इंटरनैशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) चाहता है कि भारत नियमित अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को फिर से चालू करे और घरेलू बाजार में क्षमता और किराये पर लगी सीमा को हटाये क्योंकि इससे प्रतिस्पर्धा बाधित होती है और उपभोक्ताओं का नुकसान होता है।
गत मई को घरेलू हवाई यात्रा के चालू होने पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने क्षमता और किरायों की एक सीमा तय कर दी थी। इसी तरह से भारत की ओर से अनुसूचित अंरराष्ट्रीय उड़ान अब भी निलंबित हैं और इनके स्थान पर हवाई यात्रा बुलबुले की सुविधा दी गई है जो 25 देशों के लिए है।
आईएटीए 290 वैश्विक विमानन कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है जिनमें से चार भारत के हैं। आईएटीए को लगता है कि अब इस प्रकार के प्रतिबंधों की आवश्यकता नहीं रह गई है।
आज मीडियाकर्मियों से संवाद के दौरान आईएटीए के महानिदेशक विली वाल्श ने कहा कि भारत सरकार को आंकड़ों के मुताबिक निर्णय लेने चाहिए और उन नियमों को हटाना चाहिए जिससे क्षमता और पहुंच पर रोक लगाई गई है ताकि विमानन उद्योग को तेजी से उभरने की अनुमति मिल सके।
उन्होंने कहा, ‘राजनेता उपायों को लागू करने में तेजी दिखाते हैं लेकिन उन्हें हटाने में समय लेते हैं।’ उन्होंने कहा कि अब भारत की बारी है कि वह अंतरराष्ट्रीय यात्रा को खोले। उन्होंने कहा कि भारत के हवाई यात्रा बुलबुले का मूल मकसद विदेशों में फंसे लोगों का प्रत्यावर्तन करना था और वह व्यवस्था अब प्रासंगिक नहीं रह गई है क्योंकि माहौल पिछले साल के मुकाबले अलग है।
वाल्श को यह भी उम्मीद है कि सरकार घरेलू बाजार में क्षमता और किराये पर लगी सीमा को समाप्त करेगी क्योंकि इससे वृद्घि धीमी पड़ी है। भारतीय विमानन कंपनियों को केवल 65 फीसदी क्षमता उड़ाने की अनुमति है लेकिन वास्तव में फिलहाल करीब 50 से 55 फीसदी क्षमता का ही उपयोग हो रहा है।
उन्होंने पूछा, ‘क्या यह उचित है कि भारतीय लोग कमजोर विमानन कंपनियों को सुरक्षित करने के लिए कष्ट में रहें।’
उड्डयन परामर्श कंपनी सीएपीए के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 में भारतीय हवाईअड्डों पर कुल यातायात 66.3 फीसदी घटकर 11.5 करोड़ यात्रियों का रह गया। इससे पहले यातायात का यह स्तर वित्त वर्ष 2008 में रहा था। इस यातायात में घरेलू यात्री 10.5 करोड़ हैं (यह संख्या वास्तव में 5.25 करोड़ है क्योंकि एक यात्री की गिनती दो बार की जाती है, एक बार उड़ान भरने वाले हवाईअड्डे पर और दूसरी बार उतरने वाले हवाईअड्डे पर) और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की संख्या 1 करोड़ से थोड़ा अधिक है। एक ओर जहां घरेलू यातायात में 61.8 फीसदी की गिरावट आई वहीं अंतरराष्ट्रीय यातायात 84.8 फीसदी नीचे आया।
वाल्श मानते हैं कि भारत में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा का 2019 का स्तर केवल 2024 तक ही बहाल हो पाएगा। वह इसकी वजह विमानन कंपनियों के बेड़े के आकार में कटौती और कमजोर वित्तीय स्थिति को बताते हैं।
