नियामक ने बीमा कंपनियों को कोविड से जुड़ी पॉलिसियों से इनकार न करने की सलाह दी है, वहीं उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है इस तरह की पॉलिसी को लेकर कुछ कंपनियों की सुस्ती की वजह कोरोना के बढ़ते मामले हैं। उनका कहना है कि ऐसी पॉसिलियों में तय प्रीमियम कम है और ज्यादा दावों की वजह से घाटे के अनुपात पर असर पड़ सकता है।
सोमवार को जारी एक बयान में बीमा नियामक ने कहा था कि उसे शिकायत मिली है, जिसमें कहा गया है कि कुछ बीमा कंपनियां कोरोना कवच और कोरोना रक्षक पॉलिसियां नहीं दे रही हैं। इस सिलसिले में यह साफ किया जाता है कि 26 जून, 2020 के व्यापक दिशानिर्देशों के मुताबिक सभी जनरल और हेल्थ बीमा कंपनियों के लिए कोरोना कवच पॉलिसी बेचना अनिवार्य है।
निजी बीमा कंपनी में काम करने वाले बीमा क्षेत्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बीमा कंपनियां दूसरी बार इसकी बिक्री (कोविड संबंधी पॉलिसी) को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। पिछले साल जब इसे पेश किया गया था, बीमा कंपनियों ने लोगों की मदद करने के लिए इसकी बिक्री की थी। ये कम अवधि के उत्पाद थे, ऐसे में इनकी कीमतें भी कम रखी गई थीं, लेकिन अब कीमत को लेकर बीमाकर्ता इस पर फिर से विचार कर रहे हैं। हानि अनुपात का इन उत्पादों पर विपरीत असर पड़ सकता है। साथ ही कुछ बीमा कंपनियोंं की राह है कि इन उत्पादों की वजह से उनके समग्र उत्पादों पर असर पड़ रहा है।
उन्होंने आगे कहा, ‘इस तरह के उत्पादों कवरेज अलग अलग बीमाकर्ताओं के मामले में अलग हैं। कुछ कंपनियां इस तरह के उत्पादों को लेकर सुस्त चलने का फैसला कर सकते हैं।’ पिछले साल जुलाई में पेश किए जाने के बाद से कोविड विशेष की पॉलिसियों की जोरदार बिक्री हुई थी, लेकिन वित्त वर्ष 21 के अंत तक इसकी बिक्री कम हो गई। कोरोना कवच ने 42 लाख जिंदगियों को कवर किया। इसी तरह से कोरोना रक्षक ने 5.4 लाख लोगों को कवर किया। और सभी कोविड पॉलिसियों के तहत 1.35 करोड़ लोग आए।
एक बीमा फर्म के स्वास्थ्य कारोबार के प्रमुख ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘निश्चित रूप से इस तरह की पॉलिसी बेचने को लेकर बीमा कंपनियों में सुस्ती है क्योंकि दावे का अनुपात अच्छा नहीं है। जब कोरोना कवच पिछले साल पेश किया गया था, कोविड संक्रमण का पैमाना अलग था, लेकिन अब मामले खतरनाक स्तर तक बढ़ गए हैं। साथ ही कोविड बीमा को लेकर उद्योग के पास कोई ऐतिहासिक आंकड़ा नहीं है, जिससे कि 3-4 लाख मामले प्रतिदिन आने के अनुमान के हिसाब से कीमत तय की जा सके। ऐसे में बीमा कंपनियों को इन उत्पादो पर घाटा हो रहा है।’