अफगानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी) पाइपलाइन पर अनुकूल बातचीत कर रहे हैं जिसकी वजह से इसके भारत के करीब आने की उम्मीदें बढ़ी हैं। तापी पाइपलाइन उन तीन अंतरराष्ट्रीय पाइपलाइन में से एक है जो लंबे समय से अटकी हुई हैं। ये पाइपलाइन भारत के लिए गैस आधारित अर्थव्यवस्था में मददगार साबित हो सकती हैं, हालांकि अंतरराष्ट्रीय पाइपलाइन की योजना बनाना तो मुश्किल है ही, इसे लागू करना और भी कठिन है।
भारत सरकार के एक पूर्व अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘तापी परियोजना में कुछ साल पहले ही तेजी आई लेकिन इस मोर्चे पर भारत की तरफ से चुप्पी ही दिखी। ऐसा लगता है कि सरकार यह देखना चाहती है कि क्या तालिबान इस परियोजना के बारे में वास्तव में गंभीर हैं और वे किस तरह का शासन करना चाहते हैं। क्या वे भारत के साथ कारोबार करने के पात्र हैं या भारत के साथ कारोबार करना चाहते हैं जिसके लिए प्रतीक्षा करने की जरूरत है।’
गैस आधारित अर्थव्यवस्था के लिए भारत की योजनाएं, सुनिश्चित किफायती गैस आपूर्ति पर टिकी हैं ताकि उपभोक्ता प्राकृतिक गैस का चयन करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गैस आधारित अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को कई बार दोहराया है। भारत के ऊर्जा भंडार में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी करीब 7 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी तक करने का लक्ष्य है।
भारत के सबसे बड़े गैस आयातक पेट्रोनेट एलएनजी के एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा काफी हद तक आयातित तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की वजह से होगा क्योंकि अगले पांच सालों में प्राकृतिक गैस की घरेलू आपूर्ति समाप्त हो जाएगी। वहीं आयातित एलएनजी भारत के लिए एक विकल्प है लेकिन इसकी कीमत का वहन करना और इसकी मूल्य स्थिरता दुनिया भर में चिंता का विषय रही है।’ तापी पाइपलाइन परियोजना पर लगभग तीन दशकों से बातचीत चल रही है।
साल 2001 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की सरकारों ने एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से प्रस्तावित तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान प्राकृतिक गैस पाइपलाइन की संचालन समिति के सेक्रेटेरियट के रूप में कार्य करने का अनुरोध किया था। भारत को मार्च 2003 में तापी पाइपलाइन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था।
अपने मौजूदा प्रस्तावित स्वरूप में तापी पाइपलाइन 1,600 किलोमीटर से अधिक का विस्तार करेगी। अफगानिस्तान, भारत, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान ने 2013 में तापी पाइपलाइन कंपनी (टीपीसीएल) की स्थापना में संयुक्त रूप से निवेश करने का फैसला किया था। वर्ष 2016 में इस बात पर सहमति हुई थी कि तुर्कमेनिस्तान की गैलकाइनिश पाइपलाइन कंपनी टीपीसीएल की 85 प्रतिशत हिस्सेदारी रखेगी और अफगान गैस एंटरप्राइज, पाकिस्तान की इंटर स्टेट गैस सिस्टम्स और भारत की गेल हरेक के पास 5 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी। कुल परियोजना की अनुमानित लागत 7.7 अरब डॉलर है। इस क्षेत्र पर नजर रखने वाले एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘यूरोपीय संघ से लेकर चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं प्राकृतिक गैस की कमी का सामना कर रहे हैं और उन्हें अपनी जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा पाइपलाइनों के माध्यम से पूरा करना होता है। इसकी वजह से वे कीमतों के अंतर से बच जाते हैं। जब स्पॉट एलएनजी की कीमतें बढ़कर 3 करोड़ डॉलर प्रति ब्रिटिश थर्मल यूनिट्स (एमबीटीयू) हो गईं तब पाइपलाइन उपभोक्ताओं की गैस की कीमत काफी निचले स्तर पर रही।’ यह एक ऐसा विचार है जिस पर भारत कुछ समय से गौर कर रहा है और तापी एकमात्र महत्त्वाकांक्षी पाइपलाइन परियोजना नहीं है जिस पर भारत की नजर रही है। ईरान-पाकिस्तान-भारत (आईपीआई) पाइपलाइन भी एक ऐसी ही पहल थी। यह योजना फि लहाल ठंडे बस्ते में है। पूर्व पेट्रोलियम सचिव टी एन आर राव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अमेरिका नहीं चाहता था कि ईरान को आईपीआई के साथ प्रोत्साहित किया जाए और एडीबी के समर्थन से तापी परियोजना के माध्यम से इस पर जोर दिया जाए। लेकिन यह एक सुरक्षा दु:स्वप्न है।’
साल 2011 से 2015 तक ईरान में भारत के पूर्व राजदूत रहे दिनकर श्रीवास्तव ने कहा ‘आईपीआई के साथ समस्या यह थी कि यह एक अशांत देश, पाकिस्तान से होकर गुजर रहा था। लेकिन तापी के साथ समस्या यह है कि यह पाइपलाइन दो संकटग्रस्त देशों, पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों से होकर गुजरेगी।’
आयातित एलएनजी के मुकाबले यह पाइप आधारित गैस कैसे किफायती हुआ, इस पर श्रीवास्तव ने कहा, ‘कीमतों का खुलासा नहीं किया जाता है, लेकिन आप इस तथ्य से सबक ले सकते हैं कि अमेरिका और यूक्रेन दोनों के काफी विरोध के बावजूद जर्मन नोर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन के साथ आगे बढ़ गया है। जाहिर है ये उन्हें सस्ता ही लगा होगा।’