दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बुधवार को लोहड़ी के मौके पर धरना-प्रदर्शन स्थलों पर नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं। उच्चतम न्यायालय ने इन कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और धरना दे रहे रहे किसान संगठनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था।
कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि सरकार प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के साथ वार्ता जारी रखने के पक्ष में है क्योंकि उसका मानना है कि बातचीत के जरिये ही समाधान निकाला जा सकता है।
इन प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे एक समूह, संयुक्त किसान मोर्चा के एक नेता परमजीत सिंह ने कहा कि केवल सिंघु बॉर्डर पर ही तीन कृषि कानूनों की एक लाख प्रतियां जलाई गईं। वसंत की शुरुआत में उत्तर भारत में रबी फसल की कटाई की खुशी में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग लकडिय़ां इकट्ठी कर जलाते हैं, लोकगीत गाते हैं।
हरियाणा के करनाल जिले के 65 वर्षीय गुरप्रीत सिंह संधू कहते हैं, ‘त्योहार इंतजार कर सकते हैं। हम ये सभी त्योहार उस दिन मनाएंगे जिस दिन केंद्र सरकार इन तीन काले कानूनों को वापस लेने की हमारी मांग मान जाएगी।’ दिल्ली हरियाणा सीमा पर कई जगहों पर लकडिय़ां जलाने के लिए इकट्ठा की गईं थीं जो किसानों के प्रदर्शन का केंद्रीय स्थल बन चुका है। प्रदर्शन कर रहे किसानों ने कृषि कानूनों की प्रतियां जलाते हुए नारे लगाए और प्रतिरोध तथा उम्मीद के गीत गाते हुए अपने विरोध की सफलता की कामना भी की। इस बीच केंद्र ने उच्चतम न्यायालय द्वारा कानूनों के अमल पर रोक और समिति के गठन की बात को खारिज करते हुए प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ बातचीत जारी रखने की इच्छा जताई। रूपाला ने कहा, ‘वार्ता अवश्य जारी रहनी चाहिए। केवल वार्ता के जरिये ही आगे का कोई रास्ता तलाशा जा सकता है।’ अब तक सरकार और तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच आठ दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन इसमें दोनों पक्ष संकट का समाधान कर पाने में अब तक नाकाम रहे हैं। इसके बाद ही उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी और गतिरोध खत्म करने के लिए चार सदस्यों की एक समिति गठित की।
वहीं किसान संगठनों ने कहा है कि वे उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे और आरोप लगाया कि यह सरकार समर्थक समिति है और उन्हें इसकी निष्पक्षता पर संदेह है। हालांकि इन संगठनों ने 15 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली नौवें दौर की वार्ता के लिए दिलचस्पी दिखाई लेकिन उनका साफ कहना था कि उन्हें तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल 28 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं और वे तीनों कानूनों को वापस लिए जाने के साथ ही उनकी फसलों की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की मांग की है।
इस साल सितंबर में बने तीनों कानूनों को केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश किया है। सरकार का कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलिये की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे। दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से एमएसपी का सुरक्षा कवच और मंडियां भी खत्म हो जाएंगी तथा उन्हें अपनी खेती के लिए बड़े कॉरपोरेट समूहों की कृपा पर निर्भर रहना पड़ेगा।
