अनित रॉयचौधरी (बदला हुआ नाम) ने अपने सहयोगी के साथ अपने दफ्तर में ही निमोनिया का टीका लिया। अनित मुंबई की एक फार्मा कंपनी के लिए काम करते हैं और लॉकडाउन के दौरान वह काम पर जाते रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी फ्लू या निमोनिया का टीका लगवाने की जरूरत महसूस नहीं की थी लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से उन्होंने खुद को सांस से जुड़ी बीमारियों से बचाने के लिए सतर्कता बरतनी शुरू कर दी।
ऐसे वक्त में जब हम सार्स-सीओवी-2 वायरस के लिए वैक्सीन बनने का इंतजार कर रहे हैं, तो अनित जैसे कई लोग देश में वयस्क टीकाकरण को लेकर जागरूक हो गए हैं। हाल के महीनों में न्यूमोकोकल कंज्यूगेट वैक्सीन (पीसीवी) की बिक्री में हाल के महीने में अचानक से तेजी आई और अप्रैल से जून तक इसमें 54 फीसदी की तेजी दिखी। लॉकडाउन खोले जाने के बाद इसके टीकाकारण में ज्यादा तेजी आई। इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स 6, 10 और 14 हफ्ते में तीन डोज के बाद 15वें महीने में बूस्टर के साथ इसकी सिफारिश करता है। इसके टीकाकरण में तेजी का एक और कारण यह है कि वयस्क लोग भी पीसीवी का टीका लगवा रहे हैं। ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन की सिंफ्लोरिक्स बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन है वहीं फाइजर की प्रीवनार 13 भी वयस्कों को लगाई जाती है।
बाजार शोध कंपनी एआईओसीडी अवाक्स के आंकड़ों के मुताबिक, पीसीवी की बिक्री में लगातार वृद्धि हुई है और यह मार्च महीने में 24.71 करोड़ रुपये की बिक्री से बढ़कर अप्रैल में 30.39 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और मई में इसने 38 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की। पिछले वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 2020 की कुल सालाना बिक्री के साथ इसकी तुलना करें तो यह वित्त वर्ष 2020 में मामूली रूप से कम होकर 450 करोड़ रुपये हो गया जो वित्त वर्ष 2019 में 459 करोड़ रुपये था।
जीएसके की सिंफ्लोरिक्स और फाइजर की प्रेवेनार 13 दोनों में अप्रैल के स्तर से जून में 62 फीसदी की उछाल देखी गई। जीएसके के एक प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद काफी टीकाकरण हो रहा है और इसकी वजह से भी इसकी बिक्री में तेजी आई है।
फाइजर के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘दुनिया कोविड वैक्सीन का इंतजार कर रही है, वहीं कई ऐसे टीके हैं जो खतरनाक बीमारियों में दिए जाते हैं जिनमें न्यूमोकोकल बीमारी शामिल है। ये टीके बीमारी की रोकथाम के साथ-साथ जिन लोगों को कई और भी बीमारियां होती हैं उनकी जटिलताओं के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं मसलन मधुमेह, दिल से जुड़ी बीमारी, किडनी और सांस संबंधी बीमारी।’
प्रवक्ता ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ हमारी बातचीत से यह अंदाजा हुआ है कि न्यूमोकोकल और इसी तरह की अन्य बीमारियों के टीकों के लिए वयस्कों की दिलचस्पी और जागरूकता बढ़ रही है। उन्होंने कहा, ‘हम यह भी देखते हैं कि कई बड़े अस्पतालों ने विशेष रूप से ज्यादा बीमार और जोखिम वाली स्थितियों वाले वयस्कों के लिए ‘घर पर ही टीकाकरण’ की सेवाएं शुरू की है। यह वयस्क टीकाकरण केंद्रों के अतिरिक्त दी जाने वाली सेवा। वयस्क टीकाकरण केंद्र अस्पतालों में बनाए गए हैं। हम यह उम्मीद करते हैं कि कोविड-19 के इस दौर के बाद दुनिया के जो हालात रहेंगे उसके हिसाब से वयस्कों और बुजुर्गों के बीच प्रीवेंटिव इम्युनाइजेशन निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में यह मुख्यधारा में आ जाएगा।’
पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को हाल ही में भारत में स्वदेश में बने पीसीवी को बाजार में लाने के लिए नियामक की मंजूरी मिल गई। सीरम इंस्टीट्यूट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अडार पूनावाला ने बताया कि उनकी पीसीवी को फिलहाल दो साल तक की की उम्र के बच्चों में इस्तेमाल करने का लाइसेंस दिया गया है। हालांकि, उन्होंने कहा, ‘भविष्य में, हम इसे बड़ी उम्र वर्ग में इस्तेमाल के लिए लाइसेंस हासिल करने के मकसद से और अधिक अध्ययन करना चाहते हैं। प्रीवनार, न्यूमोकोकल और फ्लू के टीकों के इस्तेमाल में काफी तेजी देखी गई है क्योंकि लोगों को टीके की प्रभावकारिता और अनिवार्यता का अहसास हुआ है।’
पूनावाला ने महसूस किया कि कमजोर और अधिक उम्र के लोगों के लिए पीसीवी और फ्लू दोनों टीके लेने चाहिए क्योंकि इससे अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आती और मृत्यु दर को कम करने में भी मदद मिलती। निमोनिया और फ्लू की वजह से हजारों बुजुर्ग और बच्चों की मौत हो जाती है।
उद्योग जगत को महसूस हो रहा है कि कोविड-19 की वजह से निश्चित रूप से देश में वयस्क लोगों के टीके का बाजार खुल गया है। पूनावाला ने कहा, ‘कोविड-19 के मौजूदा संकट से निश्चित रूप से टीकों को लेकर लोगों में ज्यादा जागरूकता आई है। यूरोप और अन्य देशों में वयस्क अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार नियमित रूप से टीके ले रहे हैं। अब समय आ गया है कि जन स्वास्थ्य के हित में भारत भी रोग निवारक टीकों की अहमियत पर जोर दे।’
पीसीवी के लिए मांग वयस्कों के लिए टिटनेस और फ्लू जैसे अन्य आम टीकों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक रही है। अप्रैल के स्तर से जून में टिटनेस और इन्फ्लूएंजा टीकों की मांग क्रमश: 31 फीसदी और 25 फीसदी बढ़ गई। बच्चों को लगाए जाने वाले बीसीजी जैसे टीकों में गिरावट देखी गई और यह अप्रैल के 1.94 करोड़ रुपये से घटकर जून में 1.41 करोड़ रुपये हो गया। यह वैक्सीन जन्म के पहले कुछ हफ्तों के भीतर दिया जाता है। कुल मिलाकर लॉकडाउन के दौरान तेजी से गिरावट के बाद टीके की श्रेणी में हाल के महीनों में बढ़ोतरी देखी गई है।
