देश में बच्चों एवं वयस्कों में रक्त की कमी की समस्या गंभीर हो गई है। पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार आधे से अधिक बच्चों एवं महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) के लक्षण पाए गए हैं। यह सर्वेक्षण देश के 14 राज्यों में किया गया था। छह माह से पांच वर्ष की उम्र के शिशुओं में तकरीब 67 प्रतिशत में रक्त की कमी पाई गई। वर्ष 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार इस उम्र दायरे के 58.6 प्रतिशत बच्च्चों में इस बीमारी का पता चला था। 15 से 49 और 15 से 19 वर्ष उम्र दायरे में पिछले सर्वेक्षण की तुलना में अधिक पुरुष एवं महिलाओं में रक्त की कमी देखी गई। 15-49 वर्ष के दायरे में महिलाओं में रक्ताल्पता के लक्षण अधिक (57 प्रतिशत) दिखे जबकि पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 25 प्रतिशत दर्ज किया गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा, ‘बच्चों एवं महिलाओं में रक्त की कमी चिंता का विषय है। गर्भवती महिलाएं पहले की तुलना में अधिक मात्रा में आयरन फोलिक एसिड टैबलेट का इस्तेमाल कर रही हैं, इसके बावजूद उनमें खून की कमी देखी जा रही है।’
हालांकि इस सर्वेक्षण में एक अच्छी बात यह सामने आई है कि 15-49 वर्ष के उम्र दायरे में ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ी है जिनके बैंक या बचत बैंक खाते हैं। पिछले सर्वेक्षण के 58 प्रतिशत की तुलना में यह आंकड़ा अब बढ़कर 78.6 प्रतिशत हो गया है। महिलाओं में प्रजनन दर में कमी देखी गई है। 2015-16 के सर्वेक्षण में प्रजनन दर प्रति महिला 2.2 संतान थी, जो कम होकर 2.0 रह गई।
भारत एवं 14 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य विषयों के प्रमुख संकेतकों से जुड़े तथ्य बुधवार को 2019-21 एनएफएचएस -5 के चरण दो के तहत जारी किए गए। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इस चरण में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, ओडिशा, पुदुच्चेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
राष्ट्रीय स्तर के तथ्यों की गणना एनएचएफएस-5 के पहले चरण और दूसरे चरण के आंकड़ों का इस्तेमाल कर की गई। पहले चरण में शामिल 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एनएफएचएस-5 के तथ्य दिसंबर, 2020 में जारी किए गए थे। सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, बाल पोषण संकेतकों में अखिल भारतीय स्तर पर थोड़ा सुधार दिखा है।
