सरकार कॉर्पोरेट कर्जदार के व्यक्तिगत गारंटर को सीमा पार दिवाला कानून के दायरे में लाने के लिए सक्रियता से विचार कर रही है। हाल के कुछ दिवाला मामलों में कर्जदाता प्रवर्तकों की विदेशी संपत्तियों को दायरे में नहीं ला सके थे, जिसे देखते हुए इस बदलाव पर विचार हो रहा है।
दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत सीमा पार दिवाला ढांचे को अभी अधिसूचित किया जाना है। अब तक सीमा पार दिवाला पर जो चर्चा हो रही थी, वह केवल कॉर्पोरेट दिवाला समाधान के लिए था। सूत्रों के मुताबिक सरकार अब कंपनियों व कॉर्पोरेट कर्जदारों के व्यक्तिगत गारंटरों के लिए एक साथ कानून अधिसूचित करना चाहती है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘इस तरह के मामलों को दीवानी या आपराधिक कानून के तहत लाना हमेशा से थकाऊ रहा है क्योंकि सबूत देने का बोझ बहुत ज्यादा होता है। सीमा पार दिवाला आपको एक मंच मुहैया कराता है और धोखाधड़ी से बचने व संपत्तियां वापस पाने की सुविधा देता है।’
कंपनी मामलों का मंत्रालय इस मसले पर आंतरिक चर्चा कर रहा है और इसके लिए एक अवधारणा नोट के साथ आर्थिक मामलों से जुड़े अन्य मंत्रालयों से भी संपर्क किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग के अधिनियम (यूएनसीआईटीआरएएल) दिशानिर्देशों में कहा गया है कि दीवालिया कर्जदारों द्वारा की गई धोखाधड़ी, खासकर संपत्ति को छिपाने या उन्हें विदेशी अधिकार क्षेत्र में स्थानांतरित करने की समस्या बढ़ रही है, यह लगातार हो रहा है और इसकी व्यापकता भी बढ़ी है।
इसमें कहा गया है, ‘आधुनिक और एक दूसरे से जुड़ी दुनिया ऐसी धोखाधड़ी करने और उसे अंजाम देने को आसान बना रही है। मॉडल कानून द्वारा स्थापित सीमा पार सहयोग व्यवस्था इस तरह की अंतरराष्ट्रीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए बनाया गया है।’
यह प्रक्रिया किस तरीके से काम करेगी? दिवाला कार्रवाई का सामना कर रही कंपनी के लिए मुख्य दिलचस्पी के केंद्र को भी परिभाषित किया जाना है, जिसे सीओएमआई भी कहा जाता है। सामान्यतया सीमा पार दिवाला मामला उस देश में चल सकता है, जहां कंपनी का पंजीकरण है, या जहां से कंपनी का प्रमुख कामकाज जैसे प्रबंधन होता है।
जेट एयरवेज के मामले में मामला भारतीय व डच पक्षों के बीच था, जिसमें सीमा पार दिवाला व्यवस्था नहीं थी, उसके बावजूद इसे निपटाया गया। लेकिन एमटेक ऑटो, एबीजी शिपयार्ड सहित अन्य मामलों में ऐसा नहीं हो सका, जिसे लेकर सरकार चिंतित है।वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अगर आप बाहर जाते हैं और इन व्यक्तियों का पीछा करते हैं, वे बाहर के सभी संरक्षण का लाभ उठाएंगे। यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल अधिनियम में सीमा पार दिवाला व्यवस्था ऐसे लोगों को ढूंढने और कर्जदाता के अधिकार की रक्षा के लिए उनकी संपत्तियां प्राप्त करने के मामले में सुविधा प्रदाता है।’
सरकार को लगता है कि यह कदम वैश्विक निवेशक समुदाय में सकारात्मक संकेत भेजेगा कि भारत कर्जदाताओं के साथ समान व्यवहार करने को तैयार है। उन्होंने कहा, ‘यह (यूएनसीआईटीआरएएल) ढांचा आपको समान अधिकार देता है। भारत को ऐसा करना चाहिए।’
बहरहाल आईबीसी के विशेषज्ञों को चिंता है कि यह व्यवस्था कैसे काम करेगी। एक आईबीसी वकील ने कहा कि इस बदलाव के लिए विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है। कानून विशेषज्ञ ने कहा, ‘जैसे ही विदेशी संपत्ति सृजित की जाएगी, अन्य देशों की प्रवर्तन व्यवस्था उस पर लागू हो जाती है।’
उद्योग के विशेषज्ञों का भी कहना है कि कंपनी की मुख्य रुचि का फैसला करने में ही याचिका हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि कॉर्पोरेट कर्जदार के व्यक्तिगत गारंटर के सीमा पार दिवाला का मामला और पेचीदा हो सकता है। डेलॉयट इंडिया में पार्टनर राजीव चंदक ने कहा, ‘सीमा पार दिवाला में विभिन्न कानून क्षेत्रों के दिवाला कानूनों से सामंजस्य की मांग करता है, जिससे दबाव वाली कंपनियों के मामलों के समाधान में प्रभावी तरीके से काम किया जा सके। सीमा पार दिवाला के प्रभावी होने के लिए जरूरी है कि बाजार में पारस्परिक पहुंच हो।’
यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून के आधार पर बने कानून को 53 देशों में स्वीकार किया गया है।