संयुक्त राष्ट्र्र के वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर सर्वाधिक कम (वैश्विक औसत 53 प्रतिशत के मुकाबले 21 प्रतिशत) है। भारत की पुरुष श्रम शक्ति भागीदारी दर काफी ज्यादा (76 प्रतिशत) है और देश के भीतर यह विसंगति संयुक्त राष्ट्र लैंगिक असमानता सूचकांक ( रैंकिंग वाले 162 देशों में से 123) के संबंध में भारत की निचली रैंकिंग में योगदान करती है। घर और अर्थव्यवस्था में लैंगिक सक्रियता पर प्यू रिसर्च सेंटर की नवीनतम सर्वेक्षण रिपोर्ट में माना गया है कि जब नौकरियां कम हों, तो महिलाओं के काम के प्रति दृष्टिकोण इसकी एक वजह हो सकती है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि महिलाओं के समान अधिकारों पर वैश्विकजनमत के साथ व्यापक रूप से अनुरूपता होने के बावजूद, जब लैंगिक सक्रियता की बात आती है, तो सर्वेक्षण किए गए अधिकांश अन्य देशों के लोगों की तुलना में भारतीयों में अधिक रूढि़वादी होने की प्रवृत्ति दिखती है।
उदाहरण के लिए वर्ष 2013 से वर्ष 2019 तक सर्वेक्षण वाले 61 देशों में ग्लोबल एटीट्यूड सर्वे (2019) के संयुक्त राष्ट्र्र के आंकड़ों से पता चलता है कि औसतन 17 प्रतिशत इस कथन से पूरी तरह सहमत हैं, ‘जब नौकरियां बहुत कम होती हैं, तो महिलाओं की तुलना में पुरुषों को नौकरी के अधिकार अधिक होने चाहिए।’
लेकिन मोटे तौर पर इससे तीन गुना अधिक (55 प्रतिशत) भारतीय ऐसा ही कहते हैं। दरअसल सर्वेक्षण में शामिल केवल एक देश – ट्यूनीशिया (64 प्रतिशत) का हिस्सा ज्यादा है, जो इस विचार से पूरी तरह सहमत है कि अधिक बेरोजगारी के समय में पुरुषों के पास नौकरियों के अधिक अधिकार होने चाहिए।
इस पैमाइश पर उत्तरी अमेरिका (4 प्रतिशत मध्य), पश्चिमी यूरोप (7 प्रतिशत), मध्य और पूर्वी यूरोप (14 प्रतिशत) तथा लैटिन अमेरिका (20 प्रतिशत) के लोगों की तुलना में भारतीय बहुत अधिक पारंपरिक हैं। वर्ष 2019 के ग्लोबल एटीट्यूड्स सर्वेक्षण में लैंगिक भूमिकाओं के बारे में भी एक सवाल पूछा, जो वर्ष 2019-2020 के प्यू इंडिया सर्वेक्षण में नहीं था : ‘किस तरह की शादी अधिक संतोषजनक होती है, एक तो वह जहां पति परिवार का भरण-पोषण करता है तथा पत्नी घर और बच्चों की देखभाल करती है या फिर वह जहां पति और पत्नी दोनों नौकरी करते हैं और एक साथ मिलकर घर और बच्चों की देखभाल करते हैं?’
भारतीय उन लोगों में शामिल हैं, जिनके द्वारा यह कहने की सबसे अधिक संभावना रहती है कि पति को परिवार के लिए भरण-पोषण करना चाहिए, जबकि पत्नी घर पर ध्यान केंद्रित करती है : 23 प्रतिशत के वैश्विक माध्य की तुलना में दस में से चार भारतीय पारंपरिक परिवार की इस सक्रियता को पसंद करते हैं। विभिन्न पैमाइश में भारतीय पुरुष महिलाओं की तुलना में इस बात की अधिक संभावना रखते हैं, हालांकि थोड़े ही कि वे लैंगिक भूमिकाओं में पारंपरिक दृष्टिकोण अपनाएंगे। उदाहरण के लिए 82 प्रतिशत पुरुषों का कहना है कि जब नौकरियां कम होती हैं, तो पुरुषों को नौकरियों के अधिक अधिकार मिलने चाहिए, जबकि 77 प्रतिशत महिलाएं इस दृष्टिकोण से इत्तफाक रखती हैं।
इसी तरह वृद्ध भारतीयों (35 वर्ष और अधिक आयु) में लैंगिक भूमिकाओं को लेकर पारंपरिक विचार रखने के संबंध में युवा वयस्कों की तुलना में कुछ अधिक संभावना रहती है। जहां एक ओर 35 और उससे अधिक उम्र के 45 प्रतिशत भारतीयों का कहना है कि किसी परिवार में पुरुषों को पैसा कमाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होना चाहिए, वहीं दूसरी ओर 18 से 34 वर्ष की आयु के 42 प्रतिशत लोग इस बात से सहमत हैं। कुछ हैरानी की बात यह है कि कॉलेज की शिक्षा महिलाओं की पारंपरिक भूमिकाओं के प्रति दृष्टिकोण में हल्का-सा अंतर ही पैदा करत है। उदाहरण के लिए कॉलेज की डिग्री (80 प्रतिशत) और कम शिक्षा (88 प्रतिशत) वाले लोगों में से बड़ी संख्या में लोग इस विचार से सहमत हैं कि पत्नियों को हमेशा अपने पतियों का आज्ञापालन करना चाहिए।
