बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार करते हुए 31 नए मंत्रियों को इसमें शामिल किया, जिनमें प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 16, उनकी अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के 11, कांग्रेस के दो, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के एक और एक निर्दलीय शामिल हैं।
मंत्रिमंडल में सभी दलों को प्रतिनिधित्व देने का मकसद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उस भविष्यवाणी को गलत साबित करना था जिसमें कहा गया कि बिहार अब मुश्किल दौर में आ चुका है। आनंद मोहन सिंह को मंत्री बनाए जाने के बाद भाजपा सांसद सुशील मोदी ने कहा, ‘आप कल्पना कर सकते हैं कि बिहार अब किस दिशा में जाने वाला है।’ आनंद मोहन सिंह पर बिहार में कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
मुख्यमंत्री ने वित्त और गृह मंत्रालय जैसे दोनों विभाग अपने पास रखे। तेजस्वी यादव को स्वास्थ्य विभाग दिया गया है। लालू प्रसाद के बड़े बेटे और महागठबंधन की पहले की सरकार में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रहे तेज प्रताप यादव को पर्यावरण और वन विभाग मिला है।
मंत्री पद की शपथ लेने वालों में सुरेंद्र यादव, ललित यादव, कुमार सर्वजीत, प्रो चंद्रशेखर, रामानंद यादव, शाहनवाज आलम, समीर महासेठ, अनीता देवी, जयंत राज, और सुधाकर सिंह ( राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे) शामिल थे। राजद से मंत्री बनने वाले अन्य विधायकों में जितेंद्र राय और कार्तिकेय सिंह, इस्माइल मंसूरी, जितेंद्र सिंह और सुरेंद्र राम शामिल थे।
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि राजद कोटे से यादव जाति के लोग अधिक मंत्री बने हैं। दिलचस्प बात यह है कि मंत्रिपरिषद में जाति और क्षेत्रों को संतुलित करने का प्रयास किया गया लेकिन दो प्रमुख क्षेत्रों, बक्सर और भोजपुर में जहां महागठबंधन ने पिछली विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत की सूचना दी वहां से कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इसकी वजह से कई लोगों का मानना है कि नीतीश के पास एक बार फिर अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। सरकार में मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं।
जब बात अपनी ही पार्टी की थी तो नीतीश ने अपनी पुरानी टीम को बरकरार रखा। विजय कुमार चौधरी, बिजेंद्र प्रसाद यादव, संजय कुमार झा, अशोक चौधरी, श्रवण कुमार, जमा खान, शीला कुमारी, सुनील कुमार, जयंत राज, लेशी सिंह और मदन साहनी सभी को मंत्री बनाया गया।
हालांकि कांग्रेस के लिए हैरानी का दिन था क्योंकि पुराने नेताओं की जगह विधायक अफाक आलम और मुरारी प्रसाद गौतम ही मंत्री बने। इससे पार्टी में कुछ लोगों में असंतुष्टि बढ़ सकती है क्योंकि 19 विधायकों में से कई ने पद मिलने की उम्मीद की थी।
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का नेतृत्व करने वाले जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन और एक निर्दलीय विधायक सुमित कुमार सिंह को भी राज्य मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है। 31 मंत्रियों में तीन महिलाएं लेशी सिंह, शीला कुमारी और अनीता देवी शामिल हैं।
मंत्रिपरिषद में पांच मुस्लिम विधायक भी शामिल हैं जिस पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयूख ने टिप्पणी की, ‘यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला मंत्रिमंडल नहीं है। इसमें तेजस्वी यादव की छाप है। हम इस अवसरवादी गठबंधन के अंतर्निहित विरोधाभासों को उजागर करेंगे।’
भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा है कि मंत्रिपरिषद में अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के प्रतिनिधित्व में नाटकीय तरीके से कमी आई है और उनकी तादाद छह से घटकर केवल तीन हो गई है। ईबीसी या अति पिछड़े जातियों का प्रतिनिधित्व पिछले एक दशक से नीतीश कुमार की सरकार में लगभग समान ही बना रहा है लगातार परहेज रहा है।
अगली चुनौती विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा हैं जो भाजपा से हैं और उनकी जगह महागठबंधन का कोई व्यक्ति ले सकता है। पटना के सूत्रों ने बताया कि एक उम्मीदवार अवध बिहारी चौधरी हो सकते हैं जो राजद के दिग्गज नेता हैं और उन्हें शुरू में कोई मंत्रालय मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी।
भाजपा ने इस बात पर भी टिप्पणी की कि भाजपा का विरोध करने में आगे रहने वाले जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा को मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया गया। सुशील मोदी ने कहा, ‘मैं उपेंद्र कुशवाहा के शपथ लेने की उम्मीद कर रहा था। वह कहां हैं?’
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी की बिहार इकाई के नेताओं के साथ समानांतर बैठक की। पार्टी संगठनात्मक बदलावों की घोषणा कर सकती है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बैठक की अध्यक्षता की जिसमें संगठन सचिव बीएल संतोष ने भी हिस्सा लिया।