वैश्विक स्तर पर शीर्ष 200 संस्थानों के बीच केवल तीन भारतीय संस्थान – भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई, आईआईटी दिल्ली और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलूरु ही क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2022 में देश की अगुआई कर रहे हैं।
अग्रणी वैश्विक उच्च शिक्षा विश्लेषकों क्यूएस (क्यूआक्यूअरेली साइमंड्स) ने सर्वाधिक विचार-विमर्श की जाने वाली अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय रैंकिंग में से एक का अठारहवां संस्करण जारी किया है, जिसमें सात नए प्रतिभागियों सहित कुल 35 भारतीय संस्थान शामिल थे।
आईआईटी बंबई ने लगातार चौथे वर्ष देश के पहले स्थान वाले संस्थान रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी, लेकिन पिछले साल की तुलना में पांच पायदान गिरकर संयुक्त 177वें स्थान पर आ गया है, इसके बाद आईआईटी दिल्ली आठ पायदान उठकर 185वें स्थान पर और आईआईएससी संयुक्त 186वें स्थान पर पहुंच गया है।
क्यूएस यह रैंकिंग तैयार करने के लिए छह संकेतकों का प्रयोग करता है जिसमें शैक्षिक प्रतिष्ठा (एआर), नियोक्ता प्रतिष्ठा (ईआर), प्रति संकाय उद्धरण (सीपीएफ), संकाय/छात्र अनुपात, अंतरराष्ट्रीय संकाय अनुपात और अंतरराष्ट्रीय छात्र अनुपात शामिल होते हैं।
सीपीएफ मीट्रिक के अनुसार भारतीय विश्वविद्यालयों ने भी वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अपनी शोध क्षमता में सुधार किया है। भारत के 35 विश्वविद्यालयों में से 17 ने सीपीएफ स्कोर में वृद्धि दिखाई है, जबकि केवल 12 में गिरावट आई है।
सीपीएफ संकेतक के अनुसार अगर विश्वविद्यालयों को संकाय आकार के हिसाब से समायोजित करें, तो आईआईएससी बेंगलूरु इस मीट्रिक के लिए 100/100 के पूर्ण अंक प्राप्त करने के साथ दुनिया का शीर्ष अनुसंधान विश्वविद्याय है। आईआईटी गुवाहाटी भी 41 सीपीएफ अंक के साथ शीर्ष-50 अनुसंधान संस्थानों की सूची में शामिल है।
क्षेत्र के रूप में भारतीय विश्वविद्यालयों ने क्यूएस के एआर मीट्रिक में लगातार प्रगति की है। इसमें शामिल होने वाले भारत के 35 में से 20 विश्वविद्यालयों ने अपने एआर अंक में सुधार किया है, जबकि केवल नौ ने ही एआर रैंक में गिरावट का अनुभव किया है।
इसके विपरीत भारतीय विश्वविद्यालयों को क्यूएस की संस्थागत शिक्षण क्षमता की पैमाइश में लगातार मशक्त करनी पड़ रही है। भारत के 35 विश्वविद्यालयों में से 23 को क्यूएस के संकाय/छात्र अनुपात संकेतक में गिरावट का सामना करना पड़ा है, केवल छह विश्वविद्यालय ही सुधार दर्ज कर रहे हैं। संकाय/छात्र अनुपात के लिए शीर्ष 250 में से देश का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
इस रैंकिंग में भारतीय विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए क्यूएस में अनुसंधान निदेशक बेन सॉटर ने कहा, ‘क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के इस साल का संस्करण उस उत्कृष्ट काम का प्रदर्शन करता है, जो कई भारतीय विश्वविद्यालय सकारात्मक परिणामों के साथ वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिष्ठा के लिए अपने शोध की राह को बेहतर बनाने के लिए कर रहे हैं। इसके विपरीत हमारा डेटा संग्रह यह भी बताता है कि भारतीय उच्च शिक्षा क्षेत्र अब भी पर्याप्त शिक्षण क्षमता प्रदान करने के लिए संघर्ष कर रहा है। अगर भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचना जारी रखना है, तो व्यवस्था – विश्वविद्यालयों के भीतर और समग्र रूप से पूरे क्षेत्र, दोनों में ही आगे और विस्तार की जरूरत होगी।’
कुल मिलाकर नवीनतम क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में उच्च शिक्षा के 35 भारतीय संस्थानों को शामिल किया गया, जिनमें से सात ने अपनी स्थिति में सुधार किया है, सात की रैंकिंग में गिरावट आई है, 14 की रैंकिंग में न तो सुधार हुआ और न ही गिरावट आई है और सात प्रतिभागियों ने अपनी पहली शुरुआत की है।
इन तीन शीर्ष भारतीय संस्थानों के बाद आईआईटी मद्रास का स्थान है, जो 20 पायदान बढ़कर संयुक्त 255वें स्थान पर पहुंच गया है। वर्ष 2017 के बाद से यह इसका सर्वोच्च स्थान है। इसके बाद आईआईटी कानपुर (277), आईआईटी खडग़पुर (280) और आईआईटी गुवाहाटी (395) हैं, जिन्होंने अपनी पिछली रैंकिंग में क्रमश: 73, 34 और 75 पायदान की बड़ी छलांग मारी है। इनमें से आईआईटी कानपुर ने वर्ष 2016 के बाद से अपना सर्वोच्च रैंक प्राप्त किया है, जबकि आईआईटी गुवाहाटी ने क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में पहली बार वैश्विक स्तर के शीर्ष-400 संस्थानों में प्रवेश किया।
