किसी ने खूब ही कहा है कि अगर भूकंप के आने और शेयर बाजार की गिरावट का पहले ही पता चल जाए तो कई परिवार तबाह होने से बच जाएं और कई जिंदगियों को बचाना मुमकिन हो सके।
अगर शेयर बाजार की बात करें तो यह बेहद उतार-चढ़ाव वाला हाई वोल्टेज दांव की तरह है। विश्वव्यापी मंदी से पिछले एक साल में शेयर बाजारों में जबरदस्त टूट देखने को मिली है।
लेकिन पिछले दो महीनों से बाजार फिर से संभलता दिख रहा है। इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यही है कि बाजार में आई यह तेजी महज कुछ वक्त का बुलबुला ही है या फिर गहराई वाला है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की साप्ताहिक प्रस्तुति व्यापार गोष्ठी में इस हफ्ते का विषय ‘शेयर बाजार में तेजी का मौजूदा दौर टिकाऊ है।’ भी इससे ही जुड़ा है। गोष्ठी में शिरकत करने वाले पाठकों और विशेषज्ञों में से ज्यादातर मानते हैं कि यह दौर टिकाऊ है और जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था संभलती जा रही है वैसे-वैसे बाजार भी संभलते जा रहे हैं।
लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में सबसे अहम तारीख 16 मई समझी जा रही है क्योंकि इसी दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावी नतीजे आने वाले हैं। नई दिल्ली में गद्दी संभालने वाली पार्टी ही मुंबई के शेयर बाजारों की रफ्तार निर्धारित करेगी।
पाठकों का मानना है कि सुधारवादी सरकार बनने पर सेंसेक्स 15,000 का आंकड़ा भी पार कर सकता है। लेकिन ‘लाल सलाम’ ठोकने वाली सरकार यानी वामपंथी सरकार बनने पर सेंसेक्स धड़ाम भी हो सकता है।
