देश में फैली महामारी कोरोनावायरस की रोकथाम की कवायद में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का इस साल अप्रैल महीने में खर्च बढ़कर करीब 13,000 करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले साल अप्रैल में हुए 4,327 करोड़ रुपये की तुलना में तीन गुना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अप्रैल महीने में हुए खर्च का ज्यादा हिस्सा टेस्टिंग की क्षमता के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने, टेस्टिंग किट खरीदने व अन्य मदों में गया है। दरअसल मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित धन में से 19 प्रतिशत धन अप्रैल महीने में कर दिया है, जिसकी तिलना में एक साल पहले की समान अवधि में स्वास्थ्य बजट का 7 प्रतिशत खर्च किया गया था, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल महीने में 3 प्रतिशत खर्च किया गया था।
पूर्व वित्त सचिव के चंद्रमौलि ने कहा, ‘सभी व्यय नीतिगत लक्ष्यों से जुड़े हैं। कोविड के दौरान प्रयोगशालाओं, बचाव के तरीकों पर ज्यादा व्यय हुआ है, जबकि टीबी आदि जैसी बीमारियों के नियंत्रण के कार्यक्रमों पर भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने खर्च किया है।’
इसके साथ ही अप्रैल महीने में व्यय का बड़ा हिस्सा पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) व अनन्य मेडिकल उपकरणों, क्लीनिकल परीक्षण पर के मद में गया है। साथ ही कोविड 19 को समझने व उसके लिए रणनीति बनाने में विशेषज्ञों की मदद लेने पर भी खर्च किया गया है।
दरअसल मंत्रालय के अधीन आने वाले स्वास्थ्य एवं शोध विभाग ने अप्रैल में आवंटित की गई 2,100 करोड़ रुपये राशि में से करीब आधा खर्च किया है, जबकि पिछले साल के समान महीने में इस विभाग ने 19 प्रतिशत खर्च किए थे।
मई महीने के आंकड़े नहीं आए हैं, लेकिन पिछले दो महीने से ज्यादा समय से इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कई टेंडर जारी किए हैं। इसमें हाल ही में मानव सीरम के नमूनों की स्क्रीनिंग के लिए कोविड एंडीबॉडी डिटेक्शन एलिसा किट के विकास के लिए तकनीक के हस्तांतरण के लिए रुचि पत्र जारी करना शामिल है। आईसीएमआर ने कोविड-19 व अन्य मेडिकल उपचारों के विभिन्न क्लीनिकल परीक्षण कराने व उनको मंजूरी देने का भी काम किया है। 30 मई को शोध निकाय ने देश भर के स्थाई और ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों, कंसल्टेंट के व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा के लिए रुचिपत्र आमंत्रित किया, जो कोविड-19 का इलाज कर रहे हैं।
मई महीने में भारत ने रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पॉलीमरेस चेन रिएक्शन (रियल टाइम आरटी-पीसीआर) के लिए 21.3 लाख कंबाइंड डाइग्नोस्टिक टेस्ट किटों के लिए ऑर्डर दिया है, जो कोविड-19 कोरोनावायरस की पहचान, उसकी ट्रैकिंग और अध्ययन के लिए सबसे शुद्ध प्रयोगशाला विधि है।
चालू वित्त वर्ष में आयुष मंत्रालय को 2,100 करोड़ रुपये का छोटा बजट मिला है। इसमें से 13 प्रतिशत सिर्फ अप्रैल में खर्च हो चुका है, जबकि एक साल पहले 3 प्रतिशत खर्च हुआ था।
अगर स्वास्थ्य मंत्रालय व आयुष के बजट आवंटन को मिला दें तो यह राशि जीडीपी (अगर इसका आकार 2019-20 के स्तर पर माना जाए) के करीब 0.3 प्रतिशत के बराबर है।
बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अन्य मंत्रालयों और विभागों की ओर से किए जा रहे स्वास्थ्य पर व्यय को भी शामिल कर लिया जाए तो कुल राशि जीडीपी के 1.5 प्रतिशत के करीब होती है। उनके मुताबिक यह राशि बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक की जा सकती है।
भारत में स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च किया जाता है तो वित्तीय अनुशासन को बनए रखने के लिए कहीं और से बचत करनी होगी। केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि आने वाले समय में सरकार को स्वास्थ्य पर और ज्यादा खर्च करना होगा, जो दवाओं के खरीदने और चिकित्सक और नर्सों की ज्यादा नियुक्ति पर होगा। उन्होंने कहा कि खर्चों में कटौती करना चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा, ‘आप मनरेगा और पीएम-किसान पर होने वाले खर्च में कटौती नहीं कर सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में मुफ्त किताबें देने जैसे कुछ क्षेत्रों पर कुछ कटौती की जा सकती है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं होगा।’ इक्रा में प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि राजस्व में आई गिरावट और स्वास्थ्य जैसे मद में ज्यादा कर्च की मांग की वजह से सरकार अन्य क्षेत्रों में राजस्व व्यय को घटाने की कवायद कर रही है। उन्होंने कहा, ‘अगर इससे पर्याप्त वित्तीय इंतजाम नहीं होते हैं तो सरकार को पूंजीगत व्यय में बदलाव करने या आगे और उधारी लेने पर विचार करना पड़ सकता है।’
स्वास्थ्य पर किया गया ज्यादातर व्यय राजस्व में से है। उदाहरण के लिए 2020-21 में आवंटि धन का 98 प्रतिशत राजस्व से हुआ है, जिससे अस्पताल जैसी संपत्तियों का सृजन नहीं होता है।
सरकार ने पहले ही बजट में तय 7.8 लाख करोड़ रुपये उधारी से 4.2 लाख करोड़ रुपये ज्यादा उधारी लेने की योजना बनाई है, जिससे कोविड-19 के असर से मुकाबला किया जा सके और लॉकडाउन के कारण राजस्व में आई कमी की भरपाई की जा सके।
वित्त वर्ष 21 में सरकार ने राजकोषीय घाटे का जो लक्ष्य रखा था, उसका 35 प्रतिशत घाटा पहले ही महीने में हो चुका है, जो एक साल पहले की समान अवधि में 22 प्रतिशत था।
वित्त मंत्रालय ने सभी नई योजनाओं को लागू करने के विचार पर रोक लगा दी है, जो 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में घोषित योजनाओं से इतर हैं।
