सन समूह के मालिक और स्पाइसजेट के पूर्व-प्रवर्तक कलानिधि मारन ने एयरलाइन द्वारा सन ग्रुप चेयरमैन के पक्ष में 243 करोड़ रुपये जमा करने में विफल रहने के बाद इसके प्रवर्तक अजय सिंह की शेयरधारिता जब्त किए जाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। यह मामला मारन के पक्ष में वारंट की गैर-अदायगी से पैदा हुए विवाद से जुड़ा हुआ है।
सितंबर में दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पाइसजेट से अतिरिक्त 243 करोड़ रुपये जमा करने को कहा था। अदालत ने कहा था कि यदि 6 सप्ताह के अंदर यह राशि जमा नहीं की गई तो मारन को स्पाइसजेट की शेयरधारिता पर अधिकार होगा।
चूंकि यह राशि जमा नहीं की गई थी, इसलिए मारन ने अजय सिंह को कंपनी के शेयर स्थानांतरित करने, गिरवी रखने से रोकने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय की शरण ली है। मारन ने भुगतान नहीं जाने तक सिंह के शेयरों को जब्त किए जाने की भी मांग की है।
हालांकि स्पाइसजेट के एक प्रवक्ता ने इसकी पुष्टि की है कि कंपनी दिल्ली उच्च न्यायालय के मूल आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय भी जा चुकी है।
स्पाइसजेट के अधिकारी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय जल्द ही इस मामले को सुनेगा। परिचालन पर वित्तीय संकट गहराने के बाद मारन ने स्पाइसजेट में वर्ष 2015 में अपनी पूरी 58.46 प्रतिशत हिस्सेदारी (35.04 करोड़ शेयर) उसके मौजूदा मालिक अजय सिंह को महज 2 रुपये में बेच दी थी। इस वित्तीय संकट की वजह से एयरलाइन के स्वामित्व में बदलाव की जरूरत पैदा हुई थी।
तभी से दोनों पक्ष कानूनी लड़ाई में फंसे हुए हैं। मारन ने स्पाइसजेट और सिंह पर समझौते का उल्लंघन करने और 6.79 अरब रुपये के उनके निवेश के बावजूद उन्हें 18.9 करोड़ शेयर वारंट और तरजीही शेयर जारी नहीं करने का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि इसके लिए उनका स्पाइसजेट और सिंह पर 1,300 करोड़ रुपये का बकाया है।
यदि वारंट को इक्विटी में परिवर्तित किया जाए, तो एयरलाइन में मारन और उनकी केएएल एयरवेज को 24 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेगी। स्पाइसजेट ने तर्क दिया है कि इसे जारी नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके लिए बीएसई एक्सचेंज की मंजूरी नहीं ली गई।
इसके बाद, जुलाई, 2018 में एक मध्यस्थता पंचाट ने स्पाइसजेट के पक्ष में फैसला सुनाया था और शेयर वारंट की गैर-अदायगी की वजह से हुए नुकसान के लिए मारन के 1,300 करोड़ रुपये के दावे को खारिज कर दिया था। हालांकि मारन सदस्यता राशि के तौर पर 579 करोड़ रुपये की वापसी के हकदार होंगे, जो उन्होंने वारंट और तरजीही शेयरों के लिए चुकाई थी।
