21 दिनों के लंबे इंतजार के बाद जब देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) ने 2 मई को फाइनल लिस्ट जारी की तो बेशुमार लोगों ने चैन की सांस ली।
और यह लाजिमी भी था। क्योंकि लिस्ट जारी होने में जितनी देर हो रही थी, उतना ही अन्य मैनेजमेंट संस्थानों का विकल्प इन स्टूडेंट्स के हाथ से निकल जाने का खतरा भी बढ़ता जा रहा था। मुश्किल यह थी कि आईआईएम में एडमिशन हुआ है या नहीं, इस बात का फैसला तो लिस्ट जारी होने के बाद ही हो पाता, लेकिन इस बीच अन्य संस्थानों में एडमिशन मिलने के बावजूद वहां मोटी फीस जमा करें या नहीं, इसकी ऊहापोह भी उन्हें खासा सिरदर्द दे रही थी।
वैसे जनवरी में जब आईआईएम में एडमिशन के लिए कुल 2 लाख 30 हजार अभ्यर्थी कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) में बैठे थे, तो महज 1.5 फीसदी यानी साढ़े तीन हजार लोग ही इंटरव्यू तक पहुंच सके थे।
इंटरव्यू और जीडी के कठिन दौर से गुजरने के बाद जब ये अभ्यर्थी सभी आईआईएम की तकरीबन 1350 सीटों के लिए जारी होने वाली फाइनल लिस्ट का इंतजार धड़कते दिलों से कर रहे थे, ऐन उसके एक दिन पहले 10 अप्रैल को ही सुप्रीम कोर्ट का ब्रह्मास्त्र चल गया। और जैसे ही इन संस्थानों में 27 फीसदी ओबीसी कोटा को लागू किए जाने का ब्रह्मास्त्र मिला, अर्जुन (मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह) ने इसी सत्र से आईआईएम में कोटा को लागू किए जाने का शंखनाद भी फूंक दिया।
इसीके चलते आईआईएम की जो फाइनल लिस्ट 11 अप्रैल को घोषित होनी थी, वह जाकर 2 मई को हो पाई। हालांकि अर्जुन के शंखनाद के बावजूद सालभर मेहनत करने वाले स्टूडेंट्स के बीच जाति आधारित नई महाभारत के शुरू होने से रोकने के लिए इन संस्थानों ने बेहद संतुलित कवायद की। इसके तहत उसने इसी सत्र से कोटा को पूरा 27 फीसदी लागू करने की बजाय तीन साल में चरणबध्द तरीके से इसे लागू करने का फैसला किया।
हालांकि लिस्ट देर से जारी होने के कई बुरे नतीजे भी देखने को मिले। वह ऐसे कि सामान्य तौर पर फाइनल एडमिशन लिस्ट के जारी होने के बाद आईआईएम की एडमिशन प्रक्रिया को पूरी होने में छह से आठ हफ्तों का समय लगता है। तब कहीं जाकर सत्र की शुरुआत हो पाती है।
आमतौर पर जून मध्य या अंत में ही सत्र शुरू करने वाले आईआईएम के लिए इस बार 11 अप्रैल की बनिस्बत 2 मई को फाइनल लिस्ट जारी करने के बावजूद जून मध्य या अंत तक सत्र शुरू करने के लिए भारी दबाव है। इसके अलावा, इसका खामियाजा उन स्टूडेंट्स को भी भुगतना पड़ेगा, जिनका एडमिशन इस बार हुआ है। उन्हें प्रक्रिया से संबंधी औपचारिकताएं पूरी करने और जरूरी प्रमाणपत्र आदि जमा करवाने के लिए बेहद कम समय ही मिल पाएगा।
लिस्ट में देरी की वजहें कई थीं। मसलन, क्रीमी लेयर को कोटा से बाहर किए जाने में इन संस्थानों ने खासी माथा-पच्ची की। यही नहीं, ओबीसी स्टूडेंट्स को अस्थाई एडमिशन का लेटर देने के बाद भी बड़ी तादाद में ओबीसी स्टूडेंट्स का इंटरव्यू करने में वे अभी भी जुटे हुए हैं। ताकि अस्थाई एडमिशन पाया हुआ कोई ओबीसी कैंडीडेट अगर क्रीमी लेयर में पाया गया तो उसका एडमिशन रद्द करके प्रतीक्षा सूची से दूसरे कैंडीडेट को मौका दिया जा सके।
क्रीमी लेयर के अलावा, जो दूसरी सबसे बड़ी चुनौती थी, वह थी कोर्ट का यह फरमान, जो उसने फैसले के साथ ही जारी किया था। इसके तहत कहा गया था कि चुने गए ओबीसी स्टूडेंट्स और सामान्य श्रेणी में आने वाले स्टूडेंट्स के बीच नंबरों का फासला 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इन्हीं वजहों से आईआईएम ही नहीं, कोटा को लागू करने वाले अन्य संस्थानों के लिए भी यह सत्र खासा चुनौती भरा था।
मिसाल के तौर पर आईआईटी को ही लीजिए, जिसकी परीक्षा में बैठने के लिए इस बार आए कुल आवेदनों में से महज 23 फीसदी ही ओबीसी श्रेणी के स्टूडेंट्स के थे। उसके सामने भी यही दिक्कतें थीं कि जब कुल 23 फीसदी ही ओबीसी स्टूडेंट्स आवेदन कर रहे हैं तो कठिन परीक्षा और इंटरव्यू के बाद हुई छंटनी और 10 प्रतिशत के अंतर की शर्त के बाद कैसे 27 फीसदी का ओबीसी कोटा भरा जाए। बहरहाल, अब तो सारे हालात देखकर इतना ही कहा जा सकता है कि देर आयद…, मगर दुरुस्त आयद।