केंद्र सरकार भारतीय नौवहन निगम (एससीआई) के जहाजों पर भारतीय ध्वज की अनिवार्यता समाप्त करने की समय सीमा अब घटाकर 5 वर्षों से कम कर सकती है। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की इस इकाई का निजीकरण अंजाम तक पहुंचाने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रही है, इसलिए ध्वज हटाने की समय सीमा कम की जा सकती है। एससीआई के जहाजों पर राष्ट्रध्वज लगाना अनिवार्य है मगर संभावित खरीदारों को यह बात रास नहीं आ रही थी। इस बारे में अधिकारियों ने बताया कि कराधान और जहाज पंजीकरण पर आने वाले खर्च की वजह से सरकार और संभावित बोलीदाताओं के बीच इस विषय पर विवाद खड़ा हो गया था। एसीसीआई के बेड़े में 59 जहाज हैं।
भारतीय ध्वज के इस्तेमाल से एससीआई के संभावित बोलीदाताओं को केवल यह लाभ मिल सकता है कि उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ अनुबंध में कोई शर्त या सौदा पहले अस्वीकार करने का अधिकार मिलेगा। अधिकारी ने कहा कि चूंकि, गैर-रणनीतिक क्षेत्रों के सभी सार्वजनिक उपक्रमों का देर-सबेर निजीकरण होना है इसलिए पहले अस्वीकार करने का अधिकार भी एससीआई के खरीदार के पास नहीं रहेगा और यह सबसे कम बोली लगाने वाले के पास चला जाएगा।
इसे देखते हुए निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) एसीआई के जहाजों पर भारतीय ध्वज हटाने की समय सीमा घटाकर 5 वर्षों से कम करने पर विचार कर रहा है। खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अभिषेक रस्तोगी का कहना है कि जहाजों पर भारतीय ध्वज के इस्तेमाल का सीधा मतलब यह है कि संबंधित जहाज का पंजीकरण भारत में होगा और उसे भारतीय कर प्रणाली के अनुसार कर भुगतान करना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो जब सेवा भारत में दी जाएगी तो ऐसी सेवा पर जीएसटी और प्रत्यक्ष कर आदि लगेगा।
ज्यादातर नौवहन कंपनियां पनामा में पंजीकृत हैं जहां उस जगह से बाहर प्राप्त आय कर पर कोई कर नहीं लगता है। मगर वर्ष 2018 में एसईएम प्रणाली प्रभाव में आने के बाद कुछ शर्तें पूरी करने पर पनामा में प्रभावी कर दर 5 प्रतिशत हो गई है।
रस्तोगी का कहना है कि एसीआई की हिस्सेदारी स्थांतरित होने की स्थिति में इसकी कानूनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा। अगर कोई विदेशी इकाई एससीआई का अधिग्रहण करती है तो इस पर नियम अनुपालन का बोझ बढ़ जाएगा। खरीदार को लागत वसूली शुल्क का भी भुगतान करना होगा। यह शुल्क सरकार बंदरगाहों से प्राप्त करती है जहां सीमा शुल्क अधिकारी तैनात होते हैं। एएमआरजी ऐंड एसोसिएट्स में निदेशक, निगमित एवं अंतरराष्ट्रीय कर, ओम राजपुरोहित कहते हैं, ‘एसीआई के विनिवेश से सरकार को राजस्व की हानि भी हो सकती है। यह राजस्व मोटे तौर पर कर के रूप में आता है लेकिन विनिवेश के बाद संभावित बोलीदाता कर क्षेत्र भारत से बाहर ले जा सकते हैं। कर बचत के लिहाज से माकूल जगहों जैसे पनामा में नौवहन कंपनियों के लिए शून्य कर लिया जाता है। यह उन कंपनियों के लिए प्रभावी हैं जो अपने जहाजों का पंजीकरण पनामा के ध्वज के साथ करती हैं। दूसरी तरफ भारतीय जहाजरानी कंपनियों को 30 प्रतिशत से अधिक कर देना होगा।’
हालांकि आसान कराधान प्रक्रिया एक मात्र ऐसी वजह नहीं है जिससे ज्यादातर निजी जहाजरानी कंपनियां स्वयं को पनामा में पंजीकृत करती हैं। पनामा की भौगोलिक स्थिति और कानूनी सुविधाएं भी इस निर्णय में अहम भूमिका निभाती है।
पनामा में 2020 में तक पंजीकृत जहाजों की संख्या 7,886 थी। करीब 3,716 जहाज लाइबेरिया में और 3,683 जहाज मार्शल आईलैंड्स में पंजीकृत थे। इनकी तुलना में 1,786 जहाजों का पंजीकरण भारत में हुआ था और दुनिया में कुल जहाजों की संख्या में इनकी हिस्सेदारी मात्र 1 प्रतिशत थी।
