर किया जाए।
इस बीच सत्ताधारी दल के अपने किसान प्रकोष्ठ-बीजेपी किसान मोर्चा के एक तबके को लगता है कि किसानों को संतुष्ट करने के लिए इन अधिनियमों में कुछ सुधार पर विचार किया जा सकता है ताकि आंदोलन नियंत्रण से बाहर न हो जाए।
