एक रोज सुबह 4 बजे की बात है जब पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव आलापन बंद्योपाध्याय अपने 56 वर्षीय छोटे भाई का अंतिम संस्कार करने के बाद श्मशान घाट से घर लौटे थे। लोकप्रिय टेलीविजन एंकर और बांग्ला न्यूज चैनल ‘ज़ी 24 घंटा’ के संपादक अंजन बंद्योपाध्याय की मृत्यु कोविड की वजह से पैदा हुई जटिल परिस्थितियों में हुई।
इस त्रासदी के बावजूद आलापन बंद्योपाध्याय अगली सुबह राज्य सचिवालय में मौजूद थे। उस वक्त राज्य में कोविड-19 मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे थे, ऐसे में उनके पास निजी शोक मनाने का भी वक्त बिल्कुल नहीं था।
26 मई को चक्रवात यास ने पश्चिम बंगाल में दस्तक दी और भारी तबाही हुई। इसकी ही पृष्ठभूमि में बंद्योपाध्याय को लेकर राजनीतिक हलचल जैसी स्थिति पैदा हो गई। इस विवाद के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कलाईकुंंडा एयरफोर्स स्टेशन पर बुलाई गई समीक्षा बैठक है। प्रधानमंत्री तूफान से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए पश्चिम बंगाल और ओडिशा के दौरे पर थे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बंद्योपाध्याय समीक्षा बैठक के लिए देर से पहुंचे और वहां से तुरंत रवाना भी हो गए। कुछ घंटे बाद ही केंद्र सरकार ने बंद्योपाध्याय को निर्देश दिया कि वह 31 मई को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को रिपोर्ट करे। हालांकि यह उनकी पहले से निर्धारित सेवानिवृत्ति की तारीख थी। लेकिन उनके कार्यकाल में 24 मई को ही तीन महीने का विस्तार दिया गया था ताकि मुख्यमंत्री को कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने में मदद मिल सके। बंद्योपाध्याय दिल्ली नहीं गए। इसके बजाय, पश्चिम बंगाल काडर के 1987 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी ने 31 मई को सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना और उन्हें कुछ घंटे के भीतर तीन साल की अवधि के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का मुख्य सलाहकार नियुक्त कर दिया गया। इसके बाद गृह मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उन्हें प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक से परहेज करने के लिए कारण बताओ नोटिस भेजा। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के अध्यक्ष हैं। बंद्योपाध्याय ने गुरुवार को नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि वह ‘अनुपस्थित’ नहीं थे बस उन्हें ममता बनर्जी के निर्देश पर बैठक बीच में ही छोडऩी पड़ी जिन्हें वह मुख्य सचिव के तौर पर रिपोर्ट करते थे। इसमें कोई शक नहीं कि बंद्योपाध्याय को मुख्यमंत्री का पूरा समर्थन है। केंद्र की चुनौतियों से हमेशा जूझने को तैयार रहने वाली ममता ने हाल ही में कहा था कि उनके साथ जो कुछ भी होगा उसमें राज्य सरकार उन्हें पूरा समर्थन देगी। पिछले कुछ दिनों में, पूर्व मुख्य सचिव की तारीफ करते हुए ममता ने कहा कि वह ‘निर्भीक’, ‘ईमानदार’, और ‘निष्ठावान’ हैं।
एक उदाहरण देते हुए अधिकारी ने कहा कि राज्य मंत्रिमंडल द्वारा ‘राज्य पुरोहित कल्याण प्रकल्प’ को मंजूरी दिए जाने के बाद बंद्योपाध्याय ने कोई कानूनी विवाद खड़ा होने से पहले ही इस योजना के तहत दिए जाने वाले भत्ते का वितरण तीन दिनों के भीतर ही करा दिया। इस योजना के तहत 8,000 सनातन ब्राह्मण पुजारियों को 1,000 रुपये मासिक भत्ते का भुगतान और मुफ्त आवास आवंटित किया जाता है।
लेकिन बंद्योपाध्याय केवल ममता के ही पसंदीदा अफसरशाह नहीं है बल्कि वह वाममोर्चा के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के भी पसंदीदा प्रशासनिक अधिकारी थे। पूर्व मुख्यमंत्री को अच्छी किताबों और फिल्मों का शौक है और वह नाटक लिखने के साथ ही विश्व साहित्य का अनुवाद भी करना पसंद करते हैं। वह बंद्योपाध्याय को अक्सर ‘बंगाल का गौरव’ कहते हैं। भट्टाचार्य के मुख्यमंत्री बनने पर उनके पहले आधिकारिक दौरे पर जिलाधिकारी के रूप में बंद्योपाध्याय भी साथ थे। उस वक्त वह साउथ 24 परगना के सुदूर गांवों में रिक्शा वैन पर गए थे जहां डकैतों ने काफी बर्बरता दिखाई थी।
इस अफसरशाह के प्रति भट्टाचार्य के स्नेह का अंदाजा लेना इतना मुश्किल नहीं है। बंद्योपाध्याय एक मेधावी छात्र रहे हैं जिन्होंने नरेंद्रपुर रामकृष्ण मिशन और उसके बाद फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की है। बंद्योपाध्याय की बांग्ला भाषा के प्रति गहरी रुचि है जिसका अंदाजा हाल ही में एक स्थानीय भाषा के अखबार में अपने छोटे भाई के लिए लिखी गई मार्मिक श्रद्धांजलि से भी होता है। बंद्योपाध्याय का ताल्लुकपश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के आसनसोल में बालीजुरी गांव से है। कॉलेज के दिनों से ही उनकी छवि एक अच्छे लड़के की रही जिन्हें काफी पढऩे-लिखने वाले छात्र होने के साथ ही स्पष्ट बात करने वाला माना जाता रहा। उनके कॉलेज के दिनों के मित्र ने याद करते हुए बताया, ‘जब वह कॉलेज स्ट्रीट के आसपास घूमते थे तब से ही उनका काफी नाम था।’ आईएएस की परीक्षा पास करने से पहले बंद्योपाध्याय ने आनंदबाजार पत्रिका में पत्रकार के रूप में कुछ वक्त तक काम भी किया था।
उनका विवाह बांग्ला के मशहूर कवि और साहित्यकार नीरेन्द्र्रनाथ चक्रवर्ती की पुत्री से हुआ है और उनकी बांग्ला संस्कृति और इतिहास में गहरी रुचि है। लेकिन बंगाल और बंगालियों की सभी चीजों के प्रति उनका प्यार सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। साल 2017 में उन्होंने बंगाल में प्रशासनिक अधिकारियों पर एक किताब भी लिखी थी, ‘आमलार मन’ (एक अफसरशाह का मन)।
जो लोग बंद्योपाध्याय को जानते हैं उनका कहना है कि वह काफी सोच-समझकर कोई कदम उठाने वालों में से हैं और वह अपने लक्ष्य को लेकर अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं। कई लोगों को इस बात की हैरानी है कि वह प्रधानमंत्री के साथ बैठक बीच में छोड़ देंगे। अब यह कोई गलती है या सोच-समझ कर उठाया गया कदम है, यह अभी देखा जाना बाकी है।
