केंद्र सरकार अपनी बहुचर्चित ‘किसान रेल’ की सेवाओं के विस्तार की संभावनाएं देख रही है जिसकी शुरुआत कुछ महीने पहले कृषि जिंसों की ढुलाई के लिए की गई थी। हालांकि इसे कुछ साल पहले कृषि वस्तुओं की माल-ढुलाई में किए गए इसी तरह के प्रयोग से सबक लेना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि परियोजना का पूरा खाका संभावनाओं से भरा लग रहा है और शुरुआती यात्राएं काफी सफल भी रही हैं लेकिन रेल के डिब्बों और कोच को फल और सब्जियों से भरना ही पर्याप्त नहीं होगा।
उनके मुताबिक, माल-ढुलाई और परिवहन से जुड़े हर पहलुओं में मदद की जरूरत है। यह मदद गंतव्य स्टेशन पर रेफर वैन और अन्य चैनलों के माध्यम से छंटाई और ग्रेडिंग सुविधा, पैक-हाउस और बेहतर वितरण के रूप में दी जा सकती है। इन कदमों से यह सुनिश्चित होगा कि माल कम से कम नुकसान के साथ उपभोक्ताओं तक जल्दी पहुंच जाए और इस परियोजना को सीमित ही सफलता मिल सके। परिवहन के दूसरे साधनों के मुकाबले किसी ट्रांसपोर्टर के लिए भी कुल लॉजिस्टिक्स लागत प्रतिस्पद्र्धी होनी चाहिए जिसमें खेत से गोदामों तक सामानों के प्रबंधन की लागत से लेकर रेलवे स्टेशन और अंतिम गंतव्य तक पहुंचाने की लागत शामिल है। उन्होंने कहा कि इन पहलुओं पर ध्यान देने से किसान रेल ज्यादा सफल और सार्थक होगा। हाल के दिनों में केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादों मुख्य रूप से खराब होने वाली वस्तुओं को ले जाने के लिए विशेष ट्रेनें चलाने की दूसरी कोशिश की है जिनमें एक किसान रेल भी शामिल है।
कुछ साल पहले, कृषि मंत्रालय ने भी इसी तरह का प्रयोग शुरू किया था ताकि देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में एक निजी साझेदार की मदद से जल्दी खराब होने वाली खाने-पीने की वस्तुएं, प्रोटीन और दूध को रेफ्रिजरेटेड कंटेनरों में भेजा जा सके। इन्हें ‘हॉर्टी ट्रेन’ भी कहा जाता था। प्रायोगिक आधार पर साल 2012-13 में शुरू की गई इस परियोजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इन ट्रेनों के संचालन में प्राइवेट कंटेनर ट्रेन ऑपरेटर (पीसीटीओ) जैसे निजी लॉजिस्टिक्स खिलाडिय़ों को शामिल करने का विचार किया गया था। इन परिचालकों को गाड़ी चलाने के लिए किराया और लाइसेंस फीस देनी होती थी। आईआईटी खडग़पुर को इन विशेष ट्रेनों के लिए रेफ्रिजरेटेड कंटेनर डिजाइन करने को कहा गया था। हालांकि, इसमें एक बुनियादी खामी की ओर कई विशेषज्ञों ने इशारा किया और कहा कि ऐसी ट्रेनों के लिए भारतीय रेलवे द्वारा रेल इंजन के साथ ही परिवहन अनुसूची भी उपलब्ध कराया जाता था जिसकी वजह से कई बार इसके अमल में देरी होती थी।
योजना के चरण के दौरान एक विवाद भी पैदा हुआ कि क्या ये ट्रेनें रास्ते में कंटेनरों को मूल स्टेशन से ले सकती हैं और उन्हें गंतव्य पर खाली कर सकती हैं। देश के नैशनल सेंटर फॉर कोल्ड-चेन डेवलपमेंट (एनसीसीडी) के पूर्व मुख्य कार्यकारी और सलाहकार पवन कोहली ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘कल्पना कीजिए कि अगर एक ट्रेन में लगभग 90 कंटेनर केले से भरे हैं और दिल्ली जैसे शहर में अचानक से इसे खाली करने को कहा जाता है तब इससे इसके बाजार को नुकसान तो होगा ही, साथ ही वैल्यू चेन में हर किसी को नुकसान होगा।’ कुछ अध्ययनों के मुताबिक दिल्ली में हर महीने 11,600 टन केला, 18,600 टन टमाटर, 23,500 टन प्याज और 54,000 टन आलू की खपत होती है। इनमें से किसी का भी उत्पादन राजधानी में नहीं होता है और इसे पड़ोस के राज्यों या कहीं दूर से मंगाना पड़ता है। कोहली ने कहा कि कई कंटेनर खाली पड़े रहते हैं जबकि पूरे रेक के लिए किराये का भुगतान करना पड़ता है। इससे माल ढुलाई करने वालों या उत्पादों के खरीदार को कोई फायदा नहीं होता था। आखिरकार कई बदलावों के बाद इस परियोजना को 2016 में छोड़ दिया गया था। हाल में शुरू की गई किसान रेल, संरचनात्मक और मौलिक रूप से हॉर्टीकल्चर ट्रेनों से अलग है।
किसान ट्रेन भारतीय रेलवे द्वारा चलाया और संचालित किया जाता है जबकि प्राइवेट रेफ्रिजरेटेड कंटेनरों के मुकाबले किसान रेल, 50 प्रतिशत सब्सिडी के साथ विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों की ढुलाई करती है। यह सब्सिडी खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय देती है। फिलहाल तीन किसान रेल साप्ताहिक आधार पर शुरू की जा चुकी है जबकि नागपुर और वरुड ऑरेंज सिटी (महाराष्ट्र) से दिल्ली के आदर्श नगर तक के लिए एक चौथी रेल शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। एक स्मार्ट कृषि प्रबंधन ईआरपी सॉफ्टवेयर मंच के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) और फार्मईआरपी के सह-संस्थापक संजय बोरकर ने कहा, ‘किसान रेल उन छोटे किसानों के लिए एक बेहतरीन पहल है जो जल्द ही खराब हो जाने वाले फलों और सब्जियों का उत्पादन करते हैं। जब छोटे किसानों को भी इस तरह के मौके दिए जाते हैं तब वे बड़ी आसानी से अपने कृषि उत्पादों को गांवों से महानगरों तक पहुंचा सकते हैं और इससे उन्हें निश्चित रूप से फायदा होगा।’ रेलवे हमेशा से ही कई तरह के खाद्य पदार्थों की ढुलाई करता रहा है लेकिन सभी जिंसों के मुकाबले फल और सब्जियों जैसे जल्द खराब होने वाले उत्पादों की ढुलाई में इसकी हिस्सेदारी सबसे कम है।
माल ढुलाई करने वाले और फलों तथा सब्जियों के कारोबारी भी सड़क मार्ग को ही तरजीह देते हैं। इसका एक बड़ा कारण माल ले जाने में लगने वाला समय है जिसका समाधान किसान रेल करना चाहती है। देश में परिवहन प्रणालियों पर तत्कालीन योजना आयोग द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, एक निश्चित अवधि में देश में 3 प्रतिशत से भी कम फल और सब्जियों की ढुलाई रेलवे के माध्यम से होती हैं जबकि शेष 97 फीसदी की ढुलाई सड़क के माध्यम से होती है। चीनी, गेहूं और चावल जैसे खराब न होने वाले खाद्य पदार्थों की माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी गेहूं के लिए 30 प्रतिशत, चावल के लिए 32 प्रतिशत और चीनी और खांडसारी के लिए 24 प्रतिशत तक थी।
क्रिसिल इन्फ्रास्ट्रक्चर एडवाइजरी के निदेशक जगननारायण पद्मनाभन ने कहा, ‘किसानों की ज्यादातर फसलों की ढुलाई सड़क के माध्यम से होती है क्योंकि यह लागत के लिहाज से भी बेहतर है। ऐसे में किसान रेल के प्रबंधन की लागत जैसे कारकों को ध्यान में रखकर देखने की आवश्यकता होगी। यह भी देखने की जरूरत है कि जो माल वापस आ रहे हैं उनकी बुकिंग हो रही है या नहीं। किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इन सभी पहलुओं का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने की जरूरत है।’
