एक सर्वे में सुझाव दिया गया है कि निवेशक समुदाय का एक बड़ा वर्ग अध्यक्ष और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) की जिम्मेदारियां अलग अलग रखे जाने के पक्ष में है। सर्वे में कहा गया है कि इन जिम्मेदारियों को निभाने वाले ये दो लोग संबंधित नहीं होने चाहिए और अध्यक्ष एक गैर-कार्यकारी निदेशक होना चाहिए।
ये निष्कर्ष सीएफए इंस्टीट्यूट द्वारा सीएफए सोसायटी इंडिया की भागीदारी में कराए गए सदस्यता सर्वे से सामने आए हैं। इस सर्वे में सीएफए सोसायटी इंडिया के 108 सदस्यों को शामिल किया गया। अलग जिम्मेदारियों का समर्थन करने वाले प्रतिभागियों ने विशेष जवाबदेही और जीवंत बहस में हिस्सा लिया। ज्यादातर सदस्यों का मानना था कि अलग अलग जिम्मेदारी वाली कंपनियां अन्य (जिनमें ये जिम्मेदारियां अलग नहीं हैं) के मुकाबले बेहतर या थोड़ा हटकर प्रदर्शन कर सकती हैं।
अनिवार्य तौर पर अलग जिम्मेदारी के लिए निर्णय को टालने के संदर्भ में आधे से ज्यादा प्रतिभागियों (59 प्रतिशत) ने अंतरिम अतिरिक्त सेफगार्डों के तौर पर स्वतंत्र निदेशकों का अनुपात बढ़ाए जाने का समर्थन किया।
आधे से ज्यादा प्रतिभागियों (56 प्रतिशत) ने इस बयान के साथ असहमति जताई, ‘स्वतंत्र निदेशकों ने (उनके दायित्व से उम्मीदों को देखते हुए) पिछले कुछ वर्षों में अपनी जिम्मेदारियों का प्रभावी तरीके से निर्वहन किया।’ सिर्फ 19 प्रतिशत ने इसे लेकर सहमति जताई। असहमति जताने वालों में 85 प्रतिशत ने अपनी असहमति के कारण के तौर पर प्रवर्तकों से स्वायत्तता के अभाव का हवाला दिया।
2017 के अंत में, कॉरपोरेट प्रशासन पर कोटक समिति की रिपोर्ट में कम से कम 40 प्रतिशत सार्वजनिक शेयरधारिता वाली कंपनियों के लिए अध्यक्ष और सीईओ की जिम्मेदारियों को अलग रखे जाने का सुझाव दिया गया था, और अप्रैल 2022 तक सभी सूचीबद्घ कंपनियों के लिए इस सुझाव के दायरे में लाने की बात कही गई। इसकी प्रतिक्रिया में, 2018 के शुरू में बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बाजार पूंजीकरण के लिहाज से प्रमुख 500 भारतीय कंपनियों के लिए अध्यक्ष और सीईओ की जिम्मेदारियां अप्रैल 2020 से अलग रखना अनिवार्य बना दिया। इस नियम को उद्योग से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, और सेबी ने इसके क्रियान्वयन को दो साल तक आगे बढ़ाकर 1 अप्रैल 2022 कर दिया।
